बढ़ती आत्महत्या का कारण और समाधान

आत्महत्या कभी अपराध नहीं होता। पता नहीं कब किन नासमझो ने आत्महत्या को अपराध मान लिया और आज तक हम उस नासमझी को स्वीकार करते जा रहे हैं। आत्महत्या में कोई व्यक्ति किसी अन्य की स्वतंत्रता में कभी बाधक नहीं बनता ना ही किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। आत्महत्या परिवार या समाज के विरुद्ध होने से असामाजिक कह सकते हैं किंतु अपराध नहीं।

प्रत्येक व्यक्ति का मन बहुत चंचल होता है। मन की गति भी बहुत तेज होती है। इस तरह प्रत्येक व्यक्ति के मन में कभी-कभी आत्महत्या की कल्पना उठती ही है जिसे बुद्धि या विवेक संतुलित और नियंत्रित करता है। ऐसे विचारों पर कभी नियंत्रण नहीं हो पाता तब आत्महत्या की घटना घटती है। ऐसे लोग तीन परिस्थितियो से प्रभावित हो सकते हैं:- 1. मानसिक सोच अर्थात व्यक्ति भावना प्रधान हो 2. शारीरिक अर्थात व्यक्ति में अवसाद की बीमारी के लक्षण हो 3. परिस्थिति जन्य अर्थात किसी विशेष परिस्थिति को खतरे का कोई समाधान ना दिखे। आत्महत्या करने में ब्रिलिएंट और स्वाभिमानी लोग अधिक होते हैं। गरीब, आत्मसंतुष्ट और निरभिमानी लोग आत्महत्या नहीं करते। प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा करता है। कोई व्यक्ति किसी ऐसे परिणाम की कल्पना करता है जो प्राप्त नहीं कर पाता या उतना प्राप्त करना संभव नहीं था तब उसके स्वाभिमान को चोट लगती है। राजा थोड़ा सा राज्य हार जाता है, विद्यार्थी जितनी उम्मीद करता है उससे पीछे रह जाता है, व्यापारी या किसान कर्ज नहीं पटा पाता तो स्वाभिमान के प्रभाव में आकर आत्महत्या कर लेता है। नेता कभी आत्महत्या नहीं करता क्योंकि नेता के पास कोई स्वाभिमान नहीं होता। कई पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री जेलो में बंद है किन्तु आत्महत्या नहीं करते। अनेक निर्लज धर्मगुरु जेलों में बंद है किंतु उन्हें कभी आत्मग्लानि नहीं होती। इस प्रकार के लोग जेल मुक्त होते ही पूरी बेशर्मी से समाज में फिर से स्थापित होने की दौड़ में कूदने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इसलिए मेरा यह मत बना है कि कोई भी धूर्त कभी आत्महत्या नहीं करता। भावना प्रधान शरीफ लोगों को ही आत्महत्या की बीमारी अधिक प्रभावित करती हैं।

आत्महत्या में संतोष की भी बड़ी भूमिका होती है। कोई व्यक्ति किसी कार्य के लिए जितना प्रयत्न करता है वह उस परिवर्तन का पूरा पूरा परिणाम भी चाहता है। उसका परिणाम अपेक्षित न आने से वह असंतुष्ट होता है जो कभी कभी आत्महत्या का कारण बनता है। लक्ष्य ऊंचा रखना प्रयत्न में सहायक होता है और लक्ष्य बहुत ऊंचा रखना असंतोष का कारण बनता है। बचपन से ही भारतीय संस्कृति ने कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन को ध्येय वाक्य बताया। अब संशोधित संस्कृति ने असफलता का दोष ईश्वर पर न डालकर अपने प्रयत्नों की कमी या सामाजिक व्यवस्था पर डालने की प्रवृत्ति विकसित की। परिणाम हुआ असंतोष का विस्तार और यही असंतोष आत्महत्या में बदल जाता है।

वर्तमान विश्व में आत्महत्यायें उतनी तेजी से नहीं बढ़ रही हैं जितनी तेजी से भारत में। गांव-गांव और घर-घर तक यह खतरा बढ़ रहा है। यह खतरा सब वर्गों में बढ़ रहा है। अच्छे-अच्छे संपन्न लोग से लेकर विद्यार्थी खिलाड़ी तक आत्महत्या करने लगे हैं। इसके कुछ प्राकृतिक कारणों का उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं किंतु भारत में उन कारणों में एक नया कारण जुड़ गया है कि आत्महत्या ब्लैक मेलिंग का हथियार बन रहा है। जबसे हमारी भारत सरकार ने आत्महत्या को अपराध मान कर उसके लिए अन्य दूसरे लोगों को दोषी मानने की खोज करने लगी है तबसे आत्महत्या एक फैशन के रूप में बदल रहा है। अभी-अभी ऐसी चार घटनाओं को आप देखिए। पिछले माह ही एक महिला पत्रकार ने आत्महत्या कर ली। पत्रकारों ने उसकी जांच के लिए आंदोलन शुरू किया। फिल्म कलाकार सुशांत सिंह ने आत्महत्या कर ली। अब अनेक सुशांत प्रेमी इसी नाम पर अनेकों को ब्लैकमेल कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में 2 लोगों ने पुलिस पिटाई के कारण आत्महत्या कर ली। अब पुलिस के खिलाफ यह प्रकरण राजनेताओं तथा मीडिया का एक धंधा बन गया। छत्तीसगढ़ में एक व्यक्ति मंत्री निवास के सामने जाकर अपने शरीर में आग लगाकर चर्चित होने का प्रयास करता है। इसके पूर्व ही हम देख चुके हैं कि रोहित वेमुला की मौत का वर्षों  व्यापारीकरण किया गया। इस तरह की आत्महत्याओं का लाभ उठाकर मुआवजा अथवा विरोधियों को परेशान करने का हथियार बनाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और इसका बड़ा कारण है आत्महत्या का वह कानून जो दूसरों को ब्लैकमेल करने के काम आता है। सुशांत में एक टैलेंट था। प्रतिस्पर्धा में दूसरे लोग मजबूत पड़े। यह अपेक्षित सफलता नहीं पा सके। इसमें कौन सा अपराध हो गया जिसकी जांच की जाए। अनेक बैढे ठाले लोग तो सीबीआई जांच तक मांग कर रहे हैं। सुशांत की कोई हत्या नहीं हुई है। आत्महत्या पूरी तरह प्रमाणित है फिर जांच किस बात की। हम लोगों ने आपकी मदद नहीं की तो इसमें अपराध क्या हो गया। एक महिला पत्रकार ने आत्महत्या कर ली किस बात का मुआवजा किस बात की जांच कोई अपराध तो हुआ नहीं जिसके लिए इतना हंगामा करें। मध्यप्रदेश में पुलिस के पीटने से 2 लोगों ने आत्महत्या कर ली तो इसमें गलत क्या है? पुलिस ने जो किया वह मजबूरी थी। नासमझ लोग प्रश्न करते हैं कि पुलिस पीट नही सकती। मैं पूछता हूं कि वे दोनों लोग बलपूर्वक खेती कर सकते हैं और पुलिस बल प्रयोग ना करें। पुलिस ने किसी निर्दोष को नहीं पीटा बल्कि गैर कानूनी कार्य कर रहे लोगों को गैर कानूनी कार्य करने से रोकने के लिए गैर कानूनी मार्ग का सहारा लिया तो दोषी कौन। यदि कोई पुलिस वाला उक्त कार्रवाई से दुखी होकर आत्महत्या कर ले तब दोषी कौन। छत्तीसगढ़ में किसी ने प्रसिद्धि पाने की लालच में  आत्महत्या की कोशिश की तो इसमें दोषी कौन। मैं तो आज तक समझ ही नहीं सका कि किसी की आत्महत्या में कोई दूसरा व्यक्ति दोषी कब और कैसे। मैं अपने शहर का चेयरमैन था। कोई कहता था कि मेरी मदद नहीं करेंगे तो मैं कुआं में कूद जाऊंगा। मैं हमेशा कहता था कि जा कूद जा। यदि वह कूद ही जाए तो मैं दोषी कैसे। वास्तव में तो दोषी है कानून और कानून बनाने वाले लोग जो आत्महत्या को ब्लैक मेलिंग का हथियार बनने दे रहे हैं। यदि कोई कहे कि मर जाऊँगा तो कहिये की मर जा। लेकिन उसके आत्महत्या करते ही जब चारों तरफ से उस पर संकट शुरू होते हैं तब आत्महत्याओं को प्रोत्साहन मिलता है। पहले  आत्महत्याएं आत्मग्लानि से होती थी अब आत्मग्लानि का स्थान आवेश और बदले की भावना लेती जा रही है और आत्महत्याओं के बढ़ने का एक प्रमुख कारण बनता जा रहा है। मुआवजा प्रसिद्धि और बदले की भावना आत्महत्या विस्तार में सहायक बन गए हैं।

हमें आत्महत्याओं के समाधान भी सोचने होंगे। परिवारों में आपसी संवाद और पारदर्शिता इसमें सहायक हो सकती हैं। किसी कार्य के परिणाम को प्रतिष्ठा से जोड़ना ठीक नहीं। अकेलापन भी कई बार इसका कारण बनता है। बच्चों के विवाह समय पर कर दें। परिवार के सदस्यों को उनकी क्षमता का आकलन करके ही बोझ डालें और प्रोत्साहित करें। कभी प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनावे। यदि कोई आत्महत्या करता है तो उसके प्रति सहानुभूति व्यक्त करना भी ठीक नहीं। आत्महत्या चाहे मूर्खता वश हुई या धूर्तता से किन्तु चर्चा का विषय न बने। वर्तमान समय में आत्महत्या के नाम पर ब्लैक मेलिंग का जो शौक बढ़ रहा है इसे निरुत्साहित करने की जरूरत है। आत्महत्या भी कोई अपराध नहीं है और आत्महत्या की परिस्थिति को  प्रोत्साहित करना भी कोई अपराध नहीं है। जिन लोगों ने इसे अपराध लिखा है वे नासमझ थे। अब इस प्रकार के अनावश्यक कानूनों को समाप्त करना चाहिए। आत्महत्याओं को निरुत्साहित करना ही इसका समाधान है।