भावनात्मकता से वैचारिकी पर होता चुनाव संतोषजनक GT 446

भावनात्मकता से वैचारिकी पर होता चुनाव संतोषजनक

४          भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार विचारों की चर्चा हो रही है। पहले के चुनाव भावनात्मक आधार पर लड़े जाते थे। कभी गांधी के नाम पर, कभी इंदिरा की हत्या के नाम पर तो कभी हिंदुत्व के नाम पर चुनाव में लहर बनाने की कोशिश की गई। लेकिन 2024 के चुनाव किसी भावनात्मक लहर पर नहीं बल्कि वैचारिक संघर्ष पर टकराते दिख रहे हैं। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष अल्पसंख्यक सशक्तिकरण पर विशेष महत्व दे रहा है तो सत्ता पक्ष समान नागरिक संहिता को आगे ला रहा है। विपक्ष जातिय आरक्षण बढ़ाने पर जोर दे रहा है तो सत्ता पक्ष इस मामले में पूरी तरह चुप है। सत्ता पक्ष जातिवाद को निरोत्साहित करके महिला, किसान, युवा, गरीब जैसा नया जातीय समीकरण बनाने की कोशिश कर रहा है। विपक्ष ने घोषणा की है कि वह सुरक्षा का बजट सीमित करेगा। यहां तक कि बने हुए एटम बम भी समाप्त करने का प्रयास करेगा। इसके बदले में विपक्ष आम लोगों को अधिक से अधिक नौकरियां देगा तथा उनको नगद राशि देकर उनकी क्रय शक्ति बढ़ाएगा। सत्ता पक्ष में घोषणा की है कि हम राष्ट्रीय सुरक्षा को सबसे अधिक महत्व देंगे। सत्ता पक्ष नौकरियों को निरोत्साहित करके रोजगार बढ़ाने की कोशिश करेगा। सत्ता पक्ष नगद पैसा देने की अपेक्षा मुफ्त अनाज, मुफ्त शिक्षा को बढ़ाने का प्रयत्न करेगा। विपक्ष ने घोषणा की है कि हम संविधान में किसी प्रकार का कोई संशोधन नहीं होने देंगे। सत्ता पक्ष ने घोषणा की है कि संविधान में कोई भी संशोधन या बदलाव असंवैधानिक तरीके से नहीं होगा। विपक्ष ने वादा किया है कि हम जातीय जनगणना के साथ-साथ एक आर्थिक जनगणना भी कराएंगे और यदि किसी के पास सीमा से अधिक संपत्ति होगी तो उसमें गरीबों का अधिकार भी सुनिश्चित करेंगे। सत्ता पक्ष ने स्पष्ट किया है कि हम भारत को दुनिया की अर्थव्यवस्था में आगे लाने का प्रयास करेंगे। हमारे प्रयासो से भारत विकासशील नहीं विकसित राष्ट्र बनेगा। मैंने भी दोनों राजनैतिक समूह का अध्ययन किया। मैं समझता हूं कि वर्तमान चुनाव वैचारिक धरातल पर होने के कारण बहुत महत्वपूर्ण है। इस चुनाव में भावनाओं की अपेक्षा वैचारिक धरातल पर सोच-समझकर वोट देने वालों की संख्या बढ़ेगी। मैं इस प्रगति से संतुष्ट हूँ। मेरे विचार से विपक्ष की तुलना में सत्ता पक्ष का घोषणा पत्र अधिक अच्छा है ।