आईये महंगाई को समझते हैं: GT 447
आवागमन महंगा होने से महंगाई नहीं बढ़ेगी:
आज हम राजनीति से हटकर अर्थ नीति पर एक चर्चा की शुरुआत कर रहे हैं। सारी दुनिया में आमतौर पर यह माना जाता है कि यदि आवागमन महंगा होगा तो वस्तुओं के दाम बढ़ जाएंगे। इसी आधार पर डीजल, पेट्रोल, बिजली के महंगा होने का भी विरोध किया जाता है। मैने इस मामले पर देश भर के कई अलग-अलग क्षेत्रों में रिसर्च किया। मैंने यह पाया कि यह धारणा बिल्कुल गलत है। सच बात तो यह है कि आवागमन महंगा होने से महंगाई पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जब भी आवागमन महंगा होता है तो बाहर से आयात की जाने वाली वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाता है और बाहर निर्यात करने वाली वस्तुओं का मूल्य कम हो जाता है। इसका अर्थ हुआ कि ग्रामीण क्षेत्रों में बाहर जाने वाली वस्तुएं सस्ती हो जाती है, बाहर से आने वाली महंगी हो जाती है। कुल मिलाकर पूरे भारत का यदि सर्वे किया जाए तो आवागमन महंगा होने से शहरों का जीवन कुछ महंगा हो जाता है, गांव का जीवन कुछ सस्ता हो जाता है। शहरों के बड़े उद्योगों पर कुछ बुरा प्रभाव पड़ता है, गांव के छोटे उद्योगों पर कुछ अच्छा प्रभाव पड़ता है। कुल मिलाकर आवागमन महंगा होने का वस्तुओं के मूल्य वृद्धि पर या सामान्य जन जीवन पर कोई व्यापक प्रभाव नहीं होता। मैने इस विषय पर कई बार घूम करके रिसर्च किया और तब मुझे यह बात पता चली कि दुनिया भर में संपन्न लोगों ने मिलकर शहरी जनजीवन से प्रभावित लोगों के साथ जुड़कर यह गलत निष्कर्ष प्रचारित किया है कि आवागमन का महंगाई पर कोई प्रभाव पड़ता है। मैं इस विषय पर खुली चर्चा का पक्षधर हूँ।
आईये महंगाई को समझते हैं:
“महंगाई बढ़ी है या घटी है” इस विषय पर चर्चा करने के पहले हमें इस बात को समझना पड़ेगा कि महंगाई है क्या? यदि रुपए का मूल्य बदलता है अर्थात वस्तुओं की कीमत 50 गुना बढ़ती है और आपकी क्रय शक्ति साठ गुना बढ़ती है तो आप इसे महंगाई कहेंगे या महंगाई का कम होना कहेंगे? यदि आम लोगों का जीवन स्तर सुधरता है तो आप महंगाई का घटना कहेंगे या महंगाई का बढ़ना कहेंगे? स्वतंत्रता के बाद 75 वर्षों में आम लोगों का जीवन स्तर करीब ढाई गुना सुधर गया है, संपन्न लोगों का साठ गुना मध्यम वर्ग का 10 गुना और निम्न वर्ग का ढाई गुना सुधरा है। यह प्रश्न भी विचारणीय है कि यदि सोना चांदी और जमीनों के दाम बढ़ रहे हैं तो क्या महंगाई बढ़ रही है या महंगाई के कम होने के कारण सोना चांदी और जमीनों के दाम बढ़ रहे हैं? इन तीनों प्रश्नों के जब तक हम उत्तर नहीं खोज लेते तब तक हम महंगाई पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाल सकेंगे। यदि आप कहते हैं कि महंगाई बढ़ी है तो आप बताइए कि पिछले 75 वर्षों में महंगाई कितने गुना बढ़ गई और कितना जीवन स्तर नीचे चला गया? इस प्रश्न का उत्तर दिए बिना महंगाई का आकलन नहीं किया जा सकता है। मैंने जो इस संबंध में रिसर्च किया है इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि सारी दुनिया में जितनी प्रति व्यक्ति इनकम बढ़ रही है उससे बहुत कम वस्तुओं के मूल्य बढ़ रहे हैं और इस तरह कुल मिलाकर महंगाई घट रही है। भारत में भी करीब-करीब यही स्थिति है फिर भी अनेक स्वार्थी तत्व लगातार महंगाई बढ़ने का रोना रोते रहते हैं। जब कांग्रेस पार्टी की सरकार थी तो पेशेवर भाजपा के लोग इसी महंगाई का रोना रोते थे और अब यह भाजपा की सरकार आई है तो वहीं कांग्रेसी पेशेवर इस महंगाई का रोना रो रहे हैं। यह महंगाई का हल्ला करना तो राजनेताओं का और सरकारी कर्मचारियों का व्यापार है और इस व्यापार में हम सब लोग भ्रम में प्रभावित हो जाते हैं। इसलिए आज अवसर आया है कि हम महंगाई के नाम पर दुकानदारी करने वाले राजनेताओं को बेनकाब करें। सच बात यह है कि पिछले 70 वर्षों में भारत में लगातार महंगाई कम होते जा रही है और पेशेवर लोग झूठ बोलकर महंगाई शब्द की दुकानदारी कर रहे हैं ।
हम इस बात पर गंभीरता से विचार करेंगे कि महंगाई के प्रभाव का आंकलन किस प्रकार किया जा सकता है। मेरे विचार से यदि सोना-चांदी और जमीन या शेयर बाजार, मुद्रा स्थिति की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ता है तो इसका स्पष्ट अर्थ है कि महंगाई घट रही है क्योंकि आवश्यक वस्तुएं सस्ती होगी तब लोगों के पास कुछ बचत होगी और उस बचत के बदले में सोना-चांदी और जमीन या शेयर मार्केट के मूल्य बढ़ेंगे।
यदि सुविधा की वस्तुओं का प्रयोग आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं की तुलना में अधिक बढ़ता है तो इसका अर्थ है की महंगाई घट रही है क्योंकि जब महंगाई घटेगी, तभी लोग सुविधा की वस्तुएं खरीदने की तरफ आकर्षित होंगे। वर्तमान में भी सुविधा की वस्तुओं की मांग बढ़ रही है। वर्तमान समय में शराब आवागमन कृत्रिम उर्जा की मांग लगातार बढ़ रही है। लेकिन यदि सोना-चांदी, जमीन और शेयर मार्केट के मूल्य घट रहे हैं इसका अर्थ है कि महंगाई बढ़ रही है क्योंकि लोगों की क्रय शक्ति घट रही है और उपभोक्ता वस्तुओं का मूल्य बढ़ रहा है लोगों के पास बचत नहीं हो रही है। स्पष्ट है कि जिस समय महंगाई का प्रभाव पड़ता है उस समय आम लोग सोना-चांदी और जमीन बेचकर पेट भरने की जुगाड़ में लग जाते हैं इस तरह हम समझ सकते हैं कि स्वतंत्रता के बाद लगातार महंगाई घट रही है। महंगाई का झूठा हल्ला राजनेता, पूंजीपति और सरकारी कर्मचारी अपने स्वार्थ के कारण करते हैं जबकि महंगाई लगातार घट रही है। आप प्रत्यक्ष देख सकते हैं कि महंगाई का हल्ला करने वाला इन तीनों में से ही किसी वर्ग का व्यक्ति होगा।
बेरोजगारी की क्या हो परिभाषा:
मेरे कई साथियों ने यह सुझाव दिया कि हमें बेरोजगारी विषय पर भी व्यापक चर्चा करनी चाहिए। बेरोजगारी की परिभाषा सारी दुनिया में आप गूगल पर या किसी अन्य किताब में खोज लीजिए। आपको जो भी परिभाषा मिलेगी, वह पूरी तरह गलत है। बेरोजगारी की दुनिया में नई परिभाषा बनाने की जरूरत है।
अब तक रोजगार के आधार पर दो वर्ग बने हुए हैं एक है रोजगार प्राप्त और दूसरा है बेरोजगार। अब एक तीसरा वर्ग बनाए जाने की जरूरत है। उसमें एक है रोजगार प्राप्त, दूसरा है ‘उचित रोजगार की प्रतीक्षा में सक्रिय’ और तीसरा है बेरोजगार। इसका अर्थ यह हुआ कि बेरोजगार वही व्यक्ति माना जाएगा जिसे किसी स्थापित व्यवस्था द्वारा घोषित न्यूनतम श्रम मूल्य पर भी रोजगार उपलब्ध ना हो। इसका अर्थ यह हुआ कि जो व्यक्ति अपने योग्यतानुसार रोजगार की प्रतीक्षा में बेरोजगार है वह बेरोजगार नहीं माना जा सकता। क्या ऐसे प्रतीक्षारत को रोजगार देना समाज की या राज्य की जिम्मेदारी हो सकती है ... मेरे हिसाब से नहीं। कल्पना कीजिए कि एक व्यक्ति वर्तमान परिस्थितियों में भूखा होने के कारण रू. 200 में काम करने को मजबूर है और एक दूसरा व्यक्ति पढ़ा-लिखा होने के कारण हजार रुपए में भी काम करने को तैयार नहीं है। क्या रू.200 में काम कर रहे व्यक्ति को रोजगार प्राप्त और हजार रुपए में काम न करने वाले को बेरोजगार माना जा सकता है। सच बात यह है कि ऐसी गलत और भ्रामक परिभाषा बुद्धिजीवियों ने षड्यंत्रपूर्वक दुनिया में बना रखी है, इस परिभाषा को बदले जाने की जरूरत है। व्यक्ति की आवश्यकतायेँ तीन प्रकार की हैं १. मौलिक आवश्यकता २. सुविधा संबंधी आवश्यकता और ३. संपन्नता संबंधी आवश्यकता। हम व्यक्ति की मौलिक या प्राकृतिक आवश्यकताओं की तो पूर्ति को अपनी जिम्मेदारी मान सकते हैं, लेकिन उसकी इच्छाओं की पूर्ति को हम रोजगार के साथ नहीं जोड़ सकते। वह पूरी करना हमारी जिम्मेदारी भी नहीं है। दुर्भाग्य से धूर्त्त लोगों ने बेरोजगारी की गलत परिभाषा बना दी है जिसके कारण बेरोजगारों की वास्तविक संख्या छुप जाती है और प्रतीक्षारत लोगों को बेरोजगार मान लिया जाता है। इस विषय पर कल भी चर्चा जारी रहेगी । (क्रमशः)
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