फूट डालो और राज करो
जबसे अंग्रेज भारत में आये तभी से फूट डालो और राज करो की नीति भी शुरू हुई। वर्ग निर्माण, वर्ग विद्वेश और वर्ग संघर्ष इस नीति के क्रमानुसार आधार होते हैं। अंग्रेजों ने जाति और धर्म को फूट डालो और राज करो का मुख्य आधार बनाया था। स्वतंत्रता के बाद भी हमारे राजनेताओं को यह नीति बहुत पसंद आई। उन्होंने अंग्रेजों की इस नीति को और अधिक विस्तार दिया। अब उसमें छः नये आधार जोड़कर इनकी संख्या आठ कर ली गई है। जाति और धर्म तो पूर्व से थे ही, अब भाषा, क्षेत्रीयता, उम्र, लिंग, आर्थिक स्थिति, उत्पादक उपभोक्ता जैसे छः नये आधार जोड़ दिये गये हैं। सम्पूर्ण भारत के सभी राजनैतिक दल पूरी सक्रियता से आठों समाज तोड़क आधारों पर लगातार काम कर रहे हैं। कुछ राजनैतिक दलों ने तो किसी एक मुद्दे को अपना मूल आधार ही घोषित कर रखा है। साम्यवादी गरीब अमीर टकराव को, भाजपा हिन्दू मुस्लिम टकराव को, शिवसेना, राजठाकरे, डी.एम.के. ए.डी.एम.के. क्षेत्रवाद को, समाजवादी जातिवाद को मुख्य आधार बनाते हैं तो कांग्रेस समय समय पर आठों आधारों का समान उपयोग करते रहती है। सभी राजनैतिक दल लगातार वर्ग निर्माण के लिये नवे और दसवें आधार की भी तलाश कर रहे हैं जिसमें ग्रामीण शहरी, विकसित अविकसित, सरकारी कर्मचारी और अन्य के बीच या श्रमजीवी बुद्धिजीवी के बीच बहुत अधिक अन्तर बनाकर दोनों के बीच वर्ग विद्वेष के प्रयत्न हो रहे हैं।
स्पष्ट है कि ये सभी प्रयत्न फूट डालो और राज करो की नीति के अन्तर्गत हैं। इसके अन्तर्गत पहले दो वर्गो के बीच दूरी को बढ़ाया जाता है। उसके बाद उस बढ़ी हुई दूरी का एक वर्ग को अहसास कराकर दूसरे के विरूद्ध खड़ा किया जाता हैं।तीसरे चरण में एक वर्ग को प्रत्यक्ष और दूसरे को अप्रत्यक्ष सहायता दी जाती है और जब विद्वेश संघर्ष का रूप लेने लगता है तब मध्यस्थ के रूप में राजनैतिक व्यवस्था हस्तक्षेप करके अपना लाभ उठाना शुरू कर देती है।
हमारा कर्तव्य है कि हम फूट डालो और राज करों की इस घातक योजना का पर्दाफाश करें और वर्ग विद्वेश को वर्ग समन्वय में बदलें। इस संबंध में काश इंडिया डाट काम पर लगातार एक एक विषय पर चर्चा की जायेगी। आप पढ़े, प्रश्न करें तथा प्रचारित करें तो अच्छा होगा।
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