आवागमन कितनी आवश्यकता कितनी सुविधा
स्वतंत्रता और सहजीवन का तालमेल ही समाजशास्त्र है। असीम स्वतंत्रता व्यक्ति का मौलिक अधिकार है तो समाज के साथ जुड़ना उसकी मजबूरी और बाध्यता भी है कोई व्यक्ति अकेला रह सकता है क्योंकि यह उसकी स्वतंत्रता है इसलिए वह आवागमन से बच भी सकता है किंतु दूसरों के साथ जुड़ना उसकी मजबूरी भी है इसलिए आवागमन उसकी आवश्यकता भी है। व्यक्ति अपने परिवार की सीमा में रहने के लिए स्वतंत्र है किंतु विवाह के लिए उसे अन्य परिवार के साथ जुड़ना ही होगा परिवार अपनी सभी आवश्यक उपभोग की वस्तुओं का उत्पादन नहीं कर सकता और उसे उत्पादन और उपभोग की वस्तुओं का आदान प्रदान भी करना ही होगा इसलिए स्पष्ट है कि आवागमन प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता है और उसे पूरी तरह नहीं रोका जा सकता। प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा में लगा हुआ है। जन्म से मृत्यु तक उसे प्रतिस्पर्धा की स्वतंत्रता है। इस स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा के लिए भी उसे आवागमन का सहारा लेना पड़ता है। प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक रूप से दो पैरों की व्यवस्था आवागमन के लिए प्राप्त है किंतु कोई भी व्यक्ति जब आवागमन के लिए किसी वैकल्पिक साधन की सहायता लेता है तब उसकी आवागमन की आवश्यकता सुविधा में बदल जाती है यह वैकल्पिक माध्यम है असमानता का आधार बनता है और स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा को बाधित करता है जिसका परिणाम होता है अन्याय। इस वैकल्पिक माध्यम का लाभ उठाकर कुछ लोग आवागमन का उपयोग आवश्यकता से हटकर अपनी सुख-सुविधा के लिए करने लगते हैं तब यह सुविधा विलासिता में बदल जाती है। इस तरह श्रम निर्भर आवागमन आवश्यकता है तो वैकल्पिक माध्यम कभी आवश्यकता है तो कभी विलासिता ।
आवागमन के वैकल्पिक स्रोत के रूप में वर्तमान समय में एक मात्र माध्यम है कृत्रिम उर्जा। अन्य कोई माध्यम नहीं जो आवागमन को कृत्रिम गति दे सके। दुनिया के अनेक देशों ने कृत्रिम उर्जा की इस शक्ति को भारत की तुलना में कई गुना अधिक पहले समझा और उपयोग भी किया। वह कृत्रिम उर्जा की सहायता से भारत की तुलना में बहुत आगे निकल गए । उनके आवागमन की गति बहुत तेज हुई। इस तेज गति के परिणाम स्वरूप उनका आवागमन शोषण और विलासिता के रूप में बदल गया। विकसित देशों ने अविकसित देशों का भरपूर शोषण किया। चीन ने सबसे पहले इस चक्रव्यूह में प्रवेश किया चीन नए तरीके से अपना एक अलग चक्रव्यूह बनाने में सफल रहा। जहां पश्चिम के देश कृत्रिम उर्जा के माध्यम से दूसरे विकसित देशों का शोषण करते थे तो चीन ने अपने देश के श्रमजीवियों का शोषण करके स्वयं को विकसित राष्ट्र बना लिया ।
भारत ने भी विश्व प्रतिस्पर्धा में स्थान बनाने के लिए चीन का मार्ग पकड़ा किंतु चीन तानाशाह था इसलिए उसकी गति बहुत तेज रही और भारत लोकतांत्रिक था इसलिए वह चीन की गति से श्रम शोषण नहीं कर सका फिर भी भारत ने बहुत उन्नति की भले ही वह चीन की तुलना में पिछड़ गया। पश्चिम में कृत्रिम उर्जा का उपयोग विलासिता के लिए शुरू किया तो चीन ने उत्पादन वृद्धि के लिए और भारत में दोनों दिशाओं में। विकास के लिए आवागमन सस्ता हो तथा श्रम सस्ता हो यह आवश्यक है। इसके लिए कृत्रिम उर्जा को अधिकतम सस्ता रखा जाता है उद्योग और आबादी का केंद्रीयकरण भी करना पड़ता है। भारत ने सब किया आवागमन बहुत तेजी से बढा़। भारत की आबादी 70 वर्षों में चार गुनी बढ़ी किंतु आवागमन 100 गुना बढ़ गया 70 वर्षों में श्रमजीवीओं का जीवन स्तर 2 गुना पूंजीपतियों का लगभग 64 गुना बढ़ गया। ग्रामीण और लघु उद्योग बंद होकर बड़े उद्योग में बदल गए, गांव उजडते गए, शहर लगातार बढ़ते गए किंतु भारत के यह सारे प्रयत्न चीन की तरह उत्पादन वृद्धि तक सीमित न होकर विलासिता की दिशा में भी बढ़ते गए। तकनीक का तेज विकास हुआ मोबाइल, इंटरनेट ने आवागमन की आवश्यकता को बहुत घटाया किंतु सुविधा और विलासिता की भूख के कारण आवागमन लगातार बढ़ता गया। सस्ते आवागमन के कारण आम लोग जमीन पर पैर रखना ही भूल गए। विलासिता प्रतिष्ठा के साथ जुड़ गई। श्रम शोषण को पाप मानने वाले भूखों को भोजन कराना पुण्य समझने लगे। रोग प्रतिरोधक शक्ति घटने लगी और उसके लिए भी कृत्रिम मार्ग पर चलना शुरू किया गया।
ऐसे ही समय में #कोरोना का विस्फोट हुआ है कोरोना न प्राकृतिक संकट है न कृत्रिम। यदि हम आग और बारूद को इकट्ठा करेंगे तो साधारण सी चूक विस्फोट का कारण बन सकती है। जिन देशों ने जितनी अधिक तेज गति से विकास किया है। वे उतने ही अधिक परेशान हैं। जीडीपी गिर रही है। विलासिता पर संकट दिख रहा है। आवागमन की गति ठहर गई है। पैरों से चलने वाले तो कई 100 किलोमीटर चलकर घर पहुंच रहे हैं किंतु हवाई यात्रा वाले घरों में कैद हो गए हैं। यह एक प्रकार की चेतावनी है। श्रम शोषण के नए-नए तरीके खोज कर निकालना अप्रत्यक्ष पाप है सस्ते आवागमन को विलासिता का माध्यम बनाना घातक है । यह बात समझनी चाहिए। दुनिया चाहे समझे या न समझे किंतु भारत को यह प्राकृतिक संदेश समझना चाहिए और दुनिया को यह संदेश देना चाहिए कि कृत्रिम उर्जा को श्रम शोषण का माध्यम बनाना पाप है।
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