भारत सरकार का जासूसी कांड

समाज में प्रत्येक व्यक्ति के दूसरे लोगों से जो आपसी संबंध होते हैं, वह प्रायः अलग-अलग प्रकार के हो सकते हैं । मोटे तौर पर हम इन्हें आठ प्रकार में विभाजित कर सकते हैं ।

1-सहभागी 2-सहयोगी 3-समर्थक 4-प्रशंसक 5-समीक्षक 6-आलोचक 7-विरोधी 8-शत्रु

हम सब के प्रति अलग-अलग प्रकार के आकलन करके उसके साथ उसी तरह का व्यवहार करते हैं । आपसी व्यवहार में आवश्यकतानुसार एक-दूसरे की जासूसी भी होती है । हम किसी पर भी कितना भी विश्वास कर ले किंतु कुछ सतर्कता और सावधानी भी रखते हैं । इस सतर्कता या सावधानी की गुणवत्ता को ही हम जासूसी मानते हैं । जासूसी एक सामान्य बात है जिसका उपयोग परिस्थिति अनुसार प्रत्येक व्यक्ति करता है । जासूसी करना किसी भी प्रकार से कोई अपराध नहीं होता । वैसे तो इसे हम अनैतिक भी नहीं कह सकते लेकिन किसी की जासूसी करके उस जानकारी का गलत उपयोग करना अपराध या अनैतिक माना जा सकता है । आमतौर पर पति-पत्नी के बीच जासूसी की घटनाएं होती ही है । इनकम टैक्स विभाग हमेशा व्यापारियों और उद्योगपतियों की जासूसी करता है । किसी भी सरकार के लिए जासूसी को कुटनीति का महत्वपूर्ण माध्यम माना जाता है । यदि कोई सरकार जासूसी के मामले में कमजोर रहती है तो वह सरकार असफल मानी जाती है । पुराने जमाने में तो जासूसी के लिये महिलाओं को विषकन्या बनाने तक का प्रयत्न होता था । वर्तमान समय में भी इसके लिए महिलाओं का बहुत उपयोग होता है । मीडिया तो आमतौर पर जासूसी का उपयोग करती ही है । मीडिया को तो जासूसी के लिए विशेष रूप से कानूनी सुविधा भी प्राप्त है जासूसी शब्द का दुरुपयोग भी होता है । लोग दूसरों से संबंध तोड़ने के लिए उस पर ऐसे झूठे आरोप लगा भी देते हैं । चंद्रशेखर से जब कांग्रेस पार्टी अलग होना चाहती थी तब भी चंद्रशेखर पर जासूसी के आरोप लगाकर ही उसकी सरकार को गिराया गया था ।  

                                     निजता व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और जासूसी करना व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता है । स्पष्ट है कि किसी की जासूसी करने से उसकी निजता का उल्लंघन होता है । इस तरह यह बहस छिड जाती है कि जासूसी करना अपराध है या नहीं । मेरे विचार से किसी व्यक्ति की यदि जासूसी की जाती है तो उसके तरीके पर हम विचार कर सकते हैं कि जासूसी के तरीके में किसी सीमा का उल्लंघन किया गया या नहीं । कल्पना करिए कि हम किसी की गुप्त बातें सुनने के लिए उसके घर के अंदर जाकर छिप जाते हैं तो छिप जाना अपराध नहीं है लेकिन घर के अंदर घुसना तो अपराध माना जाएगा । आप किसी के घर में गुप्त रूप से कैमरा लगा देते हैं तो वह कैमरा लगाना अपराध है लेकिन कोई व्यक्ति आपके घर में आता है और आप उसकी बात गुप्त रूप से रिकॉर्ड करते हैं तो इसमें कोई अपराध नहीं है । इसलिए जासूसी करने को स्पष्ट रूप से अपराध कहना उचित नहीं है । फिर भी जासूसी करने में खतरे भी बहुत है यदि जासूसी का भेद खुल जाता है तब आपके और उसके संबंधों पर बहुत ही गहरा और बुरा प्रभाव पड़ता है । इसलिए जासूसी करने में बहुत सावधानी रखनी पड़ती है और अनावश्यक जासूसी से बचना भी पड़ता है क्योंकि कई बार लाभ की जगह नुकसान ज्यादा हो सकता है ।         

                   अब हम वर्तमान जासूसी प्रकरण की चर्चा करें । अब जासूसी के लिए कुछ अति आधुनिक तरीके सामने आ रहे हैं  । इजरायल ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिसके माध्यम से जासूसी करना बहुत ही सुविधाजनक हो गया है । इसलिए उपकरण बनाने वाली कंपनी उस उपकरण को सिर्फ सरकारों को ही देती है, अलग लोगों को नहीं । सरकारों को भी ऐसी उपकरणों का उपयोग आपराधिक मामलों में जासूसी के लिए ही करना चाहिए । राजनैतिक मामले में करना भले ही अपराध नहीं है किंतु अनैतिक तो होता ही है । साथ ही साथ गैर कानूनी भी हो सकता है । क्योंकि सरकारे किसी कानूनी सीमा में रहकर ही किसी की जासूसी कर सकती है । वर्तमान मामले में अपराधियों को छोड़कर अन्य लोगों की जासूसी हुई या नहीं इसके कोई प्रमाण नहीं है, और यदि जासूसी हुई तब वह गैर कानूनी है या अनैतिक यह भी स्पष्ट नहीं है । जबसे नरेंद्र मोदी सरकार आई है तब से भारत में आतंकवाद की घटनाएं कम हुई है । भारत में पाकिस्तान पर सफल एयर स्ट्राइक भी किया गया था । अनेक मामलों में अपराध करने के पूर्व ही अपराधी पकड़ लिए गए । इससे स्पष्ट होता है कि भारत सरकार अधिक अच्छे तरीके से जासूसी करने में सफल है । इसके लिए सरकार बधाई की पात्र है । स्वाभाविक है कि विदेशी शक्तियां भी सरकार को परेशान करने के लिए इस प्रकार की कोशिश कर सकती है । यह भी संभव है कि विपक्ष सरकार को परेशान करने के लिए इस प्रकार के सत्य या असत्य मामलों को हथियार बनाकर उपयोग कर रहा हो । साथ ही यह भी संभव है कि सरकार ने विपक्षी नेताओं की जासूसी के लिए उस यंत्र का उपयोग किया हो । लेकिन इस जासूसी का हल्ला करके भारत की संप्रभुता को नुकसान अधिक पहुंचाया जा चुका है । 2 वर्ष पूर्व भी इसी प्रकार इसी इजराइली यंत्र को आधार बनाकर ऐसा ही जोरदार हल्ला किया गया था । यहां तक कि हमारी छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने भी इस यंत्र की जांच के लिए एक जांच कमेटी बनाई थी । उस जांच कमेटी में उस समय के जी डी पी समेत कई उच्च अधिकारी शामिल किये गये थे और 8 महिनें तक लगातार जांच करने के बाद किसी आरोप की पुष्टि नहीं हो पाई । मैं नहीं समझ पा रहा कि फिर दोबारा उसी आरोप को इतने जोर-शोर से उठाने का क्या औचित्य है । यदि कोई गैरकानूनी कार्य हुआ है तो उसके लिये कानूनी तरीके से न्यायालय में सुनवाई हो रही है । लेकिन संसद में जो कुछ भी हो रहा है वह एक प्रकार से अनैतिक कार्य है । इस प्रकार के अनैतिक कार्य की निंदा होनी चाहिए । जब सरकार के पास जासूसी के इतने मजबूत उपकरण मौजूद है और सरकार तथा राजनीतिक सत्ता एक जगह इकट्ठे हैं तो यह तो यह खतरा भी स्वाभाविक है कि कोई राजनीतिक दल सरकारी उपकरण का दुरुपयोग कर सकता है अमेरिका में ऐसी जासूसी पर वहां के राष्ट्रपति को त्यागपत्र देना पड़ा था लेकिन भारत में नैतिकता के कोई मापदंड नहीं है इसलिए हम सरकार या विपक्ष के लिये नैतिकता का कोई मापदंड नही बना पा रहे है । इस संबंध मे सबसे पहले हमे यह विचार करना होगा कि सरकार और राजनैतिक दल के बीच मे अलग-अलग समूह हो । राजनैतिक दलो का कार्यपालिका मे किसी तरह का भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप नही होना चाहिये । जैसा वर्तमान भारत में है । यदि कोई प्रधान मंत्री राजनैतिक का भी सक्रिय कार्य करता होगा तो आप इस प्रकार की जासूसी को अलग अलग नही कर सकेंगे । इसलिये सरकार और दल को अलग-अलग रखने पर भी सोचा जाना चाहिये ।

                    यह बात भी विचारणीय है कि जासूसी से कुछ लोग इतने परेशान क्यो है । हम अपने सार्वजनिक जीवन को अधिक से अधिक खुला रखे, जिससे जासूसी का डर ही न हो । यदि आपकी कोई विशेष गुप्त बात है तो उसे बचाकर रखने मे और अधिक सावधान रहना चाहिये । लेकिन आप यदि कुछ गलत करते है और जासूसी के माध्यम से आपका भेद खुल जाता है तो गलत आप है या जासूसी करनेवाला, यह भी एक विवाद का विषय है । जासूसी करनेवाले ने आपके साथ धोखा किया है । यह बात तो स्पष्ट है किन्तु आप उस भेद के खुल जाने से होने वाले नुकसान से नही बच सकते । इसलिये सार्वजनिक जीवन मे अधिक खुलापन रखना ही अधिक उचित है । मेरे विचार से वर्तमान जासूसी के हमले को सिर्फ कानूनी तरीके तक ही सीमित रखना चाहिये था जिसमे विपक्ष पूरी तरह विफल रहा है ।