प्रदूषण का भार सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को देना उचित नहीं GT-439
प्रदूषण का भार सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को देना उचित नहीं
पर्यावरण प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए दुनिया भर के प्रमुख लोग अभी दुबई में इकट्ठा हुए थे। नरेंद्र मोदी जी ने अपने भाषण में यह कहा की विकसित देश पर्यावरण प्रदूषण करते हैं और विकासशील देशों को उसका खामियाजा उठाना पड़ता है यह उचित नहीं है। यदि ऐसी कोई मजबूरी है तो विकसित देश विकासशील देशों की आर्थिक मदद करें जिससे वे लोग पर्यावरण को ठीक रख सके। मैं इस सुझाव से तो सहमत हूं किंतु मैं यह बात भी जानना चाहता हूं कि भारत में जो विकसित शहर है वह सारा पर्यावरण प्रदूषण करते हैं और अविकसित क्षेत्रों को उसका खामियाजा उठाना पड़ता है। हम लोगों को अपने क्षेत्र में रिजर्व जंगल बनाने पड़ते हैं जहां पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जंगली जानवर रखे जाते हैं किसी शहर में गाय भी नहीं रख सकते क्योंकि गाए भी वहां गंदगी करती है गाय तक गांव में रखना मजबूरी है लेकिन शेर भालू चीते सब गांव में रखे जाते हैं । मेरा यह सुझाव है कि जिस तरह हम विकसित देशों से विकासशील देशों के लिए धन की मांग कर रहे हैं इस तरह हमारी सरकार क्यों नहीं शहरों से धन अधिक लेकर गांव को मदद करें। यह भी तो न्याय संगत ही है। आज मुझे यह देखकर दुख होता है कि गांव का आदमी अगर मर जाता है तो उसे ₹200000 मुआवजा मिलता है और शहर का आदमी अगर मर जाता है तो उसे 10 लाख से 50 लाख तक दिया जाता है। एक भी पर्यावरणवादी या मीडिया कर्मी किसी गांव के व्यक्ति के लिए कभी आंदोलन नहीं करते कि इस गांव के व्यक्ति को हाथी या शेर ने मार दिया है और इसे एक करोड़ या 50 लाख रुपया मुआवजा दिया जाए आज तक मैंने कभी ऐसा आंदोलन नहीं देखा और इसलिए मुझे दुख होता है कि हमारे देश के अंदर भी गांव और शहर का इतना भेदभाव है।
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