परम्परा और आधुनिकता के संघर्ष में अंधानुकरण उचित नहीं GT-440

परम्परा और आधुनिकता के संघर्ष में अंधानुकरण उचित नहीं:

वर्तमान दुनिया में परंपरागत या आधुनिक इन दो विचारधाराओं के बीच बहुत संघर्ष चल रहा है भारत में भी यह संघर्ष बहुत तेज गति से आगे बढ़ रहा है। मैं मानता हूं कि परंपरागत में आई हुई बुराइयां दूर होनी चाहिए लेकिन आंख बंद करके परंपरागत का विरोध करके हम जो आधुनिकता को अपना रहे हैं वह कहीं वर्तमान बुराइयों की अपेक्षा अधिक घातक हो रही हैं। अभी-अभी वर्तमान में कर्नाटक की एक महिला ने जिनकी कमाई हर महीने करोड़ों रुपए थी जो अति आधुनिक जीवन जी रही थी उस महिला ने अपने चार वर्ष के बेटे की हत्या कर दी क्योंकि उसने अपने पति से तलाक ले लिया था और पति से तलाक लेने के बाद मामला न्यायालय में गया तो न्यायालय ने बच्चों का पूरा अधिकार मां को सौंप दिया और पिता को यह छूट दी कि वह प्रत्येक रविवार को जाकर अपने बेटे से मुलाकात कर सकता है। यह निर्णय उस मां को बहुत खराब लगा और रविवार के पहले ही मां ने अपने बेटे की हत्या कर दी। आप विचार करिए कि आधुनिकता हमें किस दिशा की ओर ले जा रही है तलाक बहुत आसान काम हो गया है आक्रोश और हत्याएं बढ़ रही हैं। एक मां मुकदमा लड़कर अपने बच्चे का अधिकार अपने पास लेती है और वही मां अपने बेटे की इसलिए हत्या कर देती है कि यह तलाकशुदा पिता से ना मिल सके। यह एक गंभीर प्रश्न है और आधुनिकता के समर्थकों को इस बात का उत्तर देना चाहिए कि परंपरागत और आधुनिकता के बीच इस टकराव का समाधान आधुनिकता नहीं है।