महंगाई और बेरोजगारी का झूठा हल्ला GT-440
महंगाई और बेरोजगारी का झूठा हल्ला:
भारत में बेरोजगारी और गरीबी लगभग समाप्त हो गई है। वर्तमान समय में कोई भी ऐसा व्यक्ति बेरोजगार नहीं है जो शारीरिक श्रम करने के लिए तैयार हो। हमारे क्षेत्र में एक दिन के शारीरिक श्रम के बदले में कम से कम 12 किलो अनाज मिल रहा है। इस तरह बेरोजगारी शून्य हो गई है क्योंकि 10 किलो अनाज में भी काम करने के लिए मजदूर उपलब्ध नहीं है। यहां तक कि देश के दूसरे भागों में मजदूरी 18 किलो अनाज है इसलिए हमारे क्षेत्र के बहुत मजदूर काम करने के लिए बाहर चले जाते हैं। बेरोजगारी के मामले में हम मुक्त हो गए हैं। गरीबी भी समाप्त हो गई है क्योंकि 12 किलो अनाज व्यक्ति को गरीबी से बाहर करने का एक अच्छा पैमाना है। यह बात अवश्य है कि अमीर लोग बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और गरीब लोग चींटी की चाल से आगे जा रहे हैं। लेकिन जीवन स्तर सबका लगातार सुधर रहा है चाहे कोई गरीब है या अमीर है, बेरोजगार है या रोजगार प्राप्त, सबका जीवन स्तर आगे बढ़ रहा है। यदि बेरोजगारी का आकलन किया जाए तो या तो नेता लोग बहुत बेरोजगार हो गए हैं अथवा कुछ शिक्षित लोग बेरोजगार हो गए हैं जो श्रम नहीं करना चाहते। जो केवल सरकारी नौकरी के लिए जान दे रहे हैं। लेकिन इस प्रकार के नकली बेरोजगारों को बेरोजगार नहीं कहा जा सकता यह नकली बेरोजगार असली बेरोजगारों को बदनाम कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें पकौड़ी तलने में शर्म आती है, उन्हें मजदूरी करने में शर्म आती है और वह तो सिर्फ क्लर्की करना जानते हैं। ऐसे जो शैक्षिक बेरोजगार हैं उन्हें हम रोजगार प्राप्त मान रहे हैं क्योंकि वह किसी अच्छे रोजगार की प्रतीक्षा में है बेरोजगार नहीं है। महंगाई और बेरोजगारी का किसी भी प्रकार का हल्ला झूठ है राजनेताओं की आपसी लड़ाई है, सच्चाई बिल्कुल नहीं है।
मेरे एक मित्र हैं धीरज जैन। उन्होंने लिखा है कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सब लोगों को योग्यता अनुसार काम भी दे और काम के अनुसार वेतन भी दे। मैं नहीं समझा कि उनका यह विचार कितना सही है। आप विचार करिए कि यदि भारत के 100 करोड़ लोग पढ़ लिख लें तो क्या 100 करोड़ लोगों को हम किसी भी प्रकार का योग्यता अनुसार वेतन दे सकते हैं और यदि सबको उसे अनुसार वेतन दिया जाएगा तो श्रम कोई क्यों करेगा। इसलिए मेरा यह सुझाव है कि सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ कमजोरों को मदद करने की है। यदि कोई भूखा है तो उसे योग्यता अनुसार काम और अल्प समय के लिए जीवन भत्ता दिया जा सकता है। लेकिन किसी को योग्यता अनुसार वेतन नहीं दिया जा सकता वह तो आपको स्वतंत्रता से ही प्राप्त करना होगा। इसलिए मेरा यह सुझाव है कि इस बेरोजगारी की परिभाषा को बदल दिया जाए। किसी भी बेरोजगार को नौकरी देना सरकार की तब तक जिम्मेदारी है जब तक वह भूखा है या कमजोर है। जो भूखा नहीं है, मजबूत है और जो अच्छे रोजगार की प्रतीक्षा कर रहा है उसे रोजगार देना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। मैं बेरोजगारी की वर्तमान परिभाषा को गलत मानता हूँ। यह कैसे न्याय संगत हो सकता है कि एक श्रमिक को ढाई सौ रुपए में भी काम न मिले और एक डॉक्टर हजार रुपए में काम करने को तैयार न हो। सरकार डॉक्टर की चिंता करें और उस मजदूर की चिंता न करें। यह तो सरासर अन्याय है। मैं फिर से आपसे निवेदन करता हूँ कि बेरोजगारी की जो दुनिया में परिभाषा बनी हुई है वह पूरी तरह गलत है और उसे बदलने की जरूरत है।
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