विविध विषयों पर मुनि जी के लेख - वैचारिक GT - 444

श्रमजीवियों के शोषण की नीति बुद्धिजीवी ही बनाते हैं-
एक मेरे बड़े अच्छे मित्र और गंभीर विचारक नरेंद्र सिंह जी ने एक पोस्ट लिखी है इसका आशय यह है की व्यक्ति का श्रम तो व्यक्ति की जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति तक ही क्षमता रखता है उसकी पूंजीगत क्षमता तो बुद्धि ही रखती है। इसका अर्थ यह हुआ की बुद्धि के द्वारा ही धन संचय संभव है श्रम के माध्यम से नहीं। ऐसी परिस्थितियों में बुद्धिजीवी श्रमजीवियों पर हावी हो सकते हैं जैसा की दुनिया में होता रहा है। हमारी व्यवस्था का यह दायित्व है कि वह श्रम को बुद्धिजीवियों के शोषण से बचावे।
मैं नरेंद्र सिंह जी के इस पूरे विचार से पूरी तरह सहमत हूं। वर्तमान समय में बुद्धिजीवियों द्वारा लगातार श्रम शोषण के नए-नए तरीके खोजे जा रहे हैं चाहे वह तरीका धार्मिक हो राजनीतिक हो या आर्थिक हो किसी भी प्रकार का हो लेकिन उसके मूल में श्रम शोषण की इच्छा छिपी हुई है। हमारा यह कर्तव्य है कि हम इस दिशा में गंभीरता से चिंतन करें। यह चिंता करना हमारा सिर्फ कर्तव्य ही नहीं है बल्कि दायित्व है।


कट्टरता और कट्टरवाद को अलग अलग पहचानने की जरुरत-
कल रात रामानुजगंज कार्यालय से 8ः00 बजे इस विषय पर विचार मंथन हुआ की धार्मिक कट्टरता क्या है और कट्टरवाद क्या है। कट्टरता और कट्टरवाद दोनों मिले-जुले शब्द दिखते हैं किंतु मेरे विचार से दोनों में बहुत फर्क है। कट्टर वह व्यक्ति होता है, जो व्यक्ति अपनी मान्यताओं में कट्टर होता है तथा वह बिना सोचे समझे किसी दूसरे की किसी बात से तत्काल प्रभावित नहीं होता उसे कट्टर कहते हैं। गांधी पूरी तरह कट्टर थे हिंदुत्व के मामले में भी गांधी जी बहुत कट्टर थे। एक बार गांधी और सावरकर की भेंट हुई सावरकर ने गांधी जी को मांसाहार के पक्ष में बहुत सी बातें कहीं और मांसाहार करने का दबाव डाला गांधीजी एक कट्टर हिंदू थे वैचारिक रूप से भी और भावनात्मक रूप से भी। गांधी अपनी बात पर दृढ़ रहे यह थी गांधी की कट्टरता और यह थी सावरकर का कट्टरवाद।
कट्टरवादी दूसरों को अपनी बात मनवाने की जिद करता है और जो कट्टर होता है वह अपनी बात पर ध्यान रहता है। दूसरे को अपनी बात मनवाने की जिद नहीं करता। यही कट्टरता और कट्टरवाद में फर्क है। इस्लाम में कट्टरवाद बहुत अधिक है कट्टरता उतनी नहीं है। जिन्ना में धार्मिक कट्टरता नहीं थी जिन्ना नमाज भी नहीं पड़ता था वेशभूषा भी अलग तरह की थी खान-पान भी अलग तरह का था लेकिन दूसरों को अपनी बात मानने के लिए दबाव डालता था इसलिए जिन्ना को कट्टरवादी माना जाता है और गांधी को कट्टर। मैं अपने को कट्टर हिंदुत्व वाला मानता हूं। मैं भी बिना सोचे किसी के दबाव में उसकी बात को स्वीकार नहीं करता लेकिन मैं किसी दूसरे को अपनी बात मानने का दबाव भी नहीं डालता स्पष्ट है कि मैं कट्टर हूं कट्टरवादी नहीं।

सुदृढ़ सामाजिक व्यवस्था की सबसे बड़ी बाधा टूटती परिवार व्यवस्था-
वैसे तो पूरी दुनिया में ही महिला पुरुष के संबंध कमजोर हो रहे हैं परिवार व्यवस्था टूट रही है लेकिन भारत में इसकी गति बहुत तेज है। भारत दुनिया का एक ऐसा देश है जहां परिवार व्यवस्था को मान्यता प्राप्त है लेकिन धीरे-धीरे व्यवस्थाएं टूट रही है। इस संबंध में एक सर्वेक्षण किया गया जिसमें परिवारों को दो भागों में बांटा गया एक भाग में ऐसे परिवार थे जिनमें महिलाएं आधुनिक उच्च शिक्षित और आर्थिक दृष्टि से विकसित परिवार की थी दूसरे ग्रुप में वह महिलाएं थी जो पारंपरिक परिवारों की थी आर्थिक दृष्टि से मध्यम थी अल्पशिक्षित थी। कुल आबादी के हिसाब से भारत में 10ः ही परिवार ऐसे हैं जो उच्च शिक्षित संपन्न और आधुनिक हैं शेष 90ः तो पारंपरिक परिवारों के लोग हैं। सर्वे में यह बात सामने आई कि जिन परिवारों में तलाक अधिक है, आपस में विवाद है, मुकदमे चल रहे हैं, परिवार टूट रहे हैं उनकी संख्या 10ः की तुलना में 60ः है और परंपरागत परिवार 90ः होते हुए भी उनमें इस प्रकार के विवाद 40ः हैं यह एक गंभीर षोध है की विकसित उच्च शिक्षित और आधुनिक परिवारों की महिलाएं परिवार तोड़ने में 90ः पारम्परिक परिवारों की तुलना में बहुत अधिक क्यों है? इस समस्या के कारण को खोजने की आवश्यकता है।
जिस परिवार में महिलाएं अधिक आधुनिक, उच्च शिक्षित और आर्थिक दृष्टि से अधिक संपन्न है, उन परिवारों में टूटने का प्रतिशत बहुत अधिक है। इनमें से आज हम आधुनिकता पर विश्लेषण कर रहे हैं। एक सर्वमान्य सिद्धांत के अनुसार दुनिया दो भागों में बंटी हुई है, एक भाग मानता है कि जो कुछ पुराना है और पारंपरिक है वह पूरा का पूरा सही है और उसमें किसी भी प्रकार के बदलाव की जरूरत नहीं है। दूसरी ओर एक भाग यह मानता है कि जो पुराना और पारम्परिक है वह पूरी तरह बदल देने योग्य है। इस बदलाव को ही आधुनिक कहा जाता है। जबकि मेरे विचार में पारम्परिक मान्यताओं में सोच समझ कर बदलाव लाने की जरूरत है। किंतु बदलाव के लिए हर परंपरा से छेड़छाड़ करना उचित नहीं है। वर्तमान समय में जिन परिवारों में आधुनिकता, उच्च शिक्षा और सम्पन्नता एक साथ इकट्ठी हो जा रही है उन परिवारों में पुरानी सभी मान्यताओं को दकियानूशी और रूढ़िवादी कहने और मानने की एक नई परंपरा घर कर गई है। ऐसे परिवारों में संयुक्त परिवार और सामाजिक वातावरण की जगह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का भाव अधिक तेजी से बढ़ रहा है। वर्तमान समय में परिवारों के टूटने में यह आधुनिकतावाद और व्यक्तिगत स्वतंत्रता महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।

 

हिन्दू विरोधी संविधान में संशोधन की जरूरत-
मैं अपने जीवन की शुरुआत से ही यह मानता रहा कि भारत का संविधान बनाने में राजनेताओं की नियत खराब थी। कालांतर में यह बात साफ-साफ देखी गयी कि हमारे राजनेताओं ने इस संविधान का दुरुपयोग किया और उसमें मनमाने संशोधन किया। संविधान का स्वरूप तो शुरुआत से ही गड़बड़ था लेकिन बाद में तो वह एक पक्षीय रूप से हिंदुओं के विरुद्ध हथियार के रूप में प्रयोग होने लगा। अब समय बदल रहा है, अब संविधान संशोधन का अधिकार हिंदू समर्थकों के पास आने की परिस्थितियां बन रही हैं। विपक्षी दलों ने भी यह स्वीकार किया है कि सरकार तो हिंदू समर्थकों की ही बनेगी। हिंदू समर्थकों को संविधान संशोधन का अधिकार नहीं मिलना चाहिए इस बात की लड़ाई हो रही है।
मैं आप सब का आह्वान करता हूं कि यह निर्णायक समय है। इस समय हम सब लोगों को सक्रिय होकर इस बात का प्रयत्न करना चाहिए कि हम संविधान संशोधन का अधिकार प्राप्त होने तक इस संघर्ष में सक्रिय रहेंगे। जब तक हिंदू विरोधियों के हाथों से संविधान मुक्त नहीं हो जाता तब तक हम किसी भी प्रकार से बराबरी का अधिकार नहीं प्राप्त कर सकते। इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि आप अगले चुनाव में विपक्षी दलों को जो इस्लाम समर्थक हैं इतना कमजोर कर दीजिए कि वे भविष्य में सर भी ना उठा सकें। हमें संविधान में व्यापक संशोधन चाहिए, हमें संविधान संशोधन का अधिकार चाहिए।