उद्योगपतियों से रार ठानने का नतीजा : GT-448
उद्योगपतियों से रार ठानने का नतीजा :
राजनीतिक धरातल पर यह बात साफ होती जा रही है कि राहुल गांधी नेहरू की लाइन पर चलना चाहते हैं अर्थात साम्यवादी दिशा में। उद्योग धंधों को कमजोर करके सब कुछ सरकारीकरण कर देना, अधिक से अधिक सरकारी डिपार्टमेंट खोलकर सरकारी कर्मचारियों की संख्या बढ़ाना, अधिक से अधिक टैक्स वसूल करके जनता को बांटना, अधिक से अधिक विदेश से आयात करके आम लोगों को सस्ता सामान उपलब्ध कराना यह नेहरू की नीति रही है। राहुल पूरी ईमानदारी से इसी नीति पर चल रहे हैं, मनमोहन सिंह की सारी योजनाएं फेल की जा रही हैं। अभी-अभी उद्योगपतियों से राहुल के संबंध बहुत खराब हुए। राहुल गांधी यह सोच रहे थे कि उद्योगपतियों पर लगातार आक्रमण करने से उद्योगपति डर जाएंगे और कांग्रेस पार्टी को बड़ी मात्रा में धन देंगे लेकिन देश के उद्योगपतियों ने भी इस मामले में मजबूती दिखाई। दो चरण के चुनाव हो जाने के बाद सोनिया और प्रियंका को ऐसा महसूस हुआ कि हम चुनाव में बहुत कमजोर पड़ जाएंगे क्योंकि हमारे पास धन नहीं है और उद्योगपति डर नहीं रहे हैं । तब सोनिया ने उद्योगपतियों से बात करनी चाही, उद्योगपतियों ने बात करने से इनकार कर दिया। तब सोनिया गांधी ने प्रमुख उद्योगपति को एक पत्र लिखकर धन की मांग की, यद्यपि इस पत्र से राहुल गांधी खिलाफ थे लेकिन सोनिया प्रियंका ने मिलकर उद्योगपतियों के साथ समझौता करना उचित समझा, तब देश के प्रमुख उद्योगपति ने कांग्रेस पार्टी को भारी आर्थिक मदद की जिसका उल्लेख नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में किया। मेरे विचार से राहुल गांधी को अपनी नीतियों पर फिर से विचार करना चाहिए। उद्योगों को गुलाम बनाकर रखने से देश का वही हाल होगा जो मनमोहन सिंह के पहले था, जो बंगाल का हुआ, जो चीन का हो रहा है। चीन ने भी यदि उद्योगपतियों को छूट नहीं दी होती तो चीन बर्बाद हो गया होता। मैं राहुल गांधी से फिर निवेदन करना चाहता हूँ कि वह नेहरू की लाइन छोड़ें, उद्योगों को स्वतंत्रता दे, निर्यात बढ़ाने और सरकारी कर्मचारी और सरकारी करण के बारे में फिर से विचार करें। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की साम्यवादी नीति हमेशा घातक होगी। यदि राहुल गांधी ने पूंजीवाद का विरोध करके साम्यवाद की दिशा पकड़ी तो राहुल खुद भी समाप्त होंगे, कांग्रेस को भी समाप्त करेंगे, देश को भी नुकसान पहुंचाएंगे।
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