इस्लाम और भविष्य

इस्लाम और भविष्य

कुछ सर्व स्वीकृत सिद्धान्त हैं ।

1 हिन्दुत्व मे मुख्य प्रवृत्ति ब्राम्हण, इस्लाम मे क्षत्रिय, ईसाईयत मे वैष्य, और साम्यवाद मे शूद्र के समान पाई जाती है ।  

2 यदि क्षत्रिय प्रवृत्ति अनियंत्रित हो जाये तो अन्य सबको गुलाम बना लेती है ।

3 संगठन मे शक्ति होती है । संगठन बहुत ही तीव्र गति से बढ़ता है तथा उसी गति से व्यवस्था के लिये घातक होता है ।

4 साम्यवाद तथा इस्लाम तानाशाही के पक्षधर होते है । ईसाईयत और हिन्दुत्व लोकतंत्र के ।

5 साम्यवाद राज्य को सर्वोच्च मानता है तो इस्लाम धर्म को । दोनो ही समाज को सर्वोच्च नही मानते ।

6 साम्यवाद दुनियां की सर्वाधिक खतरनाक विचारधारा है और इस्लाम सर्वाधिक खतरनाक संगठन ।

7 इस्लाम किसी भी रूप मे धर्म न होकर संगठन मात्र है । इस्लाम के संगठित स्वरूप को धार्मिक दिशा देनी आवश्यक है ।

8 मुसलमान व्यक्तिगत मामले मे बहुत विश्वसनीय होते है तथा संगठनात्मक स्वरूप मे बहुत अविश्वसनीय ।

9 जो धर्म वैचारिक धरातल पर दूसरे धर्मो से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता वह धर्म नहीं है, संगठन है । इस मामले में हिन्दुत्व सबसे ऊपर और इस्लाम सबसे कमजोर है ।

        इस्लाम का प्रारंभ ही शक्ति और संगठन के स्वरूप मे हुआ । परिणाम स्वरूप वह बहुत तेज गति से दुनिया पर मजबूत होता गया । आज सम्पूर्ण विश्व मे आबादी के रूप मे इस्लाम भले ही सबसे ऊपर न हो किन्तु ताकत के मामले मे इस्लाम दुनिया की किसी भी अन्य ताकत से अधिक शक्तिशाली है । इसी विस्तारवादी चरित्र के कारण आज इस्लाम सारी दुनियां के लिये समस्या भी बन गया है । आज पूरी दुनिया के देश इस्लाम से या तो सतर्क हैं या पिंड छुड़ाना चाहते हैं । दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं जहां यदि ये कमजोर भी हैं तो वहां शान्ति से रहें । जहां ये मजबूत है वहा किसी गैर मुसलमान को न्याय नही दे सकते और जहां कमजोर हैं वहां इन्हे न्याय चाहिये । इजराईल, भारत, बर्मा आदि तो इनसे परेशान हैं ही, किन्तु अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि भी सावधान हैं तथा अब तो रूस और चीन भी इनसे मुक्त ही होना चाहते हैं ।

      सत्तर वर्षो तक भारत में मुसलमान अपने संगठित वोट बैंक की ताकत पर सम्पूर्ण राजनैतिक व्यवस्था को ब्लैकमेल करता रहा । नेहरूवादी धर्म निरपेक्षता तथा साम्यवादी समर्थन के आधार पर इन्होने सत्तर वर्ष तक मनमाने तरीके से हिन्दुओ को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाकर रखा । पिछले तीन-चार वर्षो से स्थिति मे बदलाव आया । पहली बात तो यह है कि साम्यवाद का पतन हुआ । दूसरी बात यह है कि मुसलमान पूरी दुनिया मे धार्मिक मामले मे सर्वाधिक अविश्वसनीय हुए और तीसरी बात यह है कि भारत का हिन्दू भी अपने मूल चरित्र से हटकर संगठित होने लगा । गांधीवादी सर्वाधिक शरीफ माने जाते है । शरीफ व्यक्ति संकट काल मे मूर्खता करता ही है । गांधी हत्या का कभी भारत के हिन्दू बहुमत ने समर्थन नही किया । कोई हिन्दू ऐसा गलत कार्य कर भी नही सकता था न ही समर्थन कर सकता था । नाथूराम गोडसे की मूर्खता को आधार बनाकर वामपंथियो ने गांधी वादियो को ढाल बनाया और गांधीवादी निरंतर साम्यवाद इस्लामिक गठजोड़ के सुरक्षा कवच बने रहे । अब गाँधीवादियो में भी कुछ समझदारी दिखनी शुरू हुई है ।

        हिन्दुओ के आंशिक रूप से संगठित होते ही सारा परिदृश्य बदलने लगा । भारत में इस्लाम किंकर्तव्य विमूढ़ है कि वह अपना संगठित स्वरूप छोड़कर धार्मिक दिशा की ओर मुड़े या अब भी अगले चुनाव तक प्रतीक्षा करे । भारत का मुसलमान और राजनैतिक विपक्ष पूरी तरह एक दूसरे पर निर्भर हो गये हैं । मुसलमानो को कभी-कभी तो लगता है कि अब हिन्दुओ की एकजुटता को तोड़ना असंभव है, किन्तु ज्यों ही उन्हे ऐसा लगता है त्यों ही विपक्ष उन्हे आकर फिर से मजबूत करता है क्योकि विपक्ष के लिये भी मुसलमान जीवन-मरण का प्रश्न बना हुआ है । लगता है कि कही दोनो एक साथ न डूब जायें । 

       मेरे विचार से अब इस्लाम को अपनी सोच बदलनी होगी । या तो वह संगठित इस्लाम का मोह छोड़कर धार्मिक इस्लाम की दिशा मे बढ़े या समाप्त होने की प्रतीक्षा करे । इस्लाम के वर्तमान स्वरूप के समापन की शुरूआत भारत से ही संभव है क्योकि भारत अकेला ऐसा देश है, जहां का मुसलमान अब भी दुविधा मे है । कभी तो उसे दिखता है कि हिन्दू अधिक से अधिक एकजुट होता जा रहा है तो दूसरी ओर उसे यह भी दिखता है कि विपक्ष भी लगातार एकजुट होता जा रहा है । कभी तो उसे दिखता है कि नरेंद्र मोदी बहुत ही चालाक हैं और उनसे पार पाना असंभव है तो कभी यह भी दिखता है कि संघ कोई न कोई ऐसी गंभीर गलती अवश्य करेगा जो पूरी बाजी पलट सकती है । मै तो इस विचार का हॅू कि मुसलमानो को अब पुराने सपने भूल जाने चाहिये और नई परिस्थितियों के साथ नई नीतियां बनानी चाहिये । यदि इस्लाम अपनी मनोवृत्ति न बदले तो मुसलमानो को व्यक्तिगत रूप से संशोधन की राह मे बढ़ना चाहिये ।

      भारत का मुसलमान पूरी तरह संदेह के घेरे में है । अब तक भारत मे इस्लाम को कोई खतरा नहीं था तब तो वह सड़को पर इस्लाम खतरे में है का नारा लगाता था । अब तो वास्तव मे भेड़िया आ गया है । अब इस्लाम पर आए संकट को सिर्फ भारतीय मुसलमान ही दूर कर सकता है । इस्लाम नहीं ।     

अब भी यदि वह न्याय, मानवता, संविधान, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, जैसे भारी भरकम शब्दो की आड़ मे हिम्मत रख रहा है तो वह भ्रम मे है । उसे अब तो अपनी हिम्मत तोड़ने मे ही भलाई है । इन नेताओ या टीवी मे बहस कर रहे मुस्लिम धर्मगुरूओ का कोई चरित्र नहीं । इन्हे पाला बदलने मे एक मिनट भी नहीं लगता और आप अपने को अहसाय महसूस करेंगे । अब भारत का हिन्दू जनमानस इस समस्या को निपटा कर ही दम लेगा । आपके सामने दो ही मार्ग है । या तो आप संघ परिवार से टकराने की तैयारी करिये । विपक्ष आपका साथ देगा ही । इस टकराव मे जय पराजय दोनो हैं । इस संबंध ने आपको बहुसंख्यक हिन्दुओ से न्याय की आशा छोड देनी चाहिये । 2 आप स्वयं को घोषित करिये की मै अब भारत मे सहजीवन समान नागरिक संहिता धर्म परिवर्तन कराने पर प्रतिबंध पर विश्वास करता हॅू । आपको सरकार और समाज का पूरा-पूरा संरक्षण मिलेगा । आपको तत्काल कुछ पहल करनी होगी ।

1 आप धर्म की अपेक्षा समाज को सर्वोच्च घोषित करिये ।

2 आपको जो काम कुरान करने से रोक रखे हैं उन्हे करने के लिये समाज बाध्य नही कर सकता । जो काम कुरान अनुसार करना चाहिये वैसे कार्य करने से समाज नही रोक सकता । किन्तु जो कार्य आप का स्वैच्छिक है उस संबंध मे आप समाज का निर्णय मानेगे ।

3 यदि भारत के किसी मुसलमान के साथ कोई अन्याय हो तो आप आवाज उठा सकते हैं किन्तु चेचन्या, लेबनान, इराक, बर्मा, रोहिल्या की चिंता छोड़िये । किसी व्यक्ति या समूह को नागरिकता देना या समाप्त करना वहां की संवैधानिक व्यवस्था की स्वतंत्रता है, किसी का अधिकार नही । किसी मुसलमान को तो कभी ऐसी नागरिकता भरसक नही देनी चाहिये क्योकि इनका इतिहास बहुत खराब रहा है । ये कभी राष्ट्र का अधिकार नही मानते ।

अपनी चिंता भारत तक सीमित कीजिये । वह भी इस्लाम की छोडकर न्याय की अधिक ।

 

4 कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है । इस संबंध मे पाकिस्तान गलत है । कश्मीर से धारा तीन सौ सत्तर समाप्त होनी चाहिये । ऐसी मांग करने मे आप निरंतर सक्रिय दिखे । इसमें कोई किन्तु-परन्तु मत जोड़िये ।

5 मस्जिद मे शुक्रवार की दोपहर को नमाज के बाद यदि कोई संगठनात्मक चर्चा होती है तो या तो आप विरोध करिये या शुक्रवार की नमाज घर पर पढ़िए ।

6 आप मदरसे का मोह छोढ़ दीजिये । आप बच्चो को अन्य स्कूलो मे पढाइये या मदरसो को स्थानीय इकाई ग्राम सभा नगर पंचायत की व्यवस्था मे रख दीजिये ।

7 किसी ऐसी मुसलमानो की बैठक मे मत जाइये जहां गुप्त बैठक है भले ही वह धार्मिक ही क्यो न हो ।

8 आप एक स्पष्ट पहचान बनाइये कि आप औरो से भिन्न हैं । पहचान मे आप अपने नाम के आगे या पीछे राम शब्द जोड़ सकते है । कुछ लोग राष्ट्रीय मुस्लिम मंच या किसी अन्य संस्था से भी जुड़ सकते है । कुछ लोग आर्य समाज, गायत्री परिवार मे सक्रिय हो सकते है । कुछ लोग रेड क्रास या अन्य सेवा कार्य से जुड़ सकते है । स्पष्ट दिखे कि आप औरो से भिन्न है । 

                   इस संबंध मे मेरी हिन्दुओ को भी कुछ सलाह है । दुनियां मे इस्लाम एक बहुत बड़ी ताकत है । इसे हिन्दू-मुसलमान के रूप मे न देखकर विश्व बिरादरी के साथ चलना उचित होगा । मुसलमानो में भी सुन्नी मुसलमान ही ज्यादा सक्रिय हैं । सब मुसलमानो को एक मत मानिये । शिया, सुफी या अन्य अनेक मुस्लिम सम्प्रदाय टकराव से दूर हैं । सुन्नी लोगो मे भी देखिये कि कौन नरम हो सकता है । जो लेाग स्पष्ट रूप से समान नागरिक संहिता के पक्षधर हैं उनके साथ हमारा व्यवहार हिन्दू सरीखा ही होना चाहिये । किन्तु जो लोग अब भी विपक्ष पर निर्भर हैं या स्वयं टकराने के मूड मे हैं या प्रतीक्षा कर रहे है उनके साथ प्रशासन या संघ परिवार के लोग कुछ सोचते हैं तो ऐसे लोगो के न्याय अन्याय की चिंता तब तक नही करनी चाहिये जब तक मामला व्यक्तिगत न हो । हम आम हिन्दुओ को यह नही मानना चाहिये कि टकराव ही एक मात्र मार्ग है । हमारा उद्देश्य इस्लाम से टकराना या निपटाना नहीं होना चाहिये बल्कि  हमारा उद्देश्य सत्तस वर्षो मे मुसलमानो का जो मनोबल ज्यादा बढ़ा था उसे घटाने तक ही सीमित होना चाहिये । संघ परिवार भले ही दंड को एकमात्र मार्ग माने किन्तु हमे साम, दाम, दंड, भेद सबका परिस्थिति अनुसार उपयोग करना चाहिये । हमे किसी भी रूप मे अपनी हिन्दुत्व की मूल अवधारणा के विपरीत नही जाना चाहिये । हिन्दुओ की संख्या विस्तार हमारा लक्ष्य न हो किन्तु इतनी सतर्कता अवश्य हो कि अब मुसलमान भी अपने संख्या विस्तार के प्रयत्न को छोड दे ।

   मुझे उम्मीद है कि भारत में हिन्दू मुस्लिम टकराव से अब भी बचा जा सकता है । भारत मे हिन्दू मुसलमान के बीच ध्रुवीकरण बहुत घातक है । वर्तमान स्थितियो मे यह ध्रुवीकरण विशेष रूप से मुसलमानो के विरूद्ध जायेगा । किसी भी प्रकार का टकराव हर हालत मे टलना ही चाहिये । इसमे जो साम्प्रदायिक हिन्दू मुसलमान टकराना ही चाहते है उन्ह कटने-मरने दीजिये । हम तो सिर्फ इतनी कोशिश करे कि इससे किसी शान्तिप्रिय हिन्दू-मुसलमान को कोई कष्ट न हो । इसमे भारतीय मुसलमानो की पहल और हिन्दूओ का उस पहल का तहेदिल से स्वागत ही हम सबके लिये अच्छा मार्ग हो सकता हैं ।

मंथन का अगला विषय ‘‘ राइट टू रिकाल ” होगा ।