कोरोना की आत्मकथा

कोरोना की आत्मकथा

विश्व युद्ध कभी-कभी ही होते हैं किन्तु जब होते हैं तब विश्व के राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक समीकरण बदल जाते हैं। कोरोना की बीमारी का प्रभाव भी विश्व युद्ध सरीखा ही बदलाव लाने वाला है। कोरोना का प्रभाव विश्व युद्ध से भी अधिक गंभीर हैं क्योंकि कोरोना के प्रभाव से सामाजिक पारिवारिक व्यवस्था में भी बदलाव दिख सकता है।

कोरोना ने सम्पूर्ण विश्व में उथल पुथल मचाई है। कोरोना की शुरुआत चीन से हुई। चीन ने जानबूझकर कोरोना को पैदा किया या भूल से पैदा हुआ यह बात अभी सिद्ध होना बाकी है किंतु कोरोना की बीमारी का सबसे ज्यादा लाभ चीन को हुआ यह निर्विवाद है। चीन दुनिया का अकेला ऐसा बड़ा देश है जहां धर्म समाज परिवार आदि कुछ नहीं है। चीन के लिए आर्थिक विकास ही अधिक महत्वपूर्ण होता है। चीन ने अपनी बीमारी इस प्रकार दुनिया को निर्यात की दुनिया की पूरी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था किंकर्तव्यविमूढ़ है किंतु चीन लगातार आर्थिक प्रगति की दिशा में निश्चित होकर बढ़ रहा है। चीन दुनिया को पीछे छोड़कर अकेला ही महाशक्ति बनने की दौड़ में आगे बढ़ रहा है। लेकिन चीन के समक्ष एक खतरा भी दिख रहा है। चीन सारी दुनिया में अलग थलग होता जा रहा है। चीन की विस्तारवादी नीतियां दुनिया को एकजुट भी करने लगी है। इसलिए अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि चीन आर्थिक मजबूती का लाभ उठाकर महाशक्ति बन जाएगा या विस्तार वाद की जल्दबाजी में दुनिया से कट जायेगा। जो भी होगा वह आगे पता चलेगा।

कोरोना का प्रभाव सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पडा है। अब तक दुनिया बहुत तेज गति से भौतिक विकास की दिशा में बढ़ रही थी। भौतिक विकास की भूख ने दुनिया के पर्यावरण को खत्म किया, सामाजिक संबंधों में स्वार्थ भाव बढ़ाया तथा मानवीय संबंधों को भी बहुत नुकसान पहुंचाया। सुख सुविधाओं का अधिकतम संग्रह तथा उनका अधिकतम विलासिता में उपयोग की प्रवृत्ति बढ़ती गई। पारिवारिक संबंधों में भी दरार पड़ी तो राष्ट्रीय सोच भी कमजोर हुई। कोई भी व्यक्ति जमीन पर ना चलकर अधिकतम हवा में उड़ना चाहता था। आवागमन बहुत सस्ता और सुविधाजनक होता चला गया। कोरोना ने इन सब स्थितियो बदलाव कर दिया। रोजगार के अवसर पूरी तरह बदल गए। अब तक रोजगार पैसे से जुड़ा था। अब उसमें 25% तक बदलाव दिख रहा है। 25% तक लोग अब शहरी रोजगार छोड़कर ग्रामीण रोजगार तक ही संतुष्ट हो जाएंगे। खेती किसानी को भी रोजगार मानना शुरू हो रहा है। आम लोगों की आय में 25% तक गिरावट आ सकती हैं। किंतु इसका एक दूसरा पक्ष भी है कि आम लोगों का खर्च भी 25% तक कम होगा। पहले जो अनावश्यक यात्राएं या विलासिता पर खर्च होता था उसमें कमी आना स्वभाविक हैं। फिर भी कुल मिलाकर आम आदमी की अर्थव्यवस्था कमजोर तो होगी ही।

आम आदमी की अर्थव्यवस्था कमजोर होगी तथा रोजगार के अवसर घटेंगे किंतु स्वास्थ्य पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ेगा। जिस तरह वायु जल शुद्ध हुए हैं उसके कारण हर आदमी की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ी है। दवाओं का उपयोग भी घटा है और अस्पतालों की भीड़ भी घटी है। शहरों की आबादी घटी है। आवागमन बहुत कम हुआ है। प्रकृति ने कुछ राहत महसूस की है।

कोरोना का पारिवारिक संबंधों पर भी व्यापक प्रभाव है। पारिवारिक भावना समाप्त सी हो रही थी उसमें आंशिक बदलाव दिख रहा है। परिवार में माता-पिता पति-पत्नी बच्चों के बीच दूरी घटी है। इस बदलाव का दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। आगे आने वाली पीढ़ियों के स्वभाव में बदलाव दिखेगा। बच्चे बचपन से ही मशीन की तरह मेहनत करके अधिकतम भौतिक उन्नति को ही लक्ष्य मानते थे उसमें बदलाव होगा। अवसाद, पागलपन और आत्महत्याऐं कम होगी।

अब कोरोना का चरम उत्कर्ष आ चुका है। कोरोना पिछले एक माह से पूरे विश्व में स्थिर हैं। भारत में भी स्थिर है। पहले कोरोना के टेस्ट सिर्फ बहुत गंभीर मरीजों के ही हो पाते थे इसलिए मरीज कम और मृत्यु दर अधिक थी। अब सामान्य लोगों के टेस्ट शुरू होने से मरीज अधिक और मृत्यु दर घट रही है। भारत में 1 माह पूर्व कुल आठ हज़ार मरीजों में साढे चार सौ लोग मर रहे थे तो अब बीस हज़ार मरीजों में भी मृत्यु लगभग वही है। उस समय लॉकडाउन के कारण कोरोना के विस्तार को बलपूर्वक रोक कर रखा गया था। अब बहुत छूट के बाद भी कोरोना से मृत्यु में कोई बड़ा बदलाव नहीं है। अब कोरोना सरकारी भय की तुलना में स्वयं की सतर्कता के साथ जुड़ता जा रहा है। पहले लॉकडाउन का उल्लंघन करना बहादुरी माना जाता था तो अब ऐसे उल्लंघन से डर लगने लगा है। आवागमन अपने आप कम है। ट्रेन या बसों में धक्का मुक्की का वातावरण नहीं है।

कोरोना के मामले में भारत कितना सफल कितना असफल इसका कोई निश्चित उत्तर नहीं हो सकता। यदि भारत में अब तक कोरोना से मुत्यु पांच लाख हो जाती तो हम भारत सरकार के प्रयत्नों को पूरी तरह असफल मान लेते और यदि कोरोना के मरीज 1 जून के पूर्व ही रुक जाते तो हम पूरी तरह सफल मान लेते। भारत सरकार ने पूरी इमानदारी से पूरे प्रयास किए और 1 जून तक यह मान लिया कि अब इससे अधिक खींचना संभव नहीं तो सरकार ने हथियार डाल दिए। भारत कोरोना को रोकते रोकते आर्थिक मामलों में बहुत पीछे न चला जाए यही सोचकर भारत ने 1 जून से अपनी नीति में बदलाव किया।

कोरोना के विस्तार में भारत में कुछ विशेष बातें हुई। भारत में मुसलमानों की आबादी करीब 15% है किन्तु कोरोना को बढ़ाने में इनकी भूमिका 50% की रही है। पहली बार कोरोना काल में भारतीय मुसलमानों की पोल खुली कि ये लोग भारतीय मुसलमानों से संचालित ना होकर विदेशी मुसलमानों के कहे पर आंख मूंदकर चलते हैं। ये लोग देश भर में गुप्त रूप से घूम रहे विदेशियों की राह पर ही कानूनों को तोड़ते हैं तथा कुछ गंदे या हिंसक कारनामे करते हैं। कोरोना को बढ़ाने में दूसरी मुख्य भूमिका पश्चिम भारत के प्रमुख शहरों की रही। यह दुनिया की पहली बीमारी है जिसने सम्पन्नों को अधिक प्रभावित किया और गरीब अछूते रहे। पश्चिम भारत के संपन्न लोगों ने अपने घमंड में किसी नियम कानून का पालन नहीं किया। ये लोग जो कुछ रुके थे वह भी बहुत बड़ा समाज पर अहसान मानते थे।

परिणाम हुआ कि पिछड़े गरीब क्षेत्र कोरोना से बच गए और पश्चिम भारत के बड़े शहर प्रभावित होते चले गए। इस तरह भारत दो भागों में बंटा। एक संपन्न पश्चिमी शहरी भारत जहां कोरोना बहुत तेजी से अनियंत्रित हुआ तो दूसरी पूर्वी गरीबी भारत जो अछूता रह गया। ऐसी विषम समय में संपन्न भारत के प्रवासी मजदूरों का धैर्य टूट गया। हमारे देश के विपक्षी दलों ने तो इन्हें उभारने की कोशिश की ही किंतु हमारे देश के कुछ अच्छे अच्छे विद्वानों ने भी इस समय भूल की। मैं एकपक्षीय लेखकों को कभी नहीं पढ़ता। मैं चेतन भगत, वेद प्रताप जी वैदिक, एन के सिंह जी, अभय दुबे आदि को खोजकर सुनता और पढ़ता हूँ। सबकी लेखनी का स्वर एक था कि यदि अप्रवासी मजदूरों को और अधिक रोका गया तो भूख से बहुत मौतें सम्भव है। मैं इस बात से सहमत नही था कि भूख से मरने की कोई स्थिति थी। फिर भी इन आप्रवासी मजदूरों की वापसी हुई और शहरी भारत की बीमारी शेष भारत के गाँव गाँव तक पहुंच गई।

वर्तमान स्थिति यह है कि महाराष्ट्र का थोड़ा सा भाग आधा भारत है। पूरे भारत में कुल मृत्यु बाइस हज़ार है तो अकेले महाराष्ट्र में दस हजार और वहां भी सिर्फ तीन शहर मुंबई ठाणे और पुणे में 7500। उद्धव ठाकरे बहुत शरीफ मुख्यमंत्री माने जाते हैं। उनकी शराफत ही कोरोना विस्तार का कारण बनी। ये तीनों शहर मुख्यमंत्री के व्यक्तिगत प्रभाव क्षेत्र होने से वहां के लोगों ने समझा कि कोरोना उनकी शिवसेना से डर जाएगा किन्तु कोरोना नहीं डरा और देश भर के लिए सिर दर्द बना। दिल्ली में भी जब कोरोना विकराल गति पकड़ा तो सरकार ने अहंकार छोड़ा और कुछ नियंत्रण हुआ किंतु महाराष्ट्र अब तक बड़ी समस्या बना हुआ है। हमारे छत्तीसगढ़ में जो भी लोग उधर से आए वे अधिकांश कोरोना पीड़ित है। लगता है कि उस क्षेत्र में तीसरे से भी कोई बाद का चरण आ चुका हो।

अब कोरोना का अंतिम चरण है। कोरोना एक बीमारी की तरह रहेगा। बचने के लिए स्वयं सतर्क रहना होगा। सरकार आपकी मदद करेगी किंतु सरकार का पूरा ध्यान आर्थिक क्षेत्र में है। भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत का आह्वान किया है। पूरी दुनिया की टक्कर चीन से है किंतु चीन से सबसे ज्यादा नजदीक भारत हैं। भारत के लिए यह जीवन मरण का प्रश्न है। विपक्ष नहीं चाहता कि भारत इस दिशा में आगे बढ़े विपक्ष चाहता है कि भारत औद्योगिक विस्तार की जगह गरीबों को पैसा बांटने का काम करें। इस तरह विपक्ष अप्रत्यक्ष रूप से चीन के साथ आर्थिक प्रतिस्पर्धा को टालना चाहता है। मैं सरकार के पक्ष में हूं। गरीबों के लिए सरकार जो कर रही है वह पर्याप्त है। सरकार को सारे श्रम कानून समाप्त कर देना चाहिए। विदेशों से आयात कम से कम हो और निर्यात बढ़े। चीन ने तकनीक का उपयोग करके विकास किया है। भारत भी तकनीक का अधिकतम उपयोग करें। महंगाई को उस सीमा तक बढ़ने दे कि घरेलू खपत बहुत कम हो जावे। कृत्रिम ऊर्जा को इतना महंगा कर दें कि आवागमन कम हो तथा आयात भी कम हो। सरकार आत्मनिर्भर भारत की दिशा में तेजी से बढ़े और हम आप मिलकर कोरोना से बचने का प्रयत्न करें। अनावश्यक आवागमन बंद करें। अनावश्यक उपभोग रोक दें। विकसित तकनीक का अधिक उपयोग करें। यदि हम आर्थिक आधार पर चीन के समक्ष टिक जाने में सफल रहे तो कोरोना रूपी विश्व संकट भारत के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है।