हिंदुत्व और राममन्दिर १ GT 441
1-साम्यवाद और इस्लाम के बल पर कांग्रेस जिंदा -
राम मंदिर के उद्घाटन में न जाने का निर्णय कांग्रेस पार्टी ने बहुत सोच समझ कर किया है। यह निर्णय पूरी तरह कांग्रेस पार्टी की विचारधारा के अनुरूप है। दुनिया में जो राजनैतिक धु्रवीकरण बना हुआ है उसमें एक तरह साम्यवाद, इस्लाम और कांग्रेस पार्टी शामिल है। तो दूसरी और पश्चिम के लोकतांत्रिक देश ईसाईयत और हिंदुत्व एकजुट हो रहा है। हमास और इजराइल के टकराव में भी कांग्रेस पार्टी ने अपनी सोच के अनुसार ही मार्ग अपनाया। वर्तमान भारत में कांग्रेस पार्टी किसी भी परिस्थिति में साम्यवाद और इस्लाम से बाहर नहीं जा सकती। ऐसे वातावरण में उस राम मंदिर के उद्घाटन में जो बाबरी मस्जिद को हटाकर बन रहा है उसमें कांग्रेस पार्टी का शामिल होना उसके लिए आत्मघाती कदम होता। जब 70 वर्षों तक कांग्रेस पार्टी में मुस्लिम सांप्रदायिकता और साम्यवादी, तानाशाही के कंधे पर चढ़कर सरकार चलाई है तो इतनी जल्दी कांग्रेस पार्टी धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक बन जाए यह न तो संभव दिखता है न उचित। क्योंकि यदि कांग्रेस पार्टी राम मंदिर उद्घाटन में चली भी जाए तब भी उसे लाभ कम होता और नुकसान अधिक हो सकता है। क्योंकि साम्यवाद और इस्लाम की ताकत पर ही कांग्रेस पार्टी जिंदा है और इन दोनों की कीमत पर कांग्रेस पार्टी द्वारा हिंदुओं को अपने साथ लेने का प्रयास आत्मघाती कदम होता।
इस उद्घाटन में कांग्रेस के साथ-साथ शंकराचार्य भी नहीं जा रहे हैं। लेकिन दोनों के कारण अलग-अलग है। चार शंकराचार्य में से तीन बीजेपी समर्थक है और एक कांग्रेस समर्थक। कांग्रेस समर्थक शंकराचार्य को यह कह कर न्योता नहीं दिया गया कि उनका मामला तो न्यायालय में चल रहा है और जब तक न्यायालय निर्णय नहीं दे देता तब तक उनकी जगह पर वासुदेवाचार्य जी ही शंकराचार्य माने गए हैं। दूसरी बात यह भी है कि यह आयोजन शंकराचार्य के नेतृत्व में न होकर राजनेताओं के नेतृत्व में आयोजित है। स्पष्ट है कि राम मंदिर आंदोलन की लड़ाई संघ और भाजपा के नेतृत्व में लड़ी गई। कांग्रेस पार्टी ने इस आंदोलन का विरोध किया था। आंदोलन करने वालों में कोई शंकराचार्य भी शामिल नहीं थे यद्यपि बाहर से उनका समर्थन था। जेल जाने वाले और मुकदमा लड़ने वालों में भी कोई शंकराचार्य नहीं थे। इसलिए इस सफलता का श्रेय लेने में शंकराचार्य यदि पीछे हैं तो उसमें गलत क्या है? कांग्रेस पार्टी तो इसलिए जाना ठीक नहीं समझती कि उसने इस आंदोलन का विरोध किया था और वहां जाने से लोग वहां कांग्रेसियों का मजाक उड़ाएंगे। लेकिन तीन शंकराचार्य इस आंदोलन के समर्थक थे और आज भी इस कार्यक्रम के समर्थक हैं। भले ही इस राजनैतिक जश्न में आगे बढ़कर शामिल न हो रहे हो। शंकराचार्याे का न आना भी तर्कसंगत है और कांग्रेस का न आना भी उनके हिसाब से उचित है। चारों शंकराचार्य राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के विरोध में हैं यह झूठी खबर फैलाई गई। श्रृंगेरी शारदा पीठ और द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य ने बकायदा चिट्ठी लिख कर खबरों का खंडन किया है। दोनों शंकराचार्य ने कार्यक्रम को आशीर्वाद दिया है और कहा है कि धर्म द्वेषियो ने उनके बारे में झूठी खबर प्रचारित की है।
2-संघ के नेतृत्व में चला राम मंदिर आंदोलन
आदर्श स्थिति में समाज व्यवस्था सर्वाेच्च होती है और धर्म सत्ता तथा राज्य सत्ता उसकी सहायक। अपराधियों से शरीफ लोगों की सुरक्षा के लिए सक्रिय इकाई को हम व्यवस्था कहते हैं। धर्म सत्ता ऐसे अपराधियों का हृदय परिवर्तन करती है, मार्गदर्शन करती है। समाज व्यवस्था बहिष्कार के माध्यम से ऐसे अपराधियों को अनुशासित करती है। राज्य व्यवस्था ऐसे अपराधियों को शासित करती है, दंडित करती है। व्यवस्था के तीनों अंगों में तालमेल होना चाहिए लेकिन वर्तमान समय में राज्य सत्ता ने धर्म सत्ता और समाज व्यवस्था को पंगू बना दिया है। पिछले वर्षों में जब हमारी राज्य व्यवस्था को अंग्रेजों ने गुलाम बना लिया था तब गांधी के नेतृत्व में अहिंसक लड़ाई के माध्यम से हम स्वतंत्र हुए। इस स्वतंत्रता का श्रेय गांधी को मिला और उसका लाभ 70 वर्षों तक नेहरू परिवार ने उठाया। हमारी धर्म व्यवस्था को मुसलमानों ने खतरे में डाला और उस खतरे से बचाव के लिए प्रतीक स्वरूप संघ परिवार के नेतृत्व में हमने राम मंदिर की लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई में हम विजयी हुए और प्रतीक स्वरूप संघ के नेतृत्व में 22 जनवरी को राम मंदिर का उद्घाटन हो रहा है। इस लड़ाई में विजयी होने के लिए संघ उसी तरह प्रशंसा का पात्र हैं जिस तरह स्वतंत्रता संघर्ष में गांधी को प्रशंसा प्राप्त हुई थी। आज कांग्रेस और साम्यवादी मिलकर उसी तरह इस खुशी के क्षण में बाधा पैदा कर रहे हैं जिस तरह स्वतंत्रता के समय गांधी के नेतृत्व को संघ परिवार ने मानने से इनकार कर दिया था। सच बात यह है कि गांधी ने स्वतंत्रता दिलाई तो समाज गांधी की प्रशंसा करेगा और संघ ने धार्मिक आजादी दिलाई तो समाज संघ की भी प्रशंसा करेगा। हम तो समाज को सर्वाेच्च मानने वाले हैं इसलिए हम दोनों को प्रशंसक हैं।
3-मोदी के द्वारा प्राणप्रतिश्ठा को समर्थन
राम मंदिर उद्घाटन की चर्चा का हमारा आज अंतिम दिन है। राम मंदिर का उद्घाटन नरेंद्र मोदी को ही करना चाहिए। क्योंकि राम मंदिर सिर्फ हिंदुओं का धर्म स्थान नहीं है बल्कि वह तो पूरे समाज का प्रेरणा केंद्र है। यदि कोई शंकराचार्य राम मंदिर पर अपना कोई विशेष अधिकार बतावे तो वह गलत है। क्योंकि राम जन्म स्थान शंकराचार्य के पहले का था बाद का नहीं। यदि राम मंदिर हिंदुओं का स्थान भी है तो हिंदू धर्म शंकराचार्य से भी पहले था। शंकराचार्य जी ने हिंदू धर्म को सशक्त किया था और वर्तमान परिस्थितियों में शंकराचार्य की जगह कोई नया धर्माचार्य भी हिंदुत्व को नए ढंग से परिभाषित भी कर सकता है और आगे भी बढ़ा सकता है। हिंदुत्व की जो परिभाषा गांधी ने दी थी वह सबसे अच्छी परिभाषा मानी जाती है। उस परिभाषा के आधार पर वर्तमान शंकराचार्यों को भी यह बात स्पष्ट करनी चाहिए कि वह छुआ छूत के विषय में क्या विचार रखते हैं। वे वर्ण व्यवस्था को जन्म के आधार पर ठीक मानते हैं या कर्म के आधार पर। वे अन्य धर्मावलम्बियों को हिंदू धर्म स्थलों पर जाने के विषय में उदार दृष्टि को रखते हैं या कट्टर हैं। इस प्रकार के कुछ प्रश्नों पर कट्टर हिंदुत्व को गंभीरता से सोचना चाहिए। अब दुनिया हिंदुत्व की प्रतीक्षा कर रही है कट्टरवादी हिंदुत्व की नहीं। हम आधुनिकतावाद के विरुद्ध है इसका अर्थ यह नहीं कि हम रूढ़िवाद का समर्थन कर रहे हैं। हम वर्तमान वातावरण के अनुसार रूढ़िवाद में संशोधन का प्रस्ताव करते हैं और इस दृष्टि से राम मंदिर के 22 जनवरी का उद्घाटन की पूरी प्रक्रिया का समर्थन करते हैं।
राम मंदिर उद्घाटन के संदर्भ में नरेंद्र मोदी पूरे के पूरे धार्मिक हो गए हैं वह अनुष्ठान कर रहे हैं, जमीन में सो रहे हैं, फल फूल खा रहे हैं, प्रतिदिन मंदिरों में जा रहे हैं, कुछ धार्मिक प्रवचन भी दे रहे हैं। हर तरह से नरेंद्र मोदी धर्म गुरु बनने का प्रयास कर रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं है की राजनीति से रिटायरमेंट के बाद नरेंद्र मोदी कोई बड़े धर्मगुरु बनने की ओर प्रयत्नशील हो कहीं शंकराचार्य को ऐसा तो खतरा महसूस नहीं हो रहा है क्योंकि नरेंद्र मोदी बुढ़ापे में भी घर में चुप बैठने वाले जीव तो नहीं है निरंतर सक्रिय रहते हैं कभी आराम नहीं करते। कुछ ना कुछ समाज के बारे में सोचते रहते हैं। इसलिए कुछ मन में ऐसा संदेह हो रहा है कि नरेंद्र मोदी भविष्य में राष्ट्रपति तो बनेंगे नहीं वैसी स्थिति में वे शंकराचार्य का स्थान ले सकते हैं। नाम भले शंकराचार्य ना हो नरेंद्र आचार्य हो और कोई नाम हो लेकिन बड़े धर्मगुरु बन सकते हैं मेरे विचार से यह अच्छा ही होगा कि नरेंद्र मोदी सरिखा एक साफ सुथरी नियत वाला व्यक्ति जिसे राजनीति का भी पूरा अनुभव हो समाज सेवा का भी पूरा अनुभव हो और वह धर्माचार्य बन जाए। भविष्य क्या होगा यह तो सिर्फ अटकल ही लगाई जा सकती है लेकिन संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। आज दुनिया की सामाजिक व्यवस्था को ऐसे धर्म गुरुओं के मार्गदर्शन और नेतृत्व की जरूरत है।
4-हिदुत्व हुआ असुरक्षा से मुक्त
आज 22 जनवरी 2024 दोपहर के 1ः00 बजे हैं आज का दिन ऐतिहासिक दिन है। जिस तरह भारत संन 47 में विदेशियों से आजाद हुआ था इस तरह आज हिंदुत्व की आजादी का दिन है। यह सिर्फ राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि हजारों वर्षों से हिंदुत्व की असुरक्षा से मुक्ति का दिन है। अब सुरक्षा की दृष्टि से आस्वस्थ होने का दिन है। इस्लाम और साम्यवाद भारतीय राजाओं के साथ मिलकर हिंदुत्व को समाप्त करने का षड्यंत्र कर रहे थे। आज के दिन हिंदुत्व अपने को सुरक्षित महसूस करने लगा है क्योंकि हिंदुओं ने आक्रमणकारी मुसलमानो से राम जन्मभूमि संवैधानिक तरीके से वापस कर ली है। यह कोई साधारण दिन नहीं है क्योंकि दुनिया में मुसलमान एक बार जिस चीज पर कब्जा कर लेता है उसको मरते तक नहीं छोड़त लेकिन आज उसे कब्जा किए हुए राम जन्म स्थान को छोड़ने का दुर्दिन देखना पड़ा। आज से अब हिंदुत्व यह महसूस कर रहा है कि साम्यवाद और इस्लाम मिलकर भी हिंदुत्व को समाप्त नहीं कर पाएंगे। इसलिए आज के दिन को हम ऐतिहासिक घटना के रूप में मान रहे हैं। हिंदुत्व की सुरक्षा का कार्य मेरे हिसाब से अब पूरा हो गया है, अब हिंदुत्व एकजुट है सुरक्षित है खतरे से बाहर है। अब हमें नई नीतियों पर विचार करना चाहिए। इस संबंध में हम कल फिर अपने विचार को आगे बढ़ाएंगे।
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