यदि लक्ष्य चुनाव है तो गाँधी नाम की दुकानदारी क्यों? GT - 444

यदि लक्ष्य चुनाव है तो गाँधी नाम की दुकानदारी क्यों?-
3 दिन से बनारस में था वहां दल मुक्त भारत का कार्यक्रम चल रहा था। उस कार्यक्रम में तीसरे दिन गांधीवादी और कम्युनिस्ट ही वक्ता थे। सभी वक्ताओं ने एक स्वर से नरेंद्र मोदी की आलोचना की। पूरा कार्यक्रम चुनावी था मंच से हर आदमी यही कह रहा था कि इस चुनाव में नरेंद्र मोदी को नहीं जितने देना है। मैं अकेला मंच पर था जिसने इस बात पर प्रश्न उठाया था कि क्या गांधीवादियों का यही काम है? गांधी कभी सत्ता की राजनीति से जुड़े हुए नहीं थे, गांधी किसी संपत्ति के लिए नहीं लड़ रहे थे, गांधी किसी पद के लिए नहीं लड़ रहे थे। आज जो भी वक्ता यहां मंच से भाषण दे रहे हैं, वह सत्ता संपत्ति और पद की लड़ाई में लिप्त है। गांधी लोक स्वराज्य की लड़ाई लड़ रहे थे और हमारे गांधीवादी संपत्ति की लड़ाई लड़ रहे हैं मैं नहीं समझता कि गांधी की दिशा के विपरीत गांधीवादी क्यों जा रहे हैं। मैंने यह प्रश्न भी जोरदार तरीके से उठाया कि यदि आपको राजनीति ही करनी है। यदि आपको चुनाव में ही सक्रिय होना है तो गांधी नाम की दुकानदारी क्यों कर रहे हैं? आप किसी के भी पक्ष में काम कीजिए लेकिन गांधी के नाम का दुरुपयोग मत कीजिए। मेरे भाषण की श्रोताओं ने प्रशंसा की और मंच पर बैठे लोग भी मेरे भाषण का विरोध नहीं कर सके। मैं यह महसूस करता हूं कि गांधीवादी पूरी तरह गलत दिशा में जा रहे हैं। सत्ता संपत्ति और पद के लिए लड़ना गांधी विचार से मेल नहीं खाता।