जन जागरण और शासन: हमारी दोहरी भूमिका की विवेकपूर्ण रणनीति

 जन जागरण और शासन: हमारी दोहरी भूमिका की विवेकपूर्ण रणनीति

17 जुलाई प्रातः कालीन सत्र । इस समय भारत में हम लोगों के पक्ष की सरकार कार्य कर रही है। स्पष्ट है कि सरकार को सलाह देने में हम सब साथियों की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका है । सरकार भी जानती है संघ भी जानता है हम लोग भी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि आरक्षण बहुत घातक है सामाजिक व्यवस्था में सरकार का हस्तक्षेप कम से कम होना चाहिए सरकार के कानून बहुत कम होने चाहिए। हमारी सभी समस्याओं के लिए वर्तमान संविधान या तो घातक है या अनुपयुक्त है इसमें व्यापक संशोधन भी होना चाहिए हम एक स्वतंत्र अर्थ पालिका भी बनाना चाहते हैं हम परिवार और गांव को संवैधानिक मान्यता भी देने के पक्षधर हैं हम महिला पुरुष के भेदभाव समाप्त करने के भी पक्षधर हैं इसके बाद भी हम यह नहीं चाहते हैं की सरकार ऐसे मामलों में पहल करें क्योंकि हमें इस बात का भी अच्छी तरह एहसास है की वर्तमान सरकार बहुत थोड़े से बहुमत से चल रही है। अभी भारत में नेहरू परिवार साम्यवाद सांप्रदायिक मुसलमान तथा कुछ अन्य स्वार्थी तत्वों को मिलाकर 48% लोग सरकार को गिराने की ताक में बैठे हुए हैं ऐसे वातावरण में यदि हम लोगों ने कोई भी ऐसा कदम उठाया जिसके कारण हमारे दो या तीन प्रतिशत लोग भी हमसे किनारे हो सकते हैं अलग हो सकते हैं तो हम संकट में आ जाएंगे। हमारा अस्तित्व ही नहीं रहेगा क्योंकि विपक्ष इस ताक में बैठा हुआ है कि किसी तरह हिंदुओं में फूट डाली जाए किसी तरह कुछ प्रतिशत दलित आदिवासियों महिलाओं गरीबों या अन्य किसी भी नाम पर सिर्फ दो-तीन प्रतिशत लोगों को ही इधर से उधर करना है हार जीत का पलड़ा पलट जाएगा। इसलिए सरकार की मजबूरी है कि उसे इन दो-तीन प्रतिशत लोगों के सामने ब्लैकमेल होना पड़ता है। इसलिए हम आरक्षण का विरोध नहीं कर सकते हम मुट्ठी भर धूर्त महिलाओं को नाराज नहीं कर सकते हम आतंकवादी सिखों को भी नाराज नहीं कर सकते क्योंकि विपक्ष ताक में बैठा हुआ है इसलिए मजबूरी में सब कुछ जानते हुए भी हमें ऐसे लोगों के साथ समझौते करने पड़ते हैं। यह तो सरकार का और विपक्ष का संतुलन है‌। लेकिन इसके साथ-साथ सामाजिक वातावरण में अपने पक्ष को लगातार मजबूत बनाए रखना चाहते हैं कि वर्तमान समाज व्यवस्था में उचित क्या है। आरक्षण समाप्त होना चाहिए आदिवासी गैर आदिवासी दलित महिला पुरुष का जातिगत भेदभाव गलत है संविधान में व्यापक बदलाव होना चाहिए हमारी व्यवस्था में परिवार और गांव को भी संवैधानिक मान्यता मिलनी चाहिए लेकिन हम इस बात के लिए मजबूर हैं कि हम यह सब अच्छी बातें सरकार के माध्यम से नहीं करना चाहते बल्कि हम इन सब अच्छी बातों के लिए जन जागरण करना चाहते हैं अर्थात समाज के बीच में इन सब अच्छी बातों की मांग उठ समाज को जो कार्य करना चाहिए वह कार्य हम समाज को सलाह देते हैं और वह कार्य सरकार से नहीं करना चाहते इस तरह हमारी यह दोहरी भूमिका है जो वर्तमान समय की जरूरत है वर्तमान नाजुक वातावरण में बहुत संभाल कर सलाह देने की जरूरत है मैं आपके सामने स्पष्ट किया कि हम समाज को कुछ अलग तरह की सलाह देते हैं और सरकार को कुछ अलग तरह की। हमारी दोहरी भाषा हमारी नियत का प्रमाण नहीं है परिस्थितियों की मजबूरी है।