राष्ट्रभक्त कौन? पंडित नेहरू या नाथु राम गोडसे?

राष्ट्रभक्त कौन? पंडित नेहरू या नाथु राम गोडसे?

भारत मे दो धारणाए लम्बे समय से सक्रिय रही है । 1) कटटरवादी हिन्दूत्व की अवधारणा, 2) हिन्दूत्व विरोधी अवधारणा  । स्वतंत्रता संघर्ष में महात्मा गांधी ने उदारवादी हिन्दुत्व की अवधारणा प्रस्तुत की किन्तु उपरोक्त दोनो अवधारणाओ का गांधी को समर्थन नहीं मिला । गोडसे कटटरवादी हिन्दूत्व की धारणाओ से ओत-प्रोत था तो पंडित नेहरू हिन्दुत्व विरोधी अवधारणाओ के प्रतीक रहे ।

           व्यक्ति दो प्रकार के होते हैं । 1 संचालक 2 संचालित। संचालक को अँग्रेजी में मोटिवेटर कहते है और संचालित को मोटिवेटेड। जो विचारधारा संचालक की मृत्यु के पश्चात भी बढ़ती जाती है वह विचार धारा वाद बन जाती है और जो संचालित होते है वे ऐसी विचार धारा के भक्त हो जाते है । स्वामी दयानंद हेडगेवार गांधी संचालक की श्रेणी में माने जा सकते है । इसी तरह पंडित  नेहरू को भी हम संचालक मान सकते है और गोडसे को संचालित । स्पष्ट है कि संचालक बुद्धि प्रधान होता है संचालित भावना प्रधान ।  गोडसे किसी विचार धारा से प्रभावित था, नेहरू की अपनी स्वयं की विचार धारा थी । नेहरू ने गांधी के साथ स्वतंत्रता संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर काम किया किन्तु नेहरू स्वतंत्रता आंदोलन को छोड़कर  किसी भी मामले मे कभी गांधी विचारो से सहमत नही रहे । गोडसे  कटटर वादी हिन्दुत्व की विचार धारा के प्रति पूर्णतः समर्पित था तो नेहरू किसी के प्रति कभी समर्पित नही रहे ।

           स्वतंत्रता के शीघ्र बाद गोडसे ने गांधी के शरीर की हत्या कर दी और पंडित नेहरू ने विचारो की । गांधी हत्या के साथ गांधी युग भी समाप्त हो गया और गांधी विचार भी । क्योकि एक पक्ष गांधी के नाम का विरोधी था तो दूसरा गांधी विचार का । मै यह कह सकता हॅू कि गांधी की हत्या गोडसे के मूर्खता पूर्ण कार्य का  परिणाम थी । गोडसे की इस मूर्खता ने पंडित नेहरू का काम और आसान कर दिया क्योकि यदि गांधी जीवित रहते तो पंडित नेहरू को परेशानी हो सकती थी । गोडसे की मूर्खता ने संध को भी अल्पकाल के लिये प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया । जिससे नेहरू जी को और आसानी हो गई ।

               पंडित नेहरू का कार्य ठीक था पर नीयत पर हमेशा संदेह रहा । उनका व्यक्तिगत जीवन भी गांधी के विपरीत था तथा सामाजिक जीवन भी । गांधी अकेंद्रित और न्यूनतम शासन के पक्षधर थे तो नेहरू केन्द्रित ओर अधिकतम शासन के । गांधी किसी की नकल न करके देश-काल परिस्थिति अनुसार स्वतंत्र कार्य प्रणाली के पक्षधर थे तो नेहरू पश्चिम या साम्यवाद की नकल करते थे । दूसरी ओर गोडसे का कार्य गलत था किन्तु नीयत ठीक थी । गोडसे की नीयत में अंध राष्ट्र भक्ति थी तो नेहरू की नीयत में व्यक्तिगत और परिवारिक स्वार्थ भी छिपा हुआ था । नेहरू ने लम्बी जेल काटी, इस उम्मीद के साथ कि स्वतंत्र भारत मे उन्हे कुछ न कुछ सत्ता का लाभ मिलेगा । दूसरी ओर गोडसे यह जानता था कि गांधी हत्या के बाद उसे फांसी ही होगी, और जीवित रहने का कोई व्यक्गित या पारिवारिक लाभ नही मिलेगा । प्रश्न उठता है कि दोनो की तुलना मे ठीक कौन? यह स्पष्ट है कि गोडसे के कार्य और नेहरु की सोच ने मिलकर देश को अपूर्णनीय क्षति पहुंचाई और आज तक उसका परिणाम भारत भुगत रहा है । प्रश्न उठता है कि यदि एक पिता ने अपने परिवार के कष्ट दूर करने के लिये किसी ज्योतिषी के समझाने से अपने पूत्र की बलि चढ़ा दी तो उस पिता ने किस सीमा तक गलत किया । एक मूर्ख ने अपने पिता द्वारा बहुत मेहनत से एकठ्ठा की गयी चंदन की लकड़ी को चाय बनाने मे जला दिया तो पूत्र कितना अपराधी? यदि किसी मूर्ख पुत्र ने अपने पिता की गर्दन मे लिपटा जहरीला साँप देखकर साँप सहित गर्दन काट दी तो पुत्र कितना अपराधी? यदि गोडसे ने किसी विचार धारा से प्रभावित होकर गांधी हत्या को ही राष्ट्र की समस्याओ का उचित समाधान मानकर उनकी हत्या कर दी तो क्या गोडसे का कार्य गलत माना जाए और कितना गलत? यदि किसी व्यक्ति का कार्य गलत होता है तो कानून उसे दंडित करता है । इस तरह गोडसे को कानून के द्वारा फांसी दिया जाना उचित कदम है । किन्तु भारत मे अभिव्यक्ति की आजादी है । ऐसी आजादी का दुरूपयोग करके कोई संगठन सामान्य युवको को गलत दिशा में जाने का उत्प्रेरित करे, तो ऐसे संगठन की विचार धारा को समाज ही चुनौती दे सकता हैं, कानून नही, सरकार नही । दुर्भाग्य है कि भारत मे ऐसी विचार धारा भी आज तक विस्तार पा रही है क्योकि उसे चुनौती देने की अपेक्षा उसकी गलतियो का लाभ उठाने का प्रयास हो रहा है ।

             भारत के लिये आदर्श स्थिति होती कि गोडसे सरीखा देश भक्त बालक गांधी के सम्पर्क में आया होता तो आज नेहरू की विचार धारा की तुलना मे गांधी की विचार धारा गोडसे के माध्यम से अधिक अच्छी तरह स्थापित हो पाती परन्तु ऐसा नही हुआ और  गोडसे एक गलत विचार धारा के प्रभाव मे चला गया और उसके दुष्परिणाम आज तक हम देख रहे है ।  

          वर्तमान स्थिति मे अब पुनः भारत को तीस जनवरी 1948 से अपनी विचार यात्रा प्रारंभ करनी चाहिये । दोनो ही विचार धाराए भारत के लिये घातक है । चाहे वह गोडसे की हो या नेहरू की । गोडसे से घृणा और नेहरू का महिमामंडन भारत के लिये घातक है । क्योकि गोडसे की क्रिया गलत थी और नीयत राष्ट्र भक्ति की ओर,  अपितु नेहरू की क्रिया ठीक थी परन्तु नीयत अपने व्यक्तिगत उत्थान की । दोनो की उचित समीक्षा करके भारत को नये मार्ग पर चलना चाहिये । मेरा स्पष्ट मत है कि भारत को कट्टर वादी  हिन्दूत्व और विदेशो की अंधाधुंद नकल का मार्ग छोड़कर अपने भारतीय यथार्थ को देश-काल परिस्थिति की कसौटी पर कसकर नया मार्ग तलाशना चाहिये । गांधी हमारे आदर्श थे, हैं और भविष्य में भी मार्ग दर्शक बने रहेंगे ।