भारत की प्रमुख समस्याएँ और समाधान
भारत की प्रमुख समस्याएँ और समाधान
भारत में कुल समस्याएँ 5 प्रकार की दिखती हैं- (1) वास्तविक (2) कृत्रिम (3) प्राकृतिक (4) भूमण्डलीय (5) भ्रम या असत्य ।
(1) वास्तविक समस्याएँ वे होती हैं जो अपराध भी होती है तथा समस्या भी । ये समस्याएँ 5 प्रकार ही मानी जाती है- (1) चोरी, डकैती और लूट (2) बलात्कार (3) मिलावट और कमतौलना (4) जालसाजी धोखाधड़ी (5) बलप्रयोग हिंसा आतंकवाद । ये 5 प्रकार की समस्याएँ भारत में स्वतंत्रता के बाद लगातार बढ़ रही हैं सरकारे चाहे किसी की भी बनी हो । क्योंकि राज्य इन समस्याओं के समाधान में आवश्यकता से बहुत कम सक्रिय है।
(2) कृत्रिम समस्याएँ मुख्य रुप से 6 प्रकार की मानी जाती हैं- (1) चरित्र पतन (2) भ्रष्टाचार (3) जातीय कटुता (4) साम्प्रदायिकता (5) आर्थिक असमानता वृद्धि (6) श्रम, बुद्धि और धन के बीच बढ़ती दूरी अर्थात श्रम शोषण । इन 6 समस्याओं के अतिरिक्त महिला उत्पीड़न, वन अपराध असमानता, विदेशी कम्पनियों का संकट, वैश्यावृत्ति, ब्लैक, तस्करी, जुआ, शराब, अफीम आदि भी ऐसी समस्याएँ है जो या तो कृत्रिम है अथवा राज्य ने अनावश्यक अपने हाथ में लेकर इनको बढ़ावा दिया है । ये समस्याएँ भी स्वतंत्रता के बाद लगातार इसलिए बढती गई है क्योंकि राज्य ने इन समस्याओं के समाधान में अनावश्यक अथवा आवश्यकता से अधिक सक्रियता दिखाई । अप्रत्यक्ष रुप से कहा जा सकता है कि ये समस्याएँ राज्य अपनी गलतियों को छिपाने के लिए योजनापूर्वक बढ़ाता है ।
(3) प्राकृतिक इसमें बाढ़, भूकम्प, बीमारियाँ, तूफान, अनावृष्टि या अतिवृष्टि आदि शामिल हैं । ये समस्याएँ स्वतंत्रता के बाद कुछ घटी हैं ।
(4) भूमण्डलीय इसमें पर्यावरण प्रदूषण, आबादी वृद्धि, जल संकट, मानव स्वभाव तापवृद्धि, मानव स्वभाव स्वार्थ वृद्धि, उग्रराष्ट्रवाद आदि शामिल है । ये समस्याएँ भी पूरे विश्व की तरह ही भारत में भी लगातार बढ रही हैं क्योंकि भारत में इनके समाधान के लिए कोई मौलिक चिन्तन का अभाव है तथा भारत इन मामलों में दुनिया के अन्य देशों की अंध नकल करता रहता है ।
(5) भ्रम या असत्य समस्याएँ अनेक हैं जैसे मंहगाई, शिक्षित बेरोजगारी, बढ़ती गरीबी, दहेज, मुद्रास्फीति का दुष्प्रभाव, अशिक्षा, बालश्रम, वैश्यावृत्ति, तस्करी, ब्लैकमेल आदि शामिल हैं । इनमें से कुछ समस्याएँ तो बिल्कुल ही अस्तित्वहीन है और उन्हें समाज में भ्रम फैलाने के लिए प्रचारित किया गया है । इन समस्याओं को राज्य इसलिए स्थापित करता है जिससे समाज का ध्यान वास्तविक समस्याओं से हटकर इन समस्याओं के समाधान में लग जाये ।
वास्तविक समस्याओं का समाधान करना राज्य का दायित्व होता है और इसलिए प्राथमिकता का क्रम इस प्रकार होना चाहिए था कि पहली प्राथमिकता वास्तविक तथा उसी क्रम से चैथी प्राथमिकता भुमण्डलीय समस्याओं के समाधान के लिए होनी चाहिए थी । भ्रमपूर्ण समस्याओं से तो राज्य को बिल्कुल विपरीत हो जाना चाहिए था किन्तु स्वतंत्रता के बाद लगातार देखा जा रहा है कि प्राथमिकताओं के क्रम में वास्तविक समस्याएँ पाचवे नम्बर पर है और भ्रमपूर्ण समस्याएँ पहले नम्बर पर । विचित्र बात है कि जिन समस्याओं का कोई अस्तित्व ही नहीं है ऐसी समस्याओं के समाधान का प्रयत्न लगातार क्यों हो रहा है ? महंगाई नाम की कोई समस्या सम्पूर्ण भारत में न कभी थी, न है । किन्तु पिछले 70 वर्षो से समाज में ऐसा असत्य प्रचार हुआ कि भारत का प्रत्येक नागरिक महंगाई के भ्रम से परेशान है ।
पिछले दो वर्षो से नरेन्द्र मोदी जी की सरकार बनी है । उसके पूर्व की सरकारे लगातार साम्यवाद के पूर्णतः या आंशिक प्रभाव में थी । साम्यवाद का प्रभाव सभी समस्याओं के विस्तार का जनक माना जाता है । पश्चिम की अंध नकल भी समाधान में बाधक होती है । भारत ने या तो साम्यवाद की नकल की या पश्चिम की । दो वर्षो से नरेन्द्र मोदी सरकार धीरे-धीरे भारतीय विचारधारा तथा पश्चिम की विचारधारा के बीच सामंजस्य स्थापित करके सुधार का प्रयास कर रही है । चोरी, डकैती, लूट, जालसाजी, भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानता पर कुछ नियंत्रण हुआ है । नक्सलवाद अथवा कश्मीर का आतंकवाद धीरे धीरे समाप्त हो रहा है। किन्तु बलात्कार, श्रम शोषण और मिलावट पर अभी कोई परिणाम नहीं दिखा है । इसी तरह साम्प्रदायिकता पर भी पर्याप्त सुधार हुआ है। मुस्लिम साम्प्रदायिकता तो रुकी ही है किन्तु संघ परिवार की साम्प्रदायिकता भी संकट के घेरे में आती जा रही है । जातिवाद, महिला उत्पीडन जैसी कृत्रिम समस्याओं पर अभी काम नहीं हुआ है अथवा मोदी सरकार अभी इस पर कुछ समझ नहीं पा रही है ।
सबसे बड़ी समस्या वर्ग निर्माण, वर्ग विद्वेष को बढ़ाकर वर्ग संघर्ष की दशा में रही है । इसका वास्तविक समाधान तो वर्ग समन्वय से ही संभव था किन्तु इसके ठीक विपरीत पिछली सरकारों ने वर्ग समन्वय को कमजोर करके वर्ग निर्माण और वर्ग विद्वेष को लगातार बढ़ाया । ये आधार है धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्रीयता, उम्र, लिंग, गरीब अमीर, किसान मजदूर, शहर ग्रामीण आदि । इनमें मोदी जी ने भाषा के मामले में पहल करके करीब-करीब ठीक दिशा पकड़ ली हैं । समान नागरिक संहिता की आवाज बुलंद करके साम्प्रदायिकता, जाति भेद, लिंग भेद पर भी नकेल कसने की तैयारी है । अन्य मामलों में भी नरेन्द्र मोदी सरकार धीरे-धीरे कदम उठा रही है । जिस तरह 67 वर्षो तक समस्याएँ बढ़ी या बढ़ायी गई और उनका जितना बड़ा भण्डार इक्कठा हो गया है । उन पर नियंत्रण करना कोई साधारण काम नहीं । उन परिस्थितियों में तो यह काम और भी कठिन हो जाता है जब जे एन यू से पढ़े हुये छात्र निकल कर न्यायपालिका और कार्यपालिका के महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हो तथा समाधानकर्ता की यह मजबूरी हो कि उसे इन सबको साथ लेकर ही आगे बढ़ना होगा । आप कल्पना कर सकते हैं कि कार्य कितना कठिन है फिर भी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की भारत सरकार धीरे-धीरे एक एक समस्या को हल करने की दिशा में निरंतर बढ़ रही है ।
फिर भी अभी मोदी जी के लिए अनेक काम करने बाकी है जिनकी अभी शुरुवात भी नहीं हुई है । कृत्रिम उर्जा की भारी मूल्य वृद्धि की दिशा में अब तक कोई कदम नहीं बढ़ाया गया है जबकि श्रम शोषण, आर्थिक असमानता, पर्यावरण प्रदूषण सहित सब प्रकार की आर्थिक समस्याओं के समाधान में इसका महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है ।
समान नागरिक संहिता और समान आचार संहिता के बीच का अंतर या तो मोदी जी अब तक स्वयं नहीं समझ पाये है अथवा वे प्रतिक्षा कर रहे हैं । इसी तरह अपराध गैरकानूनी और असामाजिक समस्याओं के वर्गीकरण की दिशा में भी कोई प्रयत्न नहीं दिख रहा है । मैं मानता हॅू कि भारत में विचार मंथन का अभाव इसके लिए सर्वाधिक दोषी है । हम सारा दोष सरकार पर ही नहीं डाल सकते । विचार मंथन ही सरकार को नई दिशा दे सकता है । हमें पूरा प्रयत्न करके अन्य उन मुददों पर सरकार को सलाह देनी चाहिए जिनके विषय में अब तक सरकार ठीक दिशा में नहीं सोच पा रही है ।
मैं आश्वस्त हॅू कि नरेन्द्र मोदी के आने के बाद भारत की समस्याओं के समाधान की गति ठीक दिशा में और ठीक गति से आगे बढ रही है । हमारा कर्तव्य है कि हम इस गति को और बढ़ाने में सहायक हों । हम निरंतर विचार मंथन को प्रोत्साहित करें, जनमत जागृत करें, सरकार को उचित सलाह भी दें तथा सरकार के सही कार्यो का पूरा पूरा समर्थन भी करें तभी इतनी पुरानी जड़ पकड़ चुकी समस्याओं का समाधान संभव हैं ।
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