बढ़ती आबादी और घटती जमीन

सारी दुनियां की आबादी पिछले कुछ सौ वर्षो से लगातार बढ़ रही है और निकट भविष्य मे रूकने की कोई संभावना नही दिखती । वर्तमान दुनियां की आबादी प्रति वर्ष लगभग एक प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही हैं । जापान और रूस की आबादी धीरे धीरे घट रही है तो मुस्लिम देशो की आबादी बहुत अधिक तेजी से बढ़ रही है । भारत और चीन की आबादी भी लगातार बढ़ रही है, भले ही मुस्लिम देशो से गति कम तथा अन्य देशो से अधिक है । भारत की आबादी लगभग 137 करोड़ हो गई है जो चीन की आबादी से कुछ ही कम है, किन्तु भारत चीन की तुलना मे भी आगे बढ़ने के लिये निरंतर प्रयत्नशील है ।

          एक ओर तो दुनियां की आबादी लगातार बढ़ रही है, तो दूसरी ओर सारी दुनियां मे भूमि का क्षेत्रफल कम होता जा रहा है । वैज्ञानिको ने भविष्यवाणी की है कि जल्दी ही दुनियां के कुछ शहर पूरी तरह तो कुछ आंशिक रूप से समुद्र मे विलीन हो जायेगे । ऐसे डूबने वाले क्षेत्रो मे भारत के मुम्बई का भी एक बड़ा भाग शामिल बताया जाता है । जापान आदि देशो के कई शहरो पर तो खतरा है ही ।

          आबादी और भूमि के बीच मे एक संतुलन आवश्यक माना जाता है जो बिगड़ता हुआ बताया जाता है । विचारणीय है कि इस असंतुलन का मानव जीवन पर कितना अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ता है । यदि हम पृथ्वी पर भार बढ़ने की बात करे तो ऐसा कोई आभास नही होता । इस प्रकार की बातें महत्वहीन दिखती हैं । यदि हम पृथ्वी पर अन्य किसी समस्या के बढ़ने की बात करें तो वह भी सुनी सुनाई बात ही है । वर्तमान समय मे दुनियां मे कोई ऐसी समस्या बढ़ती हुई नही दिख रही है जिसका बढ़ती हुई आबादी से कोई सीधा संबंध हो । इसलिये हम बढ़ती आबादी और घटती जमीन को एक विश्व स्तरीय गंभीर समस्या के रूप मे नही मान सकते किन्तु हमे भारत के संबंध मे कुछ विस्तार पूर्वक विचार करना होगा क्योकि भारत मे आबादी और भूमि के बीच का अनुपात अन्य देशो की अपेक्षा बहुत ज्यादा असंतुलित है ।

         वर्तमान समय मे भारत मे प्रतिवर्ष लगभग डेढ़ करोड़ लोगो की आबादी बढ़ रही है, जो चिंताजनक वृद्धि बताई जाती है । भारत की जन्मदर करीब 2 प्रतिशत है और मृत्युदर लगभग आधा प्रतिशत है । इस तरह करीब डेढ़ प्रतिशत के हिसाब से आबादी बढ़ रही है । यद्यपि यह वृद्धि धीरे-धीरे घट रही है, और अगामी 50 वर्षो मे हो सकता है कि शून्य तक आ जाये, लेकिन आबादी की तुलना मे जमीन भी बढ़ने की अपेक्षा कुछ कम ही हो रही है ।

          समान्यतः महसूस होता है कि आबादी का बढ़ना एक बड़ी समस्या है क्योकि जमीन बढ़ाना तो संभव नही है, आबादी की बाढ़ को रोका जा सकता है । भारत मे युवा और वृद्ध का अनुपात भी बिगड़ रहा है । स्वास्थ्य सुविधाए मजबूत होने से उम्र बढ़ रही है, और उम्र बढ़ने के कारण वृद्ध लोगो की संख्या बढ़ रही है । दूसरी ओर आबादी घटाने के प्रयत्नो के कारण जन्मदर घट रही है और इनके कारण युवा वृद्ध का अनुपात बिगड़ रहा है । आबादी बढ़ने के कारण आवागमन की भी समस्या पैदा हो रही है और पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है । भारत भोजन, पानी, शिक्षा के लिये जितने संसाधन इकठ्ठे कर पा रहा है वह आबादी बढ़ जाने के कारण प्रभावहीन दिखने लगते है । भारत में भी आबादी बढ़ने का सबसे बढ़ा क्षेत्र बिहार को माना गया है । बिहार और उत्तर प्रदेश में जन्मदर पूरे देश की तुलना में बहुत अधिक है । आश्चर्य जनक है कि गरीबी के मामले में भी बिहार और उत्तर प्रदेश का नम्बर सबसे ऊपर है तो अशिक्षा के मामले में भी । समझ में नही आता कि गरीबी और अशिक्षा के कारण बिहार और उत्तर प्रदेश मे जन्मदर पूरे देश की तुलना मे ज्यादा है, अथवा आबादी बढने के कारण गरीबी और अशिक्षा अधिक है । इन दोनो के बीच क्या संबंध है इस विषय पर तो कुछ अलग से शोध करना पड़ेगा ।  एक बात भारत मे और स्पष्ट दिख रही है कि सम्पन्न लोगो मे गरीब लोगो की तुलना मे जन्मदर बहुत कम है । समझ मे नही आता कि इसका क्या कारण है । जो लोग संपन्न है और अधिक आबादी की व्यवस्था कर सकते है वे बच्चे पैदा करने मे बहुत पीछे है, जो गरीब है वे बहुत आगे है । इसी तरह जो महिलाए उच्च शिक्षित है उनकी तुलना मे अशिक्षित महिलाओ मे जन्मदर बहुत ज्यादा है । इन दोनो बातो पर भी विचार करना पड़ेगा ।

             एक बात और महत्वपूर्ण है कि भारत मे भी आमतौर पर मुसलमानो मे जन्मदर बहुत ज्यादा है और शेष समुदायों मे, मुसलमानो की तुलना मे कम । भारत की कुल आबादी मे भी मुसलमानो की आबादी की वृद्धि औसत से अधिक है और हिन्दूओ की कम । यह प्रश्न भी निरंतर उठता रहता है ।

          लेकिन एक बात यह भी सोचनीय है कि आबादी का बढ़ना भारत के लिये कितनी बड़ी समस्या है । यदि हम माने कि आबादी बढ़ने के कारण भारत मे सुविधाओ की कमी हो रही है तो यह बात गलत है । आम तौर पर एक व्यक्ति वर्तमान समय मे पांच या सात लोगो के लिये भरण पोषण के पर्याप्त साधन जुटाने की सामर्थ्य रखता है । समझ मे नही आता कि यह झूठा प्रचार क्यो है कि आबादी बढ़ने से आवश्यक सुविधाओ मे कमी होती है । भारत मे जिस गति से आबादी बढ़ रही है उसकी तुलना मे कई गुना अधिक गति से अमीरो की संख्या बढ़ रही है । इसका अर्थ है कि आबादी का आर्थिक स्थिति पर कोई प्रभाव नही होता । दुसरी बात यह कही आती है कि आबादी बढ़ने से आपसी टकराव बढ़ता है । मुझे ऐसा नही लगता । समाज मे अनेक परिवारो मे उनकी संख्या घटती जा रही हैं और टकराव बढता जा रहा हैं । अम्बानी के परिवारो मे आपसी टकराव का कारण संख्या विस्तार नही था । आज से सौ वर्ष पूर्व भारत मे आबादी कम थी तब भी धर्म और जाति के नाम पर टकराव आज की तुलना मे कम नही थे । मुझे नही लगता कि टकराव का आबादी मे कोई संबंध होता है । कहा जाता है कि आबादी बढ़ने के कारण पर्यावरण प्रदूषण बढता है । मुझे ऐसा नही लगता । पर्यावरण प्रदूषण मनुष्य की भौतिक इच्छाओ के अनियंत्रित विस्तार का परिणाम है, आबादी वृद्धि का नही । इसलिये अनेक समस्याओ के विस्तार के लिये आबादी के बढने को दोष देने की एक प्रथा भी चल पडी है । जबकि इसका कोई प्रत्यक्ष आधार नही दिखता ।

       अब हम इस समस्या के गुण दोषो की समीक्षा करे । आबादी का बढ़ना एक समस्या तो है और उसे वर्तमान स्थिति मे अनियंत्रित बढ़ते जाना उचित नही है, किन्तु आबादी का बढ़ना इतनी बड़ी समस्या नही है, जितना उसे महत्व दिया जा रहा है । अपराधो मे वृद्धि, आर्थिक विषमता, श्रम शोषण, भ्रष्टाचार, नैतिक पतन सरीखी  अनेक समस्याओ मे विस्तार का कारण आबादी का बढ़ना नही है । फिर भी आबादी नियंत्रण के नाम पर हम इन समस्याओ से मुक्त होना चाहते है इसलिये आबादी के विस्तार को एक समस्या तक माना जाये किन्तु उसे प्राथमिक समस्याओ मे सम्मिलित करना उचित नही है । यह एक विश्व व्यापी समस्या है और विश्व स्तर पर इसका जो भी समाधान होगा उन संभावनाओ मे भारत को भी अपनी भूमिका निकालनी चाहिये ।

             लेकिन भारत के स्तर तक आबादी की वृद्धि को जिस तरह मुस्लिम जनमत एक हथियार के रूप मे उपयोग कर रहा है वह अवश्य ही खतरनाक है । कभी-कभी तो कुछ हिन्दु धर्मगुरूओ का भी धैर्य टूट जाता है, और वे मुसलमानो की इस प्रवृत्ति के विरूद्ध आबादी बढ़ाने के प्रयत्नो की वकालन करने लगते है । मै ऐसी  वकालत करने के भी पक्ष मे नही हूँ । किन्तु मै यह भी उचित नही समझता कि किसी एक समूह को इस परिस्थिति का हथियार के रूप मे लाभ उठाने की छूट दी जाये । इसलिये भले ही जनसंख्या नियंत्रण भारत के लिये प्राथमिक समस्या न हो किन्तु धार्मिक आधार पर दुरूपयोग को रोकने के उददेश्य से इसे पहली समस्या मान कर इसका समाधान करना चाहिये । संतानोत्पत्ति प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है । हम किसी कानून के द्वारा उसे रोक नही सकते । किन्तु हम अन्य संवैधानिक सुविधाओ से इस प्रकार की आबादी वृद्धि को निरूत्साहित कर सकते है । सारी दुनियां अलग-अलग तरीके से इस्लामिक कट्टरवाद से निपटने का तरीका खोज रही है । चीन एक अलग तरीके पर काम कर रहा है तो पश्चिमी देशो का तरीका कुछ भिन्न है । भारत को भी इस सम्बंध मे कुछ अलग तरीका अपनाना ही चाहिये और सबसे कारगर तरीका यही है कि जनसंख्या विस्तार को टारगेट करके कोई प्रयत्न शुरू किये जाये । आसाम सरकार ने कुछ शुरूआत की है लेकिन जब तक केंद्र सरकार इस संबंध मे सक्रिय नही होती तब तक कोई सार्थक समाधान की संभावना नही है । मेरे विचार मे केन्द्र सरकार को इस संबंध मे पहल करनी चाहिये ।