समाज शास्त्र की एक समीक्षा

समाज शास्त्र की एक समीक्षा

व्यक्ति और समाज एक दूसरे के पूरक होते है । व्यक्ति एक प्रारंभिक इकाई होता है और समाज अंतिम इकाई। व्यक्ति के नीचे कुछ नही होता तो समाज के उपर भी कुछ नहीं होता । व्यक्तियों को मिलाकर ही समाज बनता है और समाज सिर्फ व्यक्ति समूह नहीं, बल्कि सर्व व्यक्ति समूह माना जाता है। इसका अर्थ हुआ कि समाज से बाहर कोई व्यक्ति नहीं होता। समाज की संरचना बहुत जटिल होती है क्योकि समाज व्यक्तियो का समूह भी होता है। व्यक्तियो से भिन्न कोई इकाई नही होती। इस तरह व्यक्तियो के आपसी संबंधो का समाज पर व्यापक प्रभाव पडता है, और समाज के अनुशासन का व्यक्तियों पर व्यापक प्रभाव पडता है। समाज सर्वोच्च होता है, धर्म राजनीति और अर्थ समाज के सहायक होते हैं, समानान्तर नहीं, समकक्ष भी नहीं । इस तरह समाज मे समाज शास्त्र. धर्म शास्त्र राजनीति शास्त्र और अर्थ शास्त्र पर निरंतर चिंतन मंथन चलता रहता है।

इस्लाम मे समाज नहीं होता बल्कि धर्म प्रमुख होता है। इस्लाम को मानने वाला धार्मिक और न मानने वाला काफिर माना जाता है, जिसका अर्थ शत्रुवत होता है। साम्यवाद मे समाज की अवधारणा नही है, राज्य ही सब कुछ होता है। वहां राज्य मालिक होता है और शेष सब गुलाम । पश्चिम मे भी समाज की कोई साफ साफ अवधारणा नही है किन्तु पश्चिमी व्यवस्था एक मात्र ऐसी व्यवस्था है जहाॅ विशेष मुद्दो पर जनमत संग्रह का प्रावधान है। पश्चिम मे अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक व्यवस्था भी चलती रहती है। भारत मे पुराने समय से ही समाज को सर्वोच्च माना जाता था। धर्म राजनीति और अर्थ सत्ता को समाज सहायक मानते थे। भारत मे विकृति आई और वर्तमान समय मे धर्म राजनीति और अर्थ अपने को स्वतंत्र मानने लग गये । इन तीनो ने समाज की परिभाषा बदल दी और अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया। वर्तमान समय मे भारत मे समाज शास्त्र की चर्चा न के बराबर होती है। यदि कहीं होती भी है तो वह कुछ पश्चिम की अवधारणाओ से प्रभावित होती है, भारतीय व्यवस्था से नही। दूसरी ओर भारत मे धर्म शास्त्र राजनीति शास्त्र और अर्थ शास्त्र की व्यापक विवेचना होती है। इस तरह भारत किसी समय समाज को सबकुछ मानता था और वर्तमान भारत मे समाज शब्द धर्म राजनीति के साथ जोडकर उपयोग करने के काम मे आता है। उसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नही दिखता। भारतीय समाज व्यवस्था के ठीक ठीक संचालन के लिये वर्ण व्यवस्था को बहुत उपयोगी स्वीकार किया गया। इस वर्ण व्यवस्था मे गुण योग्यता और धर्म का प्रारंभिक आकलन करके व्यक्ति को एक निश्चित दिशा मे बचपन से ही प्रशिक्षित किया जाता था, जिससे व्यक्ति एक विषय का विशेषज्ञ हो जाता था। इसमे एक मार्ग दर्शक होता था तो शेष तीन मार्ग दर्शित । एक अन्य रक्षक होता था तो शेष तीन सुरक्षित। एक पालक होता था तो तीन निश्चिंत। एक श्रमिक होता था तो तीन बुद्धिजीवी । इस तरह वर्ण व्यवस्था मे चारो का आपसी तालमेल होता थां। धीरे धीरे इस वर्ण व्यवस्था मे विकृति आई और मार्ग दर्शक या तो निश्क्रिय हो गये या विपरीत दिशा मे जाने लग गये। परिणाम हुआ कि शेष तीन वर्णो के लोग दिशाहीन हो गये । इस वैचारिक अव्यवस्था का परिणाम समाज पर बहुत बुरा हुआ, जो अब तक स्पष्ट दिख रहा है।

भारतीय समाज व्यवस्था मे व्यक्ति को मौलिक अधिकार प्राप्त है जबकि इस्लाम और साम्यवाद मे नही होता । व्यक्ति की सहमति से ही उपर की कोई भी व्यवस्था कार्य करती है । व्यक्ति की सहमति के बिना उपर की व्यवस्था व्यक्ति पर कोई निर्णय नहीं थोप सकती। इस तरह व्यवस्था की पहली इकाई परिवार और उपर गांव, जिला, प्रदेश, राष्ट्र होते हुए समाज तक जाती है। सभी इकाई उपर वाली इकाई को अधिकार देती है, और उपर वाली इकाई नीचे वाली इकाई से शक्ति प्राप्त करती है। वर्तमान भारत मे यह व्यवस्था पूरी तरह छिन्न भिन्न हो गई है। भारत ने विदेशों की नकल की। उपर वाली इकाईयां स्वयंभू शक्तिमान हो गई और नीचे वाली इकाईयां को उपर से अधिकार देने लगी । यहां तक कि संविधान निर्माण मे भी व्यक्ति या अन्य इकाईयो की भूमिका शून्य कर दी गई और उपर की इकाईयां संविधान संशोधन तक करने लगी। परिणाम हुआ कि समाज की प्रारंभिक ईकाईया शक्तिहीन हो गई और टूटने लगी, कमजोर होने लगी।

समाज की अनेक अलग अलग इकाईयो के आपसी संबंधो की व्याख्या समाजशास्त्र कही जाती है। परिवार गांव राष्ट्र विश्व से लेकर व्यक्ति तक के आपसी संबंधो पर समय समय पर चर्चा होते रहती है। समय और परिस्थितियां हमेशा बदलते रहती हैं इसलिये समाजशास्त्र की चर्चा भी हमेशा नये नये तरीके से होती रही है। इस प्रकार की समाजशास्त्रीय चर्चा को ही व्यापक स्तर पर कुंभ नाम दिया गया जिसका स्वरूप अब कुछ विकृत हो गया है। स्थिति यहां तक खराब हुई कि धर्मशास्त्र और समाजशास्त्र एकाकार होकर समाज मे भ्रम पैदा करने लग गये। अब तो राजनीति ही अपने को समाज का प्रतिनिधि मानने लग गयी है। अब राज्य अपने को समाज ही सिद्ध नही कर रहा है बल्कि समाज के उपर मानने लगा है। अर्थ व्यवस्था भी समाज व्यवस्था को बहुत प्रभावित कर रही है। पश्चिम की पूंजीवादी अर्थ व्यवस्था समाज पर हावी हो गई है। छोटे छोटे जातीय धार्मिक समूह अपने को समाज कहने लग गये है। परिवार और गांव व्यवस्था टूट रही है। जातीय साम्प्रदायिक और राजनैतिक व्यवस्था मजबूत हो रही है। गली गली मे धर्म अर्थ और राजनीति की चर्चाए आम हो गई है। समाजशास्त्र चर्चा से बाहर हो गया । रक्षा बंधन, दशहरा, दिपावली, होली सरीखे सामाजिक त्यौहार धार्मिक स्वरूप ग्रहण कर रहे है। इन त्यौहार की जगह या तो धार्मिक त्यौहार ले रहे है अथवा राष्ट्रीय त्यौहार । त्यौहारो मे वैचारिक दर्शन की जगह आर्थिक प्रदर्शन मजबूत हो रहा है । इस तरह अन्य इकाईयो ने अप्रत्यक्ष रूप से समाज पर कब्जा कर लिया है। दुनियां को भारत समाजशास्त्र का संदेश देता था । अब दुनियां भारत को राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र सिखा रही है।

समाज को कमजोर करने के लिये वर्ग संघर्ष को एक मजबूत हथियार बनाया जाता है। वर्ग संघर्ष के लिये सबसे अधिक सक्रियता राजनीति की होती है। दुनियां समाज को गुलाम बनाने के लिये वर्ग निर्माण वर्ग विद्वेष का सहारा लेती है। और भारत भी दुनियां की नकल करते हुए इसी आधार पर समाज को विभाजित करता रहता है। भारत का हर राजनेता वर्ग निर्माण से लेकर वर्ग संघर्ष तक निरंतर सक्रिय रहता है, क्योकि सामाजिक एकता को छिन्न भिन्न करने मे वर्ग निर्माण ही सबसे अधिक कारगर होता है।

बहुत प्राचीन समय मे भारत मे नीचे से उपर अधिकार जाते थे जो बाद मे उल्टा हो गया। यहां तक उल्टा हुआ कि परिवार का मुखिया भी मां के पेट से निकलने लगा और देश का राजा भी । हर इकाई मे सबसे नीचे व्यक्ति होता है और सबसे उपर सर्व व्यक्ति समूह । मुखिया सर्व व्यक्ति समूह द्वारा नियुक्त और अधिकार प्राप्त होता है। लेकिन परिवार का हर व्यक्ति मुखिया के नीचे होता है । कोई भी व्यक्ति कितना भी बडा क्यो न हो किन्तु वह सर्व व्यक्ति समूह से नीचे होता है। वर्तमान समय मे परिवार का मुखिया परिवार के अन्य सदस्यो से तो उपर होता है किन्तु स्वयं को सर्व व्यक्ति समूह से नीचे नही मानता। वह स्वयं को परिवार से भी उपर मान लेता है। ऐसी ही हालत लगभग उपर की भी सभी इकाईयो मे है। निर्वाचित जन प्रतिनिधि निर्वाचन के बाद स्वयं को समाज से उपर मान लेते है क्योकि उन्हे संविधान संशोधन का भी अधिकार प्राप्त हो जाता है, यह व्यवस्था भी पूरी तरह गलत हैै। किसी भी स्थिति मे व्यक्ति सबसे नीचे होता है, और व्यवस्था व्यक्ति से उपर । व्यवस्था से उपर व्यक्ति समूह होता है। व्यक्ति व्यवस्था नही बनाते बल्कि व्यवस्था से व्यक्ति बनता है। और व्यक्ति समूह से व्यवस्था बनती है। वर्तमान स्थिति मे व्यक्ति समूह की अवधारणा समाप्त होने के कारण व्यक्ति ही व्यवस्था पर हावी होने का प्रयास करते है। व्यक्ति समूह का अर्थ सर्व व्यक्ति समूह होता है व्यक्ति समूह मात्र नही। व्यक्ति समूह तो गिरोह ही हो सकता है और संगठन भी । इस्लाम ने संगठन को ही व्यक्ति समूह मानकर समाज मान लिया । सिख और संघ परिवार भी इसी दिशा मे बढ रहे है जो घातक है।संगठन समाज का रूप नही ले सकते बल्कि संगठन तो सामाजिक व्यवस्था मे वर्ग संघर्ष कराकर नुकसान पहुचाने का कार्य करता है।

इस तरह हम कह सकते हैे कि समाज व्यवस्था बहुत संकट मे है। धर्मशास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थ शास्त्र ने समाज शास्त्र मे पूरी तरह कूडा कचडा भर दिया है । न समाज शास्त्र चर्चा मे है न समाज व्यवस्था अस्तित्व मे है । आज सारी दुनियां के समक्ष समाज व्यवस्था संकट मे है। दूसरी ओर समाज व्यवस्था का पुनर्जीवित होना ही वर्तमान अव्यवस्था या कुव्यवस्था का एकमात्र समाधान है। धर्म राजनीति अर्थ और श्रम की आपसी खीच तान कभी समाज मे शान्ति नही स्थापित होने देंगी। सामाजिक शान्ति के लिये इन चारो का एक साथ बैठकर विचार मंथन करना अनिवार्य है लेकिन ये चारो एक साथ कभी नही बैठ सकते है और न ही इन्हे कोई बिठा सकता है। इसलिये इन चारो के उपर समाजशास्त्र और सामाजिक व्यवस्था को मजबूत होना ही चाहिये। वर्तमान समय मे पूरी दुनियां मे ऐसा प्रयत्न प्रारंभ नही हुआ है क्योकि यह कार्य असंभव और कठिन दिखता है। समाज शब्द को पुनःजीवित करने की किसी भी कोशिष के विरूद्ध धर्मान्ध, धनान्ध तथा पेशेवर राजनेता तत्काल सक्रिय हो जाते है। फिर भी समाजशास्त्र और सामाजिक व्यवस्था को सशक्त करने के अलावा कोई अन्य मार्ग नही है। इसलिये हमलोगो ने ऋषिकेष मे बैठकर समाजशास्त्र को पुनः जीवित करने की एक प्रारंभिक पहल शुरू की है। हम चाहते है कि सब प्रकार के लोग एक साथ बैठकर विचार मंथन करे और धर्म राज्य और अर्थ शक्ति नियंत्रित हो। भिन्न भिन्न विचारो के लोग एक साथ बैठकर विचार मंथन करेंगे तो अवश्य ही सामाजिक शक्ति मजबूत हो सकेगी । मुझे पुनः विश्वास है कि इस दिशा मे धीरे धीरे आगे बढने मे सफलता मिलेगी।