वर्ग संघर्ष या वर्ग समन्वय
वर्ग संघर्ष या वर्ग समन्वय
प्रवृत्ति के आधार पर दुनियां में दो ही वर्ग होते है- 1. शरीफ 2. बदमाश । प्राचीन समय में इन्हें देव और असुर के नाम से जानते थे, जो बाद में मनुष्य और राक्षस तथा बाद में सामाजिक और समाज विरोधी के नाम से कहे जाने लगे । इन दोनों के बीच निरंतर संघर्ष चलता रहा है और चलता रहेगा । न कोई अंतिम रुप से जीत सकता है, और न कोई अंतिम रुप से समाप्त होता है । शरीफ लोग अपनी व्यवस्था के लिए वर्ण, जाति, धर्म, आदि में आंतरिक विभाजन करते रहते हैं । दूसरी ओर बदमाश अपने को चोर, डाकू, बलात्कारी, हिंसक, आतंकवादी के नाम से मानते हैं । दोनों वर्गो की अलग-अलग पहचान होती है और अलग-अलग गुण धर्म होते हैं । एक वर्ग का व्यक्ति अपने गुणों में परिवर्तन किये बिना दूसरे वर्ग में शामिल नहीं हो पाता, न ही उसमें उसकी कोई पहचान होती है । शरीफ लोगों के गुट को समूह कहते है और बदमाश लोगो के गुट को गिरोह कहते हैं ।
राजनीति का चरित्र होता है कि वह अपने समूह के लोगों को अधिकाधिक स्वतंत्रता देना चाहती है और दूसरे समूह के लोगों को अपनी इच्छानुसार चलाना चाहती है अर्थात् गुलाम बनाकर रखना चाहती है । लोकतंत्र में इसके लिए आवश्यक है कि समाज प्रवृत्ति के आधार पर विभाजित न होकर अन्य आधारों पर इस प्रकार विभाजित हो कि उससे सत्ता को कभी भी चुनौती न मिल सके । इस विभाजन के उद्देश्य से ही राजनीति समाज को अनेक भागों में विभाजित करके उन्हें वर्ग का नाम दे देती है तथा उसे वर्ग विद्वेश, वर्ग संघर्ष तक ले जाती है । यह सारा कार्य सत्ता से जुड़े लोग ही करते हैं । क्योंकि इससे समाज को तोड़कर रखने में इनका उद्देश्य पूरा होता रहता है । राजनीति से जुडे लोगों के इस प्रयत्न में बदमाश कहे जाने वाले वर्ग का पूरा-पूरा समर्थन और सहयोग रहता है । क्योंकि बदमाश कहे जाने वाले व्यक्ति राजनीति द्वारा बनाये गये वर्गो में बिना गुणों में बदलाव किये शामिल हो जाया करते है । पुराने जमाने में ऐसे लोगों को ही राक्षस कहा जाता था जो वेश बदलने में माहिर होते थे ।
वर्ग संघर्श के लिए मुख्य रुप से आठ आधारों पर काम चल रहा है-1. धर्म, 2. जाति, 3. भाषा, 4. क्षेत्रीयता, 5. उम्र, 6. लिंग, 7. आर्थिक असमानता, 8. उत्पादक उपभोक्ता । इन आठ के अतिरिक्त भी अन्य नये-नये वर्ग बनाने के प्रयास निरंतर किये जा रहे हैं । किन्तु ये आठ आधार ऐसे है जिनमें भारत का प्रत्येक राजनैतिक दल समान रुप से सक्रिय है तथा निरंतर अपनी सक्रियता बढ़ाता जा रहा है । इसका अर्थ हुआ कि कोई भी राजनैतिक दल किसी भी परिस्थिति में न तो वर्ग समन्वय की बात करता है, न किसी शरीफ और बदमाश के बीच वर्ग विद्वेष, वर्ग संघर्ष को बढ़ने देता है । हर राजनैतिक दल समाज में आठो आधारों पर विपरीत ध्रुवीकरण का प्रयास करता है जिससे शरीफ और बदमाश के बीच कोई ध्रुवीकरण न हो सके ।
इस वर्ग संघर्ष में हर राजनैतिक दल यह प्रयास करता है कि समाज में न्याय और व्यवस्था के बीच संतुलन कभी न रहे अर्थात् न्याय की मांग इतनी ज्यादा उठती रहे कि व्यवस्था हमेशा कमजोर होती रहे, तथा कमजोर व्यवस्था को मजबूत करने के नाम पर राज्य समाज को गुलाम बनाने के प्रयास करता रहे । मैंने अपने अनुभव से महसूस किया कि वर्ग अस्तित्व हमेशा अपराधियों के लिए एक ढाल या कवच के रुप में सुरक्षा का काम करता है । स्वतंत्रता के बाद भारत में अपराध और अपराधी सशक्तिकरण में सर्वाधिक योगदान वर्ग निर्माण वर्ग विद्वेश और वर्ग संघर्ष का ही पाया जाता है ।
यदि वर्तमान राजनैतिक दलों का अलग-अलग आंकलन करें तो वैसे तो सभी इस कार्य में समान रुप से आठो आधारों के विस्तार में शामिल हैं । किन्तु इनमें भी वामपंथी, साम्यवादी समूह सबसे ऊपर पाया जाता है । दुनियां में प्रतिस्पर्धारत चार संस्कृतियों में से हिन्दू संस्कृति के लोग विचार मंथन को अधिक महत्व देते है, तो मुस्लिम या संघ संस्कृति के लोग शक्ति प्रयोग को, इसाई या पाश्चात्य संस्कृति के लोग धन तथा वामपंथ साम्यवादी, संस्कृति के लोग सिद्धांत रुप से वर्ग संघर्ष को ही मुख्य आधार बनाकर चलते है ।
भारतीय जनता पार्टी मुख्य रुप से धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करती है । जे.डी.यू मुलायम सिंह, शिवसेना । लालू प्रसाद आदि मुख्य रुप से जाति पर ध्रुवीकरण कराते हैं । दक्षिण भारत के लोग भाषा को मुख्य आधार मानते हैं । किन्तु सभी वामपंथी साम्यवादी संस्कृति से जुडे़ लोगों के विषय में यह नहीं कहा जा सकता कि वे वर्ग संघर्ष
के लिए किस आधार को महत्वपूर्ण मानते हैं । कभी वे महिला-पुरुष के रुप में विभाजित होते है तो कभी सवर्ण-अवर्ण आदिवासी के रुप में तो कभी गरीब-अमीर के रुप में भी । सब जानते है कि साम्यवाद, धर्म, जाति, परिवार, समाज व्यवस्था को बिल्कुल नहीं मानता । यहाँ तक कि स्त्री-पुरुष के बीच व्यक्तिगत संबंधो में साम्यवाद
किसी प्रकार की कोई नैतिकता को स्वीकार नहीं करता । किन्तु जब समाज में वर्ग संघर्ष कराने की बात आती है तो साम्यवाद दुर्गा और महिशासुर को भी मानना शुरु कर देता है । इसी तरह जब महिला-पुरुष के बीच संबंधो में नैतिकता की बात आती है तो साम्यवाद अपने आंतरिक संबंधों में किसी प्रकार की नैतिकता का महत्व न मानते हुए भी शेष समाज में नैतिकता का उच्चतम मापदण्ड स्थापित करना चाहता है । मैंने पूर्व में भी लिखा है और फिर लिख रहा हूं कि साम्यवाद दुनियां का अकेला ऐसा संगठन है जिसमें सबसे अधिक पढे़ लिखे बुद्धिजीवी चालाक या धूर्त पाये जाते हैं । दूसरी ओर संघ परिवार या इस्लाम में ठीक इसके विपरीत भावना प्रधान लोगों की बहुलता रहती है । वर्ग संघर्ष कराने वाले शेष सबको किसी न किसी रुप में आपस में लड़ा कर अपने को सुरक्षित रखते हैं, तथा शेष सब लोग आपस में तक दूसरे से लड़ते भिड़ते रहते है ।
वर्ग संघर्ष कराने वाले निरंतर कुछ मुद्दे उठाते रहते हैं- 1. समाज में जो लोग कमजोर वर्ग के हैं उन्हें कानूनी अधिकार मिलना चाहिए । 2. कमजोर वर्ग के लोगों को कानूनी संरक्षण मिलना चाहिए । 3 कमजोर व्यक्ति नहीं होता है बल्कि वर्ग होता है और वर्ग के आधार पर अधिकार दिया जाना चाहिए । 4. यदि व्यवस्था उनकी सुरक्षा न कर सके तो उन्हें दूसरे वर्ग से बलपूर्वक अपनी सुरक्षा करने का अधिकार है और उन्हें ऐसा करना चाहिए । जबकि सच्चाई यह है कि व्यक्ति कमजोर होता है वर्ग नहीं । कमजोरों को सुविधा या सहायता देना मजबूतों या सरकार का स्वैच्छिक कर्तव्य है, कमजोरों का अधिकार नहीं । कानून को भी इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । कानून कमजोर व्यक्तियों की मदद कर सकता है सुविधा दे सकता है किन्तु अधिकार नहीं दे सकता क्योकि अधिकार तो प्रत्येक व्यक्ति के समान ही होते हैं जो समान रुप से संविधान द्वारा दिये हुए भी है । किसी के अधिकार किसी भी परिस्थिति में कम या ज्यादा नहीं किये जा सकते और यदि ऐसा प्रयास किया जाता है तो वह हानिकारक ही होगा लाभदायक नहीं ।
यह स्पष्ट है कि हमें वर्ग निर्माण, वर्ग विद्वेश, वर्ग संघर्ष से मुक्ति पानी ही होगी । किन्तु यह बात भी सच है कि वर्ग संघर्ष से लाभ उठाने वाले इतने अधिक शक्तिशाली हैं कि दिये और तुफान से तुलना की जा सकती है । सारे कानून बनाने वाले उसमें शामिल हैं यहाँ तक कि न्यायपालिका और कार्यपालिका भी इस प्रचार से प्रभावित हैं । ऐसी परिस्थिति में वर्ग समन्वय को मजबूत करने के लिए हमें योजना पूर्वक काम करना होगा और ये दो मार्ग हो सकते हैं 1. वर्ग समन्वय का प्रचार करें । 2. वर्ग संघर्ष वर्ग निर्माण का विरोध करें । 1. हम वर्ग निर्माण के किसी भी प्लान से अपने को पूरी तरह दूर रखें । महिला सशक्तिकरण, युवा, आदिवासी, हरिजन, सशक्तिकरण हिन्दू और गरीब के सशक्तिकरण के नारे हमें तोड़ने के लिए और वर्ग समन्वय को कमजोर करने के लिए ही लगाये जाते है । यहाँ तक कि अच्छे-अच्छे लोग भी ऐसे आकर्षक नारों के साथ हो जाते हैं । हम इनसे बचें । 2. वर्ग संघर्ष का विरोध सबके साथ एक साथ नहीं किया जा सकता क्योंकि वर्ग संघर्ष में भी एक वर्ग धुर्त है, बुद्धिजीवी है, तो दूसरा भावना प्रधान । एक वर्ग मोटिवेटर है, नचाता है, सबका उपयोग करता है, तो दूसरा वर्ग मोटीवेटेड है, नाचता है, उपयोग में आता है । मैं जानता हॅ कि इस दूसरे वर्ग को समझाना बहुत टेढ़ा काम है । किन्तु इसके अतिरिक्त हमारे पास कोई अन्य मार्ग भी तो नहीं है । हम चाहे कितना भी चाहे तो संघ परिवार या मुस्लिम समुदाय के अच्छे लोगों को भी यह बात नहीं समझा सकते कि इस संकट काल में हिन्दू-मुस्लिम समस्या की अपेक्षा साम्यवाद सबसे ज्यादा खतरनाक पक्ष है । फिर भी कोई अन्य मार्ग नहीं होने से हमें यह बात धीरे-धीरे समझानी ही होगी कि योजनापूर्वक वर्ग संघर्ष का विस्तार करने वालो को वर्ग समन्वय की दिशा में मजबूर करना ही एकमात्र मार्ग है । मैं जानता हॅू कि जो लोग सोच समझकर वर्ग संघर्ष को हथियार के रुप में प्रयोग कर रहे है वे न कभी स्वयं समझेंगे न दूसरो को समझने देंगे । ऐसी स्थिति में हम यदि नासमझों को थोड़ा भी समझाने में सफल हुए तो वर्ग संघर्ष, वर्ग समन्वय में बदल सकता है । मैं चाहता हॅू कुछ लोग तो वर्ग निर्माण वर्ग विद्वेश, वर्ग संघर्ष के विरुद्ध वर्ग समन्वय के पक्ष में खड़े हों । अंत में मैं यह स्पष्ट कर दॅू कि शरीफ और बदमाश की लड़ाई में शरीफ कमजोरीकरण का वर्ग संघर्ष एक मजबूत हथियार है और हमें बदमाशों को कमजोर करने के लिए उन्हें इस हथियार से वंचित करने की पहल करनी चाहिए ।
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