वर्तमान आर्थिक व्यवस्था एक षड़यंत्र

सत्तावन वर्ष पूर्व जब से मैने होश संभाला तभी से मैं यह मानता हूँ कि वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था गरीबो, ग्रामीणो, श्रमजीवियो, छोटे किसानो के खिलाफ पूँजीपतियो, शहरियों, बुद्धिजीवियो तथा बड़े किसानो का मिला - जुला षड़यंत्र है । निम्न वर्ग के खिलाफ मध्यम वर्ग को उच्च वर्ग का भी समर्थन प्राप्त है । सत्तावन वर्षो के बाद आज भी अपने उस विचार पर कायम हूँ कि मेरे लाख प्रयास के बाद भी यह षड़यंत्र मजबूत हुआ है । आज भी गरीब ग्रामीण श्रमजीवी, छोटे किसान के खिलाफ उसी प्रकार योजनाएँ बन रही है, जैसे उस समय बनती थी । यदि आबादी के हिसाब से तीन भाग मे बांटा जाए तो करीब चालीस करोड़ निम्न वर्ग के लोग होंगे । चालीस करोड़ मध्यम वर्ग के और चालीस करोड़ उच्च वर्ग के । निम्न वर्ग के चालीस करोड़ मे से नब्बे प्रतिशत लोग गरीब ग्रामीण श्रमजीवी छोटे किसान ही होंगे। नब्बे प्रतिशत आदिवासी और हरिजन इसी वर्ग में शामिल होंगे । गिने चुने आदिवासी हरिजन मध्यम श्रेणी मे होंगे । और उच्च वर्ग मे तो शायद ही कोई हो । स्वाभाविक है कि निम्न वर्ग के लोग गांवो मे रहकर श्रम करते हैं और उत्पादन करते हैं जबकि मध्यम श्रेणी के लोग अपेक्षाकृत अधिक शहरो में रहकर बौद्धिक कार्य करते हैं अथवा बिचौलियो की भूमिका मानते हैं ।  बुद्धिजीवी वर्ग की यह खूबी होती है कि वह निम्न वर्ग का मार्गदर्षन भी करता है, गुमराह भी करता है और नेतृत्व भी करता है । यही कारण है कि सत्ता से जुड़े लोग मध्यम वर्ग को अपने साथ जोड़कर रखना मजबूरी समझते है । भारत का बुद्धिजीवी मध्यम वर्ग कितना कुशल होता है कि उसने निम्न वर्ग के लोगो  में जमीन के प्रति एक अजीब मोह पैदा किया और अपने या उच्च वर्ग के अंदर पैसा या सुख सुविधाओ के प्रति । यह प्रचार का ही प्रभाव है कि हर गरीब आदमी जमीन से चिपका रहता है भले ही उसको कोई लाभ हो या न हो । इन बुद्धिजीवियो ने योजना बनाकर निम्न वर्ग के उत्पादन और उपभोग की सब प्रकार की वस्तुओ पर भारी अप्रत्यक्ष कर लगवा दिये । और मध्यम तथा उच्च वर्ग के उपयोग की वस्तुओ पर कर नही लगाए । इन बुद्धिजीवियो ने गांवो मे पैदा होने वाली वनोपज या पेड़ पौधे तक पर भारी कर लगा दिये । विदित हो कि सरकार की आय के साधनो मे वनोपज का बहुत बड़ा योगदान होता है । दूसरी ओर इन लोगो ने शिक्षा का बजट बढ़ाना शुरू कर दिया । हर कोई जानता है कि शिक्षा का निम्न वर्ग को  लाभ दस से पंद्रह प्रतिशत ही मिल पाता है और मध्यम वर्ग को पचास से साठ प्रतिशत ।  परन्तु शिक्षा का बजट बढ़ता चला गया और गांवो मे वनोपज या वन उत्पादन से धन संग्रह को मुख्य आधार बनाया गया । मैनें दिल्ली जाकर महसूस किया कि भले ही राजनेता मेरी बात को न समझें किन्तु ब्रम्हदेव शर्मा, अरविन्द केजरीवाल, राज गोपाल, अमर नाथ भाई सरीखे लोग तो अवश्य समझेगें कि निम्न वर्ग पर टैक्स लगाकर कृत्रिम उर्जा को राहत देना या शिक्षा पर खर्च करना अमानवीय भी है और निम्न वर्ग के साथ धोखा भी । मैनें बहुत प्रयास किया किन्तु मेरी बात को मानने के लिये कोई तैयार नही । सब मेरी बात को चर्चा में तो स्वीकार कर लेते थे लेकिन घर जाकर फिर पलट जाते थे । क्योकि सबको दिखता था कि  इस बात को उठाते ही वे अलग-थलग पड़ जाएंगे । उनका एन. जी. ओ. भी फेल हो जाएगा और उनकी पूछ भी नही रहेगीं । अन्य लोगो से तो मुझे कोई उम्मीद ही नही थी। लेकिन ऐसे लोगो ने इन विषय पर जरा भी आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया । स्थिति तो यहाँ तक है कि आज भी मेरे साथ काम कर रहे अनेक साथी लोक संसद पर सहमत है । समाज सशक्तिकरण पर सहमत है किन्तु निम्न वर्ग के उत्पादन उपभोग की वस्तुओ पर सब प्रकार के टैक्स हटाकर कृत्रिम उर्जा पर डाल देने के लिये सहमत नही होते । मैं लगातार देख रहा हूँ  कि ब्रम्ह देव शर्मा,  राज गोपाल जी निम्न वर्ग के अंदर जमीन  के प्रति मोह  बढ़ाकर बनाए रखना चाहते हैं । मैं नही समझ पाता कि बड़े लोग धन कमाएँ और गरीब, ग्रामीण खेती करें । यह एक प्रकार का आरक्षण भविष्य में घातक ही होगा । ये सारे लोग किसी भी रूप मे न श्रम की मांग बढ़ने देते हैं न श्रम का मूल्य । पहली बार भारत सरकार ने नरेगा चालू किया जिसने गांवो में श्रम की मांग बढ़ाई और मूल्य बढ़ाया । आज हमारे ग्रामीण विकास मंत्री जय राम रमे नरेगा के विरूद्ध जी जान से लगे हुए हैं । उन्हे श्रमजीवियो का भ्रष्टाचार बहुत अखरता है । उनका मानना है कि चाहे बड़े लोग या मध्यम श्रेणी के लोग जो भी करे लेकिन निम्न वर्ग कोई भ्रष्टाचार न करे और उनका बस चले तो वे नरेगा को बन्द भी कर दे । हरियाणा पंजाब के  कई सांसदो ने इस संबंध मे प्रस्ताव भी पारित किये हैं कि नरेगा के कारण उत्पादन पर बुरा असर पड़ रहा है । यह तो मनमोहन सिंह, सोनियां गांधी, लाल कृष्ण आडवाणी सरीखे कुछ लोगो की जिद है कि आज भी नरेगा की योजना चल रही है । छत्तीसगढ़ के मुख्य मंत्री रमन सिंह अन्य मुख्यमंत्रियो की अपेक्षा अधिक संवेदनशील माने जाते है । उन्होने नीति निर्धारण के समय यह बात उठाई कि गांवो मे रोजगार बढ़ना चाहिये । उद्योग लगने चाहिये । उन्होने यह भी आदेश दिया कि गांवो में खेती की जमीन का रकबा किसी भी  रूप में नहीं  घटना चाहिये । मैं आज तक नहीं समझा कि यदि कोई छोटे से छोटा उद्योग भी लगेगा तो वह गांव की जमीन में लगेगा या हवा में । स्वाभाविक है कि गांवो मे उद्योग लगाने की बात दिखावटी थी और शहरो मे उद्योग केन्द्रित करने की बात दिल की । इन सब बुद्धिजीवियो और नेताओ का ठीक से बस चले तो निम्न वर्ग को श्रम करने तक सीमित कर देंगें और मध्यम वर्ग उच्च वर्ग को खाने की छूट कर  देंगे । अभी राज गोपाल जी ने जो आंदोलन किया उससे ऐसा लगता है कि निम्न वर्ग को  जमीन से लगाए रखने के लिये बुद्धिजीवियों और राजनेताओं के बीच एक मिली भगत है । ज्योंही किसी गांव में कोई उद्योग लगाने की स्थिति पैदा होती है तो ब्रम्हदेव शर्मा को सबसे पहले पर्यावरण प्रदूषण की चिन्ता शुरू हो जाती है । ऐसा लगता है जैसे पर्यावरण बचाना, अनाज को पैदा करना, मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग को सुरक्षा देना, निम्न वर्ग की ठेकेदारी है और हमारे तथा कथित बुद्धिजीवी इस चालीस करोड़ निम्न वर्ग को उसके दायित्व की याद दिलाते रहते  है और बदले मे उन्हे कुछ सस्ता अनाज सस्ती जमीन देकर उनके हित चिंतक बने रहते है ।  किसी गांव में एक एकड़ किसी आदिवासी की जमीन है तो उसका मूल्य दो हजार रूपये से ज्यादा का नही होगा । और उसके ठीक बगल मे किसी गैर आदिवासी की जमीन हो तो उसका मूल्य  कई लाख रूपये होगा क्योंकि गैर आदिवासी के पास पैसा है और आदिवासी के पास जमीन । आदिवासी को यह अधिकार नही है कि वह जमीन के बदले में पैसा रख लें । यह प्रचारित कर दिया गया है कि निम्न वर्ग के लोग मूर्ख होते हैं ।  उनके हाथ में पैसा जाएगा तो बर्बाद कर देंगे । जमीन रहेगी तो कई पीढ़ियों तक काम आएगी ।  इसलिये उनके पास जमीन सुरक्षित रहनी चाहिये और उच्च मध्यम वर्ग के पास पैसा । सब मानते है कि यदि कृत्रिम  उर्जा का मूल्य दो गुना कर दिय जाए,  उससे प्राप्त धन चालीस करोड़ निम्न वर्ग के लोगो मे बाँट दिया जाए तो निम्न वर्ग के प्रति परिवार को दस हजार रूपया प्रतिमाह तक मिल सकता है । मध्यम वर्ग का मानना है कि इससे उच्च मध्यम वर्ग परेशान हो जाएगा । आवागमन महंगा हो जाएगा । निम्न वर्ग मेहनत करना बंद कर देगा और यदि निम्न वर्ग इतनी मेहनत नही करेगा तो मध्यम वर्ग बैठकर खाएगा कैसे । ममता बनर्जी तो निम्न वर्ग के खिलाफ षड़यंत्र करती रहती है कि आवागमन मंहगा  न हो शिक्षा और स्वास्थ्य  का बजट न घटे । भले ही रोटी, कपड़ा, मकान, दवा, पर टैक्स बढ़ाना पड़े या न पड़े । लालू प्रसाद, राम विलास पासवान, ममता बैनर्जी सब जानते हैं कि सस्ते आवागमन का लाभ निम्न वर्ग को 10 प्रतिशत से  अधिक नही होगा । मध्यम वर्ग ही इसका ज्यादा लाभ उठाता है । लेकिन इन नेताओं का मानना है कि निम्न वर्ग जाएगा कहाँ । चाहे भाजपा के पास जाये या कांग्रेस के पास । सब जगह तो मध्यम वर्ग का ही एकाधिकार है। अब समय आ गया है कि मध्यम वर्ग  के कुछ लोग इस बात को समझे । कृत्रिम उर्जा की मूल्य वृद्धि होनी ही  चाहिये । लकड़ी पर टैक्स लगाकर रसोई गैस पर सब्सीडी देना बहुत बड़ा पाप है । चाहे अरविन्द केजरीवाल, राज गोपाल, अमर नाथ भाई इस बात को समझे या न समझे । लेकिन अन्य लोगो को तो समझना चाहिये कि निम्न वर्ग मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के बीच बढ़ती हुई दूरी की एक सीमा आवश्यक है । भारत की विकास दर यदि छः प्रतिशत हो तो निम्न वर्ग की विकास दर 1 प्रतिशत  होना, मध्यम वर्ग की 6 प्रतिशत होना, उच्च वर्ग की 12 प्रतिशत होना किसी भी रूप मे न्याय संगत नही है । विकास दर का यह अंतर कम होना ही चाहिये । यह मानवीय दृष्टि से भी उचित है और देशकाल परिस्थिति के अनुसार भी ।