हम मोड़ने चले है
हम मोड़ने चले हैं
हम मोड़ने चले है युग की प्रचण्ड धारा ।
उठते हैं गिरते-गिरते हे साथी दो सहारा ।।
फैली अनीतियॉ है उन को उखाड़ना है,
छल कंस कर रहा है उस को पछाड़ना है,
संकीर्ण स्वार्थ की यह बस्ती उजाड़ना है,
फिर व्यूह कौरवों का हम को बिगाड़ना है,
मिट जाये फिर असुरता यह लक्ष्य है हमारा ।
हम मोड़ने चले है युग की प्रचण्ड धारा ।।
हम कर्म तो करेंगे, परिणाम मांगते है,
साधन स्वयं गढ़ेंगे, सदज्ञान मांगते है,
भगवान तुम से कब हम वरदान मांगते है,
बस एक सत असत की पहचान मांगते है,
यह पा सकें तभी जब आषीष हो तुम्हारा ।
हम मोड़ने चले है युग की प्रचण्ड धारा ।।
हम युद्ध तो करेंगे पर रथ तुम्हीं संभालों,
हम अस्थि दान देंगे तुम वज्र तो बना लो,
संकल्प ध्रुव हमारा तुम गोद में बिठा लो,
गिरते हुए रथी को धीरेसे तुम उठा लो,
तुम दौड़ करके आये जब मंच ने पुकारा ।
हम मोड़ने चले है युग की प्रचण्ड धारा ।।
Comments