कोरोना वायरस कितनी समस्या कितना समाधान
कोरोना वायरस कितनी समस्या कितना समाधान
प्रकृति के रहस्य सुलझाने मे विज्ञान निरंतर सक्रिय है, किन्तु प्रकृति के अनेक रहस्य सुलझते नही दिखते। मनुष्य के शरीर पर कितनी भी खोज की जा रही है लेकिन रहस्य गहराता ही चला जाता है।ब्रह्माण्ड की भी हम निरंतर खोज कर रहे है पर किसी अंतिम छोर तक नही पहुंच पाते। ऐसा लगता है कि प्रलय तक हम मनुष्य के शरीर और प्रकृति के रहस्य पर खोज करते ही रह जायेंगे। हमने हमेशा यह देखा कि शरीर मे बीमारियों और उनसे निपटने का पूरा पूरा संतुलन बना हुआ है। अधिकांश बीमारियों का इलाज शरीर के अंदर ही व्याप्त है। इसी तरह का संतुलन कुछ प्रकृति मे भी दिखता है। जब हम अपने शरीर या प्रकृत्ति के साथ गंभीर छेडछाड करते है तब उसके दुष्परिणाम प्राकृतिक होते है और समाधान भी प्राकृतिक। ऐसे समय मे मनुष्य लाचार होकर ईश्वर पर भरोसा करता है।
पूरी दुनियां ठीक दिशा मे चल रही थी। दुनियां के सभी नागरिक भौतिक उन्नति की दिशा मे थे। भोजन और निवास का स्तर लगातार सुधर रहा था। स्वास्थ्य के मामले मे भी उम्र निरंतर बढ रही थी। आमलोग धीरे धीरे सुविधाओ की ओर बढ रहे थे और सुख अनुभव कर रहे थे। विज्ञान निरंतर अंतरिक्ष मे छलांग लगाता जा रहा था। जिस तरह रामायण काल मे उच्च स्तरीय जीवन स्तर का वर्णन आता है उस दिशा मे सारी दुनियां बढ रही थी। आवागमन बहुत सरल हो गया था। सोने की लंका भी बनाना कठिन नही दिख रहा था। घर बैठे दुनियां के लोगो से प्रत्यक्ष चर्चा करना सरल हो गया था। दुनियां खुश थी। हम दुनियां के एक दूसरे पक्ष को भी देखे तो संपूर्ण विश्व मे नैतिकता का स्तर गिर रहा था। हर व्यक्ति के अंदर हिंसा और स्वार्थ का भाव बढ रहा था। छल कपट निरंतर बढ रहा था। पर्यावरण प्रदूषण इतनी खतरनाक स्थिति तक आ गया था कि वह व्यक्ति के स्वास्थ्य को निरंतर प्रभावित कर रहा था। गरीब और अमीर के बीच खाई बढ रही थी। अमीर आदमी विज्ञान का लाभ उठाकर हवाई जहाज की गति से आगे छलांग लगा रहा था तो बेचारा श्रमजीवी जमीन पर पैदल भी ठीक से नही चल पा रहा था। श्रम का शोषण करने के लिये हर बुद्धिजीवी नये नये तरीके खोज रहा था। चालाकी को सफलता का मापदंड मान लिया गया था और शराफत को मूखर्ता कहने लगे थे। विकास दर निरंतर बढती जा रही थी। कभी इस बात पर सोचा ही नही गया कि जब सारी दुनियां एक साथ विकास कर रही हो तो यह विकास किसकी कीमत पर हो रहा है। संगठन मे ही शक्ति है इसे सफलता का आधार मान लिया गया था। इस्लाम संगठित शक्ति के बल पर सारी दुनियां को गुलाम बनाकर रखना चाहता था। इस तरह पिछले कुछ 100 वर्षो मे सारे विश्व का एक उज्जवल पक्ष भी दिख रहा था तो एक अंधकार पक्ष भी साफ था।
ऐसे ही काल खंड मे #कोरोना नामक एक प्राकृतिक बीमारी प्रगट हो गई। बीमारी चीन की गलती से आई या जानबुझ कर पैदा की गई, यह रहस्य शायद ही कभी पता चले, किन्तु बीमारी बहुत ही खतरनाक तरीके से आई। अब तक उसका अंतिम परिणाम नही आया है। किन्तु दुनिया के दो तीन लाख लोग मरने की संभावना है और चिंता मृत्यु की ही नही है, चिंता सारी दुनियां की भौतिक उन्नति पर बुरे प्रभाव की है। जी.डी.पी. गिरेगी यह निश्चित है। लोगो की क्रय शक्ति घटेगी, जीवन स्तर घटेगा, आवागमन कम होगा, कुछ मनोबल भी टूटेगा, यह निश्चित दिखता है। लेकिन एक बात बिल्कुल भिन्न है कि #कोरोना के पहले जो ऐसे विश्वव्यापी संकट आते थे, उन संकटो का गरीबो पर अधिक और अमीरो पर कम प्रभाव पडता था। #कोरोना का प्रभाव उल्टा है। जो व्यक्ति जीतना ही अधिक सम्पन्न है, उस व्यक्ति की रोगो से लडने की शारीरिक क्षमता उतनी ही कम है और ऐसे व्यक्ति के #कोरोना प्रभावित होने के अवसर भी उतने ही ज्यादा है। गरीब, ग्रामीण, श्रमजीवी इस बीमारी से सुरक्षित दिख रहे है। इस बीमारी से अधिक प्रभावित हो रहे है, बडे बडे नेता या उद्योगपति। सम्पन्न देश बहुत अधिक प्रभावित है और कमजोर देश पर बहुत मामूली प्रभाव है। लगता है कि प्रकृति प्राकृतिक तरीके से #कोरोनो का माध्यम बना कर उच्चश्रृंखलता को दंडित कर रही है। विज्ञान के सहारे आसमान मे उड रहे लोगो को एक नया संदेश मिल रहा है।
अब हम दुनियां की राजनैतिक स्थिति का आँकलन करें। दुनियां मे दो मजबूत समूह बने हुए है जिसमे एक लोकतांत्रिक, पूंजीवादी देशो का है तो दूसरा तानाशाह चीन, रूस का। पूंजीवादियाँ का नेतृत्व अमेरिका के पास है तो तानाशाहो का नेतृत्व चीन के पास है। अब तक अमेरिका भारी रहा है और चीन धीरे धीरे मुकाबले की ओर बढ रहा है। भारत अब तक दोनो के बीच मे चुपचाप स्वयं को जिंदा रखने का प्रयास करता है। #कोरोना_वायरस इस स्थिति मे कुछ बदलाव ला सकता है। चीन इस वायरस से लाभ उठाना शुरू कर चुका है और अमेरिका लगातार नुकसान उठा रहा है। भारत को इस वायरस से किसी प्रकार की लाभ-हानि की उम्मीद नही है। लेकिन भारत दुनियां मे एक तीसरी शक्ति के रूप मे है जो संतुलन बनाता रहता है।अभी #कोरोना के कारण दुनियां की स्थिति स्पष्ट नही हुई है। यदि अमेरिका को अधिक नुकसान नही हुआ, तब भारत वर्तमान स्थिति के अनुसार संतुलन बनाता रहेगा। भारत का इस टक्कर मे मजबूत होना निश्चित है क्योकि भारत को कोई विशेष नुकसान नही हुआ है बल्कि लाभ हो सकता है। लेकिन यदि अमेरिका कमजोर पडा और चीन हावी हुआ तब भारत का अपनी राजनैतिक व्यवस्था मे आमूल चूल बदलाव करना पडेगा। लोकतंत्र आदर्श स्थिति होती है और तानाशाही विकास मे बहुत अधिक सहायक होती है। चीन तानाशाही के आधार पर ही अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करता रहा हैं यदि भारत और चीन के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा होती है तो भारत के सामने यह मजबूरी होगी कि वह तानाशाही के मार्ग पर चलकर चीन को टक्कर दे सके। लोकतांत्रिक मार्ग से चीन को टक्कर देना भारत के लिये कठिन होगा।
अभी सब कुछ अस्पष्ट है। इसलिये कोई
#ज्ञानयज्ञ #मंथन_क्रमांक_164 "#कोरोना_वायरस_कितनी_समस्या_कितना_समाधान
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प्रकृति के रहस्य सुलझाने मे विज्ञान निरंतर सक्रिय है, किन्तु प्रकृति के अनेक रहस्य सुलझते नही दिखते। मनुष्य के शरीर पर कितनी भी खोज की जा रही है लेकिन रहस्य गहराता ही चला जाता है।ब्रह्माण्ड की भी हम निरंतर खोज कर रहे है पर किसी अंतिम छोर तक नही पहुंच पाते। ऐसा लगता है कि प्रलय तक हम मनुष्य के शरीर और प्रकृति के रहस्य पर खोज करते ही रह जायेंगे। हमने हमेशा यह देखा कि शरीर मे बीमारियों और उनसे निपटने का पूरा पूरा संतुलन बना हुआ है। अधिकांश बीमारियों का इलाज शरीर के अंदर ही व्याप्त है। इसी तरह का संतुलन कुछ प्रकृति मे भी दिखता है। जब हम अपने शरीर या प्रकृत्ति के साथ गंभीर छेडछाड करते है तब उसके दुष्परिणाम प्राकृतिक होते है और समाधान भी प्राकृतिक। ऐसे समय मे मनुष्य लाचार होकर ईश्वर पर भरोसा करता है।
पूरी दुनियां ठीक दिशा मे चल रही थी। दुनियां के सभी नागरिक भौतिक उन्नति की दिशा मे थे। भोजन और निवास का स्तर लगातार सुधर रहा था। स्वास्थ्य के मामले मे भी उम्र निरंतर बढ रही थी। आमलोग धीरे धीरे सुविधाओ की ओर बढ रहे थे और सुख अनुभव कर रहे थे। विज्ञान निरंतर अंतरिक्ष मे छलांग लगाता जा रहा था। जिस तरह रामायण काल मे उच्च स्तरीय जीवन स्तर का वर्णन आता है उस दिशा मे सारी दुनियां बढ रही थी। आवागमन बहुत सरल हो गया था। सोने की लंका भी बनाना कठिन नही दिख रहा था। घर बैठे दुनियां के लोगो से प्रत्यक्ष चर्चा करना सरल हो गया था। दुनियां खुश थी। हम दुनियां के एक दूसरे पक्ष को भी देखे तो संपूर्ण विश्व मे नैतिकता का स्तर गिर रहा था। हर व्यक्ति के अंदर हिंसा और स्वार्थ का भाव बढ रहा था। छल कपट निरंतर बढ रहा था। पर्यावरण प्रदूषण इतनी खतरनाक स्थिति तक आ गया था कि वह व्यक्ति के स्वास्थ्य को निरंतर प्रभावित कर रहा था। गरीब और अमीर के बीच खाई बढ रही थी। अमीर आदमी विज्ञान का लाभ उठाकर हवाई जहाज की गति से आगे छलांग लगा रहा था तो बेचारा श्रमजीवी जमीन पर पैदल भी ठीक से नही चल पा रहा था। श्रम का शोषण करने के लिये हर बुद्धिजीवी नये नये तरीके खोज रहा था। चालाकी को सफलता का मापदंड मान लिया गया था और शराफत को मूखर्ता कहने लगे थे। विकास दर निरंतर बढती जा रही थी। कभी इस बात पर सोचा ही नही गया कि जब सारी दुनियां एक साथ विकास कर रही हो तो यह विकास किसकी कीमत पर हो रहा है। संगठन मे ही शक्ति है इसे सफलता का आधार मान लिया गया था। इस्लाम संगठित शक्ति के बल पर सारी दुनियां को गुलाम बनाकर रखना चाहता था। इस तरह पिछले कुछ 100 वर्षो मे सारे विश्व का एक उज्जवल पक्ष भी दिख रहा था तो एक अंधकार पक्ष भी साफ था।
ऐसे ही काल खंड मे #कोरोना नामक एक प्राकृतिक बीमारी प्रगट हो गई। बीमारी चीन की गलती से आई या जानबुझ कर पैदा की गई, यह रहस्य शायद ही कभी पता चले, किन्तु बीमारी बहुत ही खतरनाक तरीके से आई। अब तक उसका अंतिम परिणाम नही आया है। किन्तु दुनिया के दो तीन लाख लोग मरने की संभावना है और चिंता मृत्यु की ही नही है, चिंता सारी दुनियां की भौतिक उन्नति पर बुरे प्रभाव की है। जी.डी.पी. गिरेगी यह निश्चित है। लोगो की क्रय शक्ति घटेगी, जीवन स्तर घटेगा, आवागमन कम होगा, कुछ मनोबल भी टूटेगा, यह निश्चित दिखता है। लेकिन एक बात बिल्कुल भिन्न है कि #कोरोना के पहले जो ऐसे विश्वव्यापी संकट आते थे, उन संकटो का गरीबो पर अधिक और अमीरो पर कम प्रभाव पडता था। #कोरोना का प्रभाव उल्टा है। जो व्यक्ति जीतना ही अधिक सम्पन्न है, उस व्यक्ति की रोगो से लडने की शारीरिक क्षमता उतनी ही कम है और ऐसे व्यक्ति के #कोरोना प्रभावित होने के अवसर भी उतने ही ज्यादा है। गरीब, ग्रामीण, श्रमजीवी इस बीमारी से सुरक्षित दिख रहे है। इस बीमारी से अधिक प्रभावित हो रहे है, बडे बडे नेता या उद्योगपति। सम्पन्न देश बहुत अधिक प्रभावित है और कमजोर देश पर बहुत मामूली प्रभाव है। लगता है कि प्रकृति प्राकृतिक तरीके से #कोरोनो का माध्यम बना कर उच्चश्रृंखलता को दंडित कर रही है। विज्ञान के सहारे आसमान मे उड रहे लोगो को एक नया संदेश मिल रहा है।
अब हम दुनियां की राजनैतिक स्थिति का आँकलन करें। दुनियां मे दो मजबूत समूह बने हुए है जिसमे एक लोकतांत्रिक, पूंजीवादी देशो का है तो दूसरा तानाशाह चीन, रूस का। पूंजीवादियाँ का नेतृत्व अमेरिका के पास है तो तानाशाहो का नेतृत्व चीन के पास है। अब तक अमेरिका भारी रहा है और चीन धीरे धीरे मुकाबले की ओर बढ रहा है। भारत अब तक दोनो के बीच मे चुपचाप स्वयं को जिंदा रखने का प्रयास करता है। #कोरोना_वायरस इस स्थिति मे कुछ बदलाव ला सकता है। चीन इस वायरस से लाभ उठाना शुरू कर चुका है और अमेरिका लगातार नुकसान उठा रहा है। भारत को इस वायरस से किसी प्रकार की लाभ-हानि की उम्मीद नही है। लेकिन भारत दुनियां मे एक तीसरी शक्ति के रूप मे है जो संतुलन बनाता रहता है।अभी #कोरोना के कारण दुनियां की स्थिति स्पष्ट नही हुई है। यदि अमेरिका को अधिक नुकसान नही हुआ, तब भारत वर्तमान स्थिति के अनुसार संतुलन बनाता रहेगा। भारत का इस टक्कर मे मजबूत होना निश्चित है क्योकि भारत को कोई विशेष नुकसान नही हुआ है बल्कि लाभ हो सकता है। लेकिन यदि अमेरिका कमजोर पडा और चीन हावी हुआ तब भारत का अपनी राजनैतिक व्यवस्था मे आमूल चूल बदलाव करना पडेगा। लोकतंत्र आदर्श स्थिति होती है और तानाशाही विकास मे बहुत अधिक सहायक होती है। चीन तानाशाही के आधार पर ही अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करता रहा हैं यदि भारत और चीन के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा होती है तो भारत के सामने यह मजबूरी होगी कि वह तानाशाही के मार्ग पर चलकर चीन को टक्कर दे सके। लोकतांत्रिक मार्ग से चीन को टक्कर देना भारत के लिये कठिन होगा।
अभी सब कुछ अस्पष्ट है। इसलिये कोई साफ साफ मार्ग बताना संभव नही है किन्तु इतना स्पष्ट दिख रहा है कि प्रकृति ने हमारी गलतियो का दंड दिया है और इसके लाभ भी होगे। इस विषय पर साफ तसवीर कुछ महिनो बाद ही स्पष्ट होगी। मेरा सबसे यह निवेदन है कि भौतिक उन्नति के साथ साथ कुछ नैतिक उन्नति की भी चिंता करे।
साफ साफ मार्ग बताना संभव नही है किन्तु इतना स्पष्ट दिख रहा है कि प्रकृति ने हमारी गलतियो का दंड दिया है और इसके लाभ भी होगे। इस विषय पर साफ तसवीर कुछ महिनो बाद ही स्पष्ट होगी। मेरा सबसे यह निवेदन है कि भौतिक उन्नति के साथ साथ कुछ नैतिक उन्नति की भी चिंता करे।
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