लोकतंत्र कितनी समस्या क्या समाधान
कार्य दो प्रकार के होते हैः- 1. करने योग्य 2. न करने योग्य अर्थात् प्रतिबंधित । व्यक्ति तीन प्रकार के होते हैंः- 1. जो करने योग्य कार्य करते हैं तथा प्रतिबंधित कार्य नहीं करते । ऐसे व्यक्तियों को सामाजिक कहा जाता है । 2. जो करने योग्य कार्य भी नहीं करते तथा प्रतिबंधित कार्य भी नहीं करते । ऐसे लोगों को असामाजिक कहा जाता है । 3. जो करने योग्य कार्य नहीं करते और प्रतिबंधित कार्य करते हैं । ऐसे लोगो को समाज विरोधी कहा जाता है । सामाजिक लोगों को धर्म मार्गदर्षित करता है, असामाजिक लोगों को समाज अनुशासित करता है तथा समाज विरोधी लोगों को राज्य प्रतिबंधित करता है ।
भारत में प्राचीन समय में धर्म, समाज, राज्य और अर्थ व्यवस्था के बीच संतुलन को मुख्य आधार मानते हुये वर्ण व्यवस्था बनाई थी । बाद में वर्ण व्यवस्था में आई कुछ विकृतियों के कारण भारत गुलाम हुआ । स्वतंत्रता के बाद भारत ने विदेशों की नकल की और भारत में विदेशों की तरह लोकतंत्र आया । स्पष्ट है कि लोकतंत्र के विभिन्न गुण दोषो का भारत पर भी व्यापक प्रभाव दिख रहा है ।
लोकतंत्र कोई एक स्वतंत्र शब्द न होकर लोक और तंत्र शब्दों को मिलाकर बना है । लोक का अर्थ होता है समाज और तंत्र का अर्थ होता है राज्य अर्थात् शासन । लोकतंत्र एक मार्ग होता है लक्ष्य नहीं । तानाशाही और राजतंत्र की तुलना में लोकतंत्र को अच्छा माना जाता है किन्तु लोकतंत्र समस्या का समाधान नहीं है क्योंकि लोकतंत्र में अव्यवस्था निश्चित होती है और अव्यवस्था का समाधान है तानाशाही । आज तक दुनियां ऐसा कोई मार्ग नहीं खोज सकी जिसमें लोकतंत्र तो हो किन्तु अव्यवस्था न हो । इस प्रकार के गंभीर मुद्दों पर भारत ही कुछ मार्ग तलाशने की पहल करता रहा है किन्तु भारत में विचार मंथन बन्द होने से भारत तो स्वयं नकल करते हुये लोकतंत्र की प्रशंसा करने लगा । परिणाम हुआ कि लोकतंत्र का विकल्प खोजने की कोई पहल ही नहीं हुई ।
व्यक्ति और समाज मूल इकाइयां होती हैं तथा राज्य व्यवस्था की इकाई होता है । राज्य का एकमात्र दायित्व है व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा और उसकी उच्श्रृंखलता पर रोक । दुनियां के प्रत्येक व्यक्ति में ये दोनो गुण अवगुण होते ही हैं इसलिये राज्य को यह विशेष शक्ति प्राप्त होती है कि वह प्रत्येक व्यक्ति का शासक हो । राज्य इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये जो सिस्टम बनाता है उस सिस्टम को ही लोकतंत्र तानाशाही या अन्य कुछ नाम दिया जाता है । आदर्श लोकतंत्र में व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा तथा उसकी उच्श्रृंखलता पर नियंत्रण की गारंटी होती है । तानाशाही में व्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी नियंत्रण होता है तथा उच्श्रृंखलता पर भी नियंत्रण होता है । वर्तमान विश्व की लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी कोई रोक नहीं है और उच्श्रृंखलता पर भी रोक में राज्य असफल है किन्तु भारत में एक अलग प्रकार का लोकतंत्र काम कर रहा है जहाँ भारत में प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता पर तो रोक है किन्तु उच्श्रृंखलता की छूट है । वैसे तो सारी दुनियां में लोकतंत्र असफल है किन्तु भारत में तो असफल की जगह कुसफल कहा जा सकता है। व्यक्ति और समाज एक दूसरे के साथ जुड़े हुये हैं । बीच में होता है राज्य । राज्य को शासन प्रणाली के मार्ग के रूप में लोकतांत्रिक प्रणाली लोक के द्वारा सौंपी गई है । लोकतंत्र का अर्थ होता है लोक नियंत्रित तंत्र किन्तु भारतीय तंत्र ने इस सीधी और स्पष्ट परिभाषा को स्वीकार न करके विदेशों की टेढ़ी-मेढ़ी परिभाषा फार द पिपुल आफ द पिपुल बाई द पिपुल को मान लिया जिस परिभाषा का आज तक ठीक ठीक अर्थ ही समझ में नहीं आया ।
लोक सर्वोच्च इकाई होती है और व्यक्ति सबसे नीचे । लोक अर्थात् सर्वोच्च इकाई द्वारा बनाई गई व्यवस्था के अनुसार तंत्र और तंत्र द्वारा बनाई गई व्यवस्था के अनुसार व्यक्ति कार्य करने के लिये बाध्य है । हर नीचे की इकाई उपर की इकाई द्वारा बनाई गई व्यवस्था से संचालित होती है और हर नीचे की इकाई के लिये व्यवस्था बनाती है । लोकतंत्र का यही क्रम बना हुआ है । आदर्श लोकतंत्र में लोक एक संविधान बनाता है और तंत्र उस संविधान के अनुसार कार्य करता है । तंत्र कुछ कानून बनाता है और व्यक्ति उस कानून के अनुसार कार्य करता है । एक चक्र बना हुआ है जिसमें व्यक्ति जब लोक के साथ जुड़ता है तो स्वयं को मालिक समझता है और जब तंत्र के नीचे अकेला होता है तब गुलाम । तंत्र भी लोक के लिये मैनेजर या प्रबंधक की भूमिका तक सीमित होता है तो व्यक्ति के मामले में संचालक या मालिक । दुनियां के लोकतंत्र में तंत्र को पूरी तरह लोक का प्रबंधक घोषित न करके कुछ अस्पष्ट व्यवस्था की तो भारत ने उस तरह की भी व्यवस्था न करके तंत्र को शासक और लोक को शासित मान लिया । तानाशाही में तंत्र नियंत्रित संविधान होता है तो लोकतंत्र में संविधान नियंत्रित तंत्र । तानाशाही भी तीन प्रकार की होती हैः- 1. व्यक्ति की 2. ग्रुप की 3. सिस्टम की । उत्तर कोरिया तथा कुछ मुस्लिम देशों में व्यक्ति की तानाशाही है तो चीन आदि कुछ देशों में ग्रुप की । भारत में सिस्टम की तानाशाही है । भारत की सम्पूर्ण राजनैतिक व्यवस्था को लोकतंत्र न कहकर लोकतांत्रिक तानाशाही कहना अधिक उपयुक्त होगा क्योंकि भारत में तंत्र तथा संविधान एक ही इकाई के पास इकठ्ठे हो गये हैं । भारत का लोकतंत्र लोक नियंत्रित तंत्र की जगह लोक नियुक्त तंत्र बन गया है । लोकतंत्र में मैनेजर रूपी तंत्र लोक द्वारा बनाये गये किसी संवैधानिक सिस्टम के अन्तर्गत काम करता है तो भारत में तंत्र ही सिस्टम भी बनाने लगा तो वही तंत्र अपने बनाये सिस्टम के अनुसार काम भी करने लगा। इस तरह चुनावों के माध्यम से हम मालिक चुनने लगे, मैनेजर नहीं । तंत्र ने स्वयं को लोक का मैनेजर न समझकर कस्टोडियन घोषित कर दिया जिसकी अन्तिम अवधि का अधिकार भी तंत्र ने अपने पास ही सुरक्षित रख लिया ।
दुनियां में राज्य कमजोरीकरण के लिये तो हमें विश्व संविधान से शुरूआत करनी होगी जो अभी कठिन है किन्तु भारत से राज्य कमजोरीकरण के लिये संविधान सभा और तंत्र को अलग-अलग करना होगा । संविधान सभा संविधान के माध्यम से तंत्र के लिये एक सिस्टम बनायेगी और तंत्र उक्त संविधान के अन्तर्गत काम करने के लिये बाध्य होगा ।
राम रावण युद्ध में राम रावण को मारते थे किन्तु रावण मरता ही नहीं था क्योंकि उसकी नाभि में अमृत कुन्ड था। रावण के भाई विभीषण के बताने पर जब राम ने उक्त अमृत कुन्ड को अलग किया तब रावण मरा । हम चाहे जितना व्यवस्था परिवर्तन कर लें किन्तु राज्य कमजोरीकरण तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक संविधान संशोधन के असीम अधिकार भी तंत्र के पास ही रहते हैं । अन्य जो भी प्रयास हम करते हैं वे व्यवस्था में सुधार तक सीमित हैं क्योंकि राजनैतिक व्यवस्था परिवर्तन के लिये तो हमें तंत्र के नियंत्रण से संविधान को मुक्त कराने की ही पहल करनी होगी । मैं जानता हूँ कि तंत्र से जुड़ा कोई भी व्यक्ति हमारे व्यवस्था परिवर्तन के इस निष्कर्ष से सहमत नहीं होगा किन्तु मार्ग एकमात्र यही है इसलिये इस संबंध में लोक अर्थात् समाज में जन जागृति आनी चाहिये ।
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