स्वदेशी
स्वदेशी गीत
कलियॉं, सुमन, सुगन्धों वाला यह उद्यान स्वदेषी हो ।
हर क्यारी, हर खेत, स्वदेषी हर खलिहान स्वदेषी हो ।।
तन, मन, धन की जन जीवन की प्रिय पहचान स्वदेषी हो,
मान स्वदेषी, आन स्वदेषी, अपनी संविधान स्वदेषी हो,
वीर शहीदों के सपनों का, हर अभिमान स्वदेषी हो,
ऐड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेषी हो ।
अभिमन्यु सा चक्रव्यूह में, मेरा भारत देष घिरा,
पथ की मंजिल को रथ रोकें, कहॉं क्षितिज का स्वर्ण सिरा,
सजे खड़े हैं द्रोणकर्ण और दुष्ट दुषासन दुर्योधन,
कौन युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेवों को दे उद्बोधन,
जो अर्जुन का मोह मिटा दे, वह भगवान स्वदेषी हो।
ऐड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेषी हो ।।
मन गिरवी है, तन गिरवी है, गिरवी है हर स्वांस यहॉं,
बढ़ता जाता कर्ज निरंतर नहीं बची कुछ आस यहॉं,
गांधी तेरी खादी रोती, देख दषा इस देष की,
राष्ट्र अस्मिता सिया सरीखी, बदीं है लंकेष की,
जो लंका में आग लगा दे, वह हनुमान स्वदेषी हो,
ऐड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेषी हो ।।
भारत माता के मंदिर में, बहुत प्रदूषण बढ़ा दिया,
लोकतंत्र के शव पर गांधीवाद काट कर चढ़ा दिया,
समझौतों की बात यहां पर, होती है हत्यारों से,
गली-गली भारत की गूंजे, आंतकी जयकारों से,
बलिदानों की इस धरती का संविधान स्वदेषी हो ।
ऐड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेषी हो ।।
मानव श्रम बेकार घूमता, गलियों के सन्नाटे में,
कृत्रिम ऊर्जा दौड़ रही है, आज यहां फर्राटे से,
मानव श्रम का शोषण होता, आज देष में गर्व से,
कृत्रिम ऊर्जा पूजी जाती है, घर-घर में पर्व से,
जो श्रम को सम्मान दिला दे, वह अभियान स्वदेषी हो।
ऐड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेषी हो ।।
आधी सदी बितायी हम ने, लोकतंत्र के नारों से,
लोकतंत्र की हत्या हो गयी, उसी के पहरेदारों से,
लोकतंत्र का विकल्प हमको, अब तत्काल बनाना है,
लोकतंत्र के बदले हम को, लोक स्वराज्य ही लाना है,
ऐसे विकल्प आंदोलन का, हर सोपान स्वदेषी हो।
ऐड़ी से चोटी तक सारा, हिन्दुस्तान स्वदेषी हो ।।
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