कांग्रेस और राहुल गाँधी GT-444
कांग्रेस और नेहरु परिवार का भविष्य-
हम इस बात की चर्चा करते हैं की नेहरू परिवार का भविष्य क्या है और वर्तमान परिस्थितियों में उसके सामने क्या-क्या विकल्प है। पहली बात तो यह है कि भारतीय राजनीति में सिर्फ दो ही दल ऐसे हैं जिन्हें दल कहा जा सकता है साम्यवादी पार्टी तो पूरी तरह एक राजनीतिक दल के समान है भारतीय जनता पार्टी भी नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मिलाकर चल रही है इसलिए उसे भी आंशिक रूप से राजनीतिक दल कहा जा सकता है अन्य सभी राजनीतिक दल तो कुछ व्यक्तियों की दुकान भर है जिसमें कांग्रेस पार्टी भी शामिल है। नेहरू परिवार का भविष्य कांग्रेस के साथ जुड़ा है और कांग्रेस का भविष्य भी नेहरू परिवार के साथ जुड़ा है। वर्तमान भारत में नेहरू परिवार का भविष्य लगातार समाप्त होता दिख रहा है क्योंकि नेहरू परिवार ने पूरी तरह हिंदुओं का विश्वास खो दिया है असम के मुख्यमंत्री ने तो यहां तक संभावना व्यक्त की है कि अब कांग्रेस में सिर्फ मुसलमान ही रहेंगे बाकी सब लोग कांग्रेस से धीरे-धीरे निकल जाएंगे यह एक बहुत गंभीर समस्या है। इससे बचने के लिए यदि नेहरू परिवार के लिए विकल्पों की तलाश करें, तो नेहरू परिवार को सबसे पहले साम्यवाद से दूर हो जाना चाहिए। अब उसे मध्य मार्ग अपनाना चाहिए, चीन और रूस के पिछलगू में गिनती नहीं रहनी चाहिए, भारत में भी साम्यवादियों के साथ नेहरू परिवार का जुड़ाव समाप्त हो जाना चाहिए। दूसरी बात यह है कि नेहरू परिवार को पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष हो जाना चाहिए उसके साथ अभी जो मुस्लिम साम्प्रदायिकता जुड़ी हुई है वह नेहरू परिवार के लिए बहुत घातक है जब तक नेहरू परिवार मुसलमान पर निर्भरता को नहीं छोड़ देगा तब तक नेहरू परिवार राजनीति में बच नहीं सकेगा। यदि यह दो काम नेहरू परिवार नहीं कर सकता तो उसे एक तीसरे विकल्प की दिशा में बढ़ाना चाहिए उसे पूरी तरह तेज गति से गांधी मार्ग पर चल पड़ना चाहिए लोक स्वराज ग्राम स्वराज परिवार स्वराज की दिशा ही गांधी मार्ग है। यदि नेहरू परिवार इस दिशा में बहुत तेज गति से आगे बढ़ता है तब ही नेहरू परिवार स्वयं और कांग्रेस को बचा सकता है अन्यथा नेहरू परिवार के पास दो ही मार्ग है की या तो वह राजनीति से दूर हट जाए और कांग्रेस को नया मार्ग चुनने दे अन्यथा स्वयं तो डूबेगी ही कांग्रेस को भी डूबा देगी। अगले 5 वर्ष नेहरू परिवार के लिए निर्णायक होने वाले हैं। यदि वर्तमान चुनाव के पहले नेहरू परिवार ने कोई निर्णय नहीं किया तो भारत को नेहरू परिवार और कांग्रेस से सदा-सदा के लिए मुक्ति मिल सकती है।
चुनावी घोषणापत्रों की समीक्षा -
वर्तमान समय में आम चुनाव सिर पर हैं विपक्ष या सत्ता दल के बीच जनता परीक्षा कर रही है। सत्ता दल भविष्य की योजनाएं प्रस्तुत कर रहा है। देश में समान नागरिक संहिता लाई जाएगी, विदेशी मुसलमान को भारत में प्रवेश से वंचित किया जाएगा, भौतिक विकास की गति तेज की जाएगी तथा हम विकास के मामले में दुनिया से कम्पटीशन करेंगे, भीख नहीं मांगेंगे, हिंदुओं को दुनिया में सम्मानपूर्वक समानता के आधार पर जीने का अधिकार होगा, उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनकर नहीं रहना होगा।
दूसरी ओर विपक्षी दल खासकर नेहरू परिवार बार-बार इस बात की घोषणा कर रहा है कि-हम हिंदू मुसलमान के बीच में प्रेम पैदा करेंगे, हम जातिवाद को स्वीकार करेंगे और देश में आरक्षण को बढ़ाएंगे जातीय जनगणना कराएंगे, हम सरकारी नौकरों की संख्या और बढ़ाएंगे, हम भारत में अधिक से अधिक नौकरी देंगे। विपक्ष लगातार यह भी घोषणा कर रहा है कि हम कश्मीर में फिर से 370 लागू करेंगे, हम सेना में भरती के लिए जो नए नियम बनाए गए हैं, उन नियमों को भी समाप्त करेंगे, हम किसानों को एमएसपी देंगे। इस प्रकार सत्ता पक्ष और विपक्ष ने अपने-अपने चुनावी वादे जनता के बीच में रखे हैं।
मेरे विचार से स्वतंत्रता के समय भारत की सबसे बड़ी समस्या थी भारत का विभाजन आज भी वह खतरा हमारे सिर पर कायम है। दूसरा खतरा था की रोजगार के अवसर को बाधित करके अधिक से अधिक नौकरी देने की का प्रयत्न हो रहा था। हिंदुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाकर रखा जा रहा था। मैं समझता हूं कि विपक्ष की योजना में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस आधार पर हम विपक्षी दलों को वोट दे सकें, वही हिंदुओं में विभाजन, वही सरकारी नौकरी के प्रति आकर्षण, वही धारा 370। बताइए किस आधार पर विपक्ष को वोट दिया जाए।
नाबालिक बुद्धि के राहुल गाँधी हैं समाजविरोधी-
नाबालिक बुद्धि के राहुल गांधी ने कल खुलेआम घोषणा की है की जल जंगल जमीन पर आदिवासियों का अधिकार होना चाहिए वनवासियों का नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार आदिवासियों को वनवासी कह कर उनके साथ छल कर रही है। राहुल गांधी ने यह भी घोषणा की है कि यदि हम सत्ता में आएंगे तो मुसलमान को विशेष सुरक्षा देने के लिए रंगनाथन आयोग की रिपोर्ट भी लागू की जाएगी। राहुल गांधी ने यह भी घोषणा की है कि जातिगत जनगणना कराकर आरक्षण की सीमा भी बढ़ाई जाएगी। आप सब मित्र जानते हैं कि मैं जन्मना जाति का घोर विरोधी हूं और जो भी व्यक्ति जन्म के अनुसार जाति का पक्ष लेता है मैं उसे विरोधी मानता हूॅ। राहुल गांधी ने यह तीनों बातें लिखकर मुझे बहुत कष्ट पहुंचाया है। सच बात यह है की जन्मना जाति का खुलकर विरोध किया जाना चाहिए जाति कर्म से होती है जन्म से नहीं। राजनीतिक स्वार्थ के लिए राहुल गांधी मुसलमानों का पक्ष ले रहे हैं, राहुल गांधी हिंदुओं के बीच विभाजन पैदा कर रहे हैं, राहुल गांधी जन्मना जाति की वकालत कर रहे हैं, इस प्रकार राहुल की जो नीतियां हैं वे नीतियां पूरी तरह समाज के विरुद्ध कार्य माना जाना चाहिए। राहुल का समर्थन करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए क्योंकि जनगणना जाति का समर्थन किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
मेरे एक मित्र ने विचार व्यक्त किया है की विभिन्न आयोगों की जांच से यह प्रमाणित हो चुका है कि मुसलमानों की आर्थिक स्थिति हिंदुओं की तुलना में ज्यादा खराब है। इसलिए राहुल गांधी मुसलमानों की चिंता कर रहे हैं। मेरे विचार से यह आधा अधूरा सत्य है। मुसलमानों का लक्ष्य है कि आधी रोटी खाएंगे लेकिन अपनी जनसंख्या बढ़ाएंगे। यह बताइए कि मुसलमान कहां सफल नहीं है? मुसलमान आधी रोटी खा रहा है, भूखा रह रहा है लेकिन अपनी जनसंख्या बढ़ा रहा है, तो क्या हिंदू अपनी रोटी में से उस मुसलमान को इसलिए रोटी दे दंे कि मुसलमान अपनी जनसंख्या बढ़ाता रहे। आज ही एक सर्वे प्रकाशित हुआ है की उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती 7 जिलों में पिछले कुछ वर्षों में कई 100 मदरसे खोले गए जिसके लिए वहां के मुसलमानों ने धन इकट्ठा किया मुसलमान आधी रोटी खा रहा है और मदरसे खोल रहा है और हिंदू भरपेट रोटी खा रहा है बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ा रहा है। मेरे विचार से इस समस्या का समाधान सबसे पहले मुसलमानों को सोचना होगा की ‘पूरी रोटी खाएंगे संख्या नहीं बढ़ाएंगे’। हिंदू इस संबंध में पूरी तरह सावधान है। इसलिए मैं राहुल गांधी को नासमझ कह रहा हूं। राहुल गांधी पूरी तरह वोटों के लालच में साम्प्रदायिक हो गए हैं और एक तरह से अप्रत्यक्ष रूप से मुसलमानों के ही वकील बन गए हैं। मैं लगातार भारत में सर्वे कर अनुभव कर रहा हूं कि असम के मुख्यमंत्री की इस बात में सच्चाई दिखती है कि अब कांग्रेस में मुसलमानों को छोड़कर शायद ही कोई बचा हो।
मैंने राहुल गांधी को नाबालिक और नासमझ लिखा और इस बात पर अब भी कायम हूं राहुल गांधी वास्तव में नाबालिक और नासमझ ही है। कुछ वर्ष पहले ही मनमोहन सिंह सरकार में राहुल गांधी ने यह बयान दिलवाया था की भारत की संपदा पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार है अभी दो दिन पहले राहुल गांधी ने यह बयान दिया की जल जंगल जमीन पर आदिवासियों का पहला अधिकार है, आदिवासी यहां के मूल निवासी हैं। मैं आज तक नहीं समझा की जल जंगल जमीन पर गांव का अधिकार माना जाना चाहिए या किसी जाति (व्यक्ति समूह) विशेष का। यदि जल जंगल जमीन पर आदिवासियों का अधिकार बांध दिया गया तो यदि कोई आदिवासी दिल्ली में रहता होगा तो उसका भी जल जंगल जमीन पर इसी तरह का अधिकार होगा, जैसा गांव के आदिवासी का। सर्वाेदय के लोगों ने मुझे बताया था कि जल जंगल जमीन का निर्णय गांव को करना चाहिए, इसका स्वामित्व गांव का होना चाहिए। मैं इस बात से भी सहमत नहीं हूं लेकिन फिर भी प्राथमिक तौर पर यह बात समझी जा सकती है लेकिन जल जंगल जमीन पर आदिवासियों के एकाधिकार का यह बयान तो पूरी तरह मूर्खतापूर्ण है। मेरे विचार से राहुल गांधी को अपने बयान को और साफ करना चाहिए कि क्या जल जंगल जमीन पर किसी एक जाति विशेष का ही अधिकार होगा। मेरे विचार से भारत की संपूर्ण संपदा पर भारतवासियों का विशेष अधिकार होना चाहिए जिसमें जल जंगल जमीन सब कुछ शामिल है। मेरा आप मित्रों से निवेदन है की जन्मना जाति का समर्थन करके अपने राजनीतिक रोटी सेंकने वाले राजनीतिज्ञों का हम खुलकर बहिष्कार करें।
यह हिंदू मुसलमान और राहुल गांधी की चर्चा का अंतिम हिस्सा है। हम इस बात पर विचार करें की वर्तमान समय में हिंदू और मुसलमान के बीच किस प्रकार के संबंध होने चाहिए। यह स्पष्ट है की स्वतंत्रता के बाद नेहरू परिवार और मुसलमानों ने मिलकर हिंदुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाया जिससे उनका मनोबल बढ़ा। अभी भी उनका मनोबल बराबरी के आधार पर नहीं आया है, यद्यपि पहले की तुलना में उनका बढ़ा हुआ मनोबल कुछ घटा जरूर है किंतु अभी भी उन्हें यह उम्मीद है कि शायद फिर से नेहरू परिवार सत्ता में आ जाए। इन परिस्थितियों में हमारा यह कर्तव्य है कि हम पूरी तरह उनका मनोबल घटाने का प्रयास करें। इस कार्य के लिए हमें मोदी सरकार की पूरी मदद करने की जरूरत है। मुसलमानों का बढ़ा हुआ मनोबल कम करने के लिए यदि साम्प्रदायिक हिंदुओं की मदद भी लेनी पड़े तो अल्पकाल के लिए ली जा सकती है लेकिन मुस्लिम साम्प्रदायिकता को कमजोर किए बिना हम सुरक्षित और षान्ति से नहीं रह पाएंगे। हम दुनिया को बेहतर नया संदेश नहीं दे पाएंगे। इसलिए हमारी सबसे पहली आवश्यकता भारत में यही है कि हम मुसलमानों के बढ़े हुए मनोबल को बराबरी के स्तर तक ले आएं। जब मुसलमान बराबरी से नीचे जाएंगे और साम्प्रदायिक हिंदू उछल-कूद शुरू करेंगे तब इन मुसलमानों को साथ लेकर हिंदुओं का मनोबल तोड़ने की पहल हमें ही करनी होगी। यही रणनीति है कि शत्रु का शत्रु मित्र होता है। वर्तमान समय में मुस्लिम साम्प्रदायिकता के शत्रु के रूप में हिंदू साम्प्रदायिकता खड़ी है और इसका समर्थन लेना कोई गलत नहीं है मैं इस रणनीति का समर्थक हूं। स्पष्ट कर दूं कि मैं हिंदू हूं, मैं गांधी के हिंदुत्व को प्राथमिक स्तर पर मानता हूं, मैं नेहरू और सावरकर के नीतियों का विरोधी हूं, हम लोग जिस संस्था के माध्यम से काम कर रहे हैं उसका नाम ‘ज्ञानयज्ञ परिवार’ है और उसका ध्येय वाक्य है ‘‘वैचारिक संतुलनवादी हिंदुत्व की प्रयोगशाला’’। मैं आपको वचन देता हूं की हम लोग सरकार के साथ मिलकर जल्दी ही भारत से साम्प्रदायिकता का समूल विनाश करने में सफल हो जाएंगे।
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