स्वराज का पुनर्जागरण
‘स्वराज का पुनर्जागरण’ कार्यक्रम की समीक्षा-
व्यवस्था परिवर्तन को समर्पित कार्यक्रम-
ग्रेटर नोएडा दिल्ली-NCR में 29,30,31 MARCH 2025 में आयोजित "स्वराज के पुनर्जागरण" कार्यक्रम के माध्यम से वैचारिक चेतना का विस्तार करने हेतु *मां संस्थान* सक्रिय हुआ है। यह तीन दिवसीय कार्यशाला 31 मार्च 2025 को संपन्न हुई, जिसमें देशभर से आए अनेक विद्वानों ने भाग लिया। कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध मौलिक विचारक बजरंग मुनि जी की गरिमामयी उपस्थिति रही।
हमारा यह कार्यक्रम केवल स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देने की बात नहीं करता है, बल्कि इसका उद्देश्य एक समग्र स्वदेशी व्यवस्था को स्थापित करना और उसे अपनाना है। हमारा विश्वास है कि जब तक हम विदेशी राजनीतिक, संवैधानिक और आर्थिक ढांचे पर निर्भर रहेंगे, तब तक स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग केवल एक आकर्षक विचार बनकर रह जाएगा—व्यवहार में उसका कोई व्यापक प्रभाव नहीं पड़ेगा। सच्चाई यह है कि वर्तमान विदेशी व्यवस्था के भीतर रहकर स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग की बात करना न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि यह एक प्रकार का आत्मविरोध भी है। यह विचार सुनने में भले ही कर्णप्रिय लगे, लेकिन इसके पीछे कोई ठोस और स्थायी परिणाम नहीं दिखाई देते। आज हमारा समाज धीरे-धीरे विदेशी विचारों और विचारकों का अनुकरण करने लगा है। इससे हमारी मौलिकता, आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक पहचान पर प्रश्नचिह्न लगने लगे हैं। इसलिए, हमें केवल स्वदेशी उत्पादों को ही नहीं, बल्कि स्वदेशी दृष्टिकोण, स्वदेशी मूल्य प्रणाली और स्वदेशी शासन व्यवस्था को भी अपनाना होगा। यही वास्तविक व्यवस्था परिवर्तन की ओर पहला कदम होगा।
समाज वैज्ञानिक: एक भूली हुई ज़रूरत की पुनःस्थापना — माँ संस्थान की अनोखी पहल
आज का समाज तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन कुछ मौलिक समस्याएँ हैं। जो इस प्रगति के मूल में मानव स्वभाव तापवृद्धि स्थायी समस्या के रूप में बढ़ रही हैं। राजनीतिक, संवैधानिक और सामाजिक मोर्चों पर हम अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इन सभी समस्याओं के पीछे एक गंभीर कारण उभरकर सामने आता है—समाज वैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों की अनुपस्थिति।
माँ संस्थान की सोच – केवल जागरूकता नहीं, समाधान भी
माँ संस्थान न केवल समस्याओं को उजागर करता है, बल्कि उनके समाधान भी सुझाता है और उन्हें व्यवहार में लाने की दिशा में ठोस शुरुआत करता है। ग्रेटर नोएडा में आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन में यह बात स्पष्ट रूप से दिखाई दी। यह सम्मेलन केवल वैचारिक विमर्श नहीं था, बल्कि एक दिशा-निर्देश था—एक नवाचार, जो हमारे सामाजिक ढाँचे को पुनः सशक्त करने की ओर बढ़ा।
समाज वैज्ञानिक—समस्या नहीं, समाधान की कुंजी
आज जो बुराइयाँ हमारे समाज में व्यापक रूप से दिखाई देती हैं, उनका एक कारण यह है कि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले समाज चिंतकों को पीछे छोड़ चुके हैं। हमने तकनीकी वैज्ञानिकों को तो बहुत सम्मान दिया, परंतु समाज के विचार-मंथन करने वाले बौद्धिक नेतृत्वकर्ताओं की उपेक्षा की। इसी शून्य को भरने के लिए माँ संस्थान ने एक क्रांतिकारी कदम उठाया।
सम्मान की नई परिभाषा
पिछले वर्ष ऋषिकेश निवासी श्री ब्रजेश राय जी को माँ संस्थान द्वारा समाज वैज्ञानिक घोषित किया गया। उन्हें ₹1,00,000 की पुरस्कार राशि और विशिष्ट सम्मान प्रदान किया गया। यह कदम केवल प्रतीकात्मक नहीं था, बल्कि यह उस सोच का हिस्सा था जो मानती है कि समाज के लिए गहन चिंतन करने वाले व्यक्तियों को आगे लाना ही सच्चा परिवर्तन है।
इस वर्ष, नोएडा के कार्यक्रम में यह सम्मान श्री ऋषि द्विवेदी जी को दिया गया। उन्होंने पुरस्कार की राशि को स्वीकार नहीं किया, परंतु संस्थान की प्रबल मान्यता है कि यह सम्मान केवल किसी व्यक्ति की प्रशंसा नहीं, बल्कि एक गंभीर दायित्व है—समाज की जटिलताओं पर विचार-मंथन करने का।
विचारशीलता को सम्मान देना ही असली क्रांति है
यह सम्मान कोई औपचारिक रस्म नहीं है। इसके माध्यम से हम समाज को एक संदेश देना चाहते हैं—"समाज वैज्ञानिकों को आगे लाना ही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।" ब्रजेश राय जी और ऋषि द्विवेदी जी जैसे विचारक न केवल समस्याओं की गहराई में जाते हैं, बल्कि समाधान की स्पष्ट दिशा भी प्रस्तुत करते हैं।
माँ संस्थान की प्रतिबद्धता
माँ संस्थान पूरी जिम्मेदारी के साथ ऐसे समाज वैज्ञानिकों का चयन करता है जो विचारशीलता, आत्ममंथन और समाज के लिए प्रतिबद्धता की मिसाल बनें। हमारी यह पहल केवल एक संस्था का प्रयास नहीं, बल्कि एक आंदोलन है—जिसका लक्ष्य है समाज को उसकी जड़ों से जोड़ना, विचारों की गहराई से जोड़ना।
निष्कर्ष: समाज वैज्ञानिकों को पुनः केंद्र में लाना होगा
आज जब समाज अनेक स्तरों पर असंतुलन का शिकार है, तब हमें जरूरत है ऐसे चिंतकों की जो न केवल सोचें, बल्कि समाज को सोचने के लिए प्रेरित करें। माँ संस्थान इस दिशा में न केवल पहला कदम उठा चुका है, बल्कि वह लगातार उस रास्ते पर आगे भी बढ़ रहा है। यदि हम वास्तव में समाज में बदलाव चाहते हैं, तो हमें उन विचारशील मस्तिष्कों को पहचानना और सम्मानित करना होगा जो विचारों से समाज का निर्माण करते हैं।
स्वराज का पुनर्जागरण: ज्ञान केंद्रों की नई पहल और व्यवस्था परिवर्तन का आंदोलन
भारत की धरती पर वैचारिक चेतना, सामाजिक समरसता और आत्मनिर्भरता की लौ कभी बुझी नहीं। आज भी वह आग जिंदा है, उसे दिशा देने का कार्य कर रहा है माँ संस्थान और उससे जुड़े वैचारिक अभियान, जिनमें अब एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है ‘ज्ञान केंद्रों’ की स्थापना के रूप में।
संयुक्त प्रयास की नींव — एक ऐतिहासिक क्षण
ग्रेटर नोएडा में आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन के दौरान लोक स्वराज अभियान दिल्ली, ज्ञान यज्ञ परिवार रामानुजगंज और जन संसद के राष्ट्रीय अधिवेशन के बीच एक संयुक्त कार्यक्रम की रूपरेखा पर सहमति बनी। यह केवल एक संगोष्ठी नहीं थी, बल्कि विचारशील लोगों को एकसूत्र में पिरोने की दिशा में एक सार्थक प्रयास था। विचार और संवाद का यह प्रयास नया नहीं है। पूर्व में ‘ज्ञान तत्व’ नामक पाक्षिक पत्रिका इस संवाद का प्रमुख माध्यम रही है, जिसने देश के विभिन्न हिस्सों में वैचारिक जुड़ाव बनाए रखा। वर्ष 2020 के उपरांत, तकनीकी साधनों का सहारा लिया गया और प्रतिदिन रात 8:00 से 9:30 (रविवार को छोड़कर) ज़ूम आधारित स्वतंत्र चर्चा कार्यक्रम प्रारंभ हुआ — जो आज भी निरंतर जारी है।
अब तक के दो प्रमुख संवाद माध्यम:
- ज्ञान तत्व – सत्यता एवं निष्पक्षता का निर्भीक पाक्षिक
- ज़ूम आधारित चर्चा कार्यक्रम – तकनीकी स्वतंत्र विचार मंथन का प्लेटफ़ॉर्म
अब इन दोनों के साथ एक तीसरी, और ज़मीनी स्तर की पहल की गई है – देश भर में ज्ञान केंद्रों की स्थापना।
ज्ञान केंद्र: विचार, समन्वय और परिवर्तन के तीर्थ
ज्ञान केंद्र केवल चर्चा का स्थान नहीं हैं, ये विचारशीलता की प्रयोगशाला और व्यवस्था परिवर्तन के संवाहक हैं। मुनि जी के शब्दों में यह योजना केवल विचार नहीं, बल्कि आगामी सामाजिक क्रांति की रूपरेखा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अब उनके रिटायरमेंट के बाद, उनके साथियों ने पूरी तरह व्यवस्था परिवर्तन की जिम्मेदारी उठा लिया है। ज्ञान केंद्र के माध्यम से तीन प्रमुख दिशाओं में कार्य करने की योजना बनी है:
1. संवैधानिक व्यवस्था परिवर्तन
- विधायी अधिकार संपन्न ग्राम सभाओं का राष्ट्रीय स्वरुप विकसित करने की भूमिका तैयार करना
- संविधान में ग्राम सभाओं की भूमिका को सुनिश्चित और प्रभावी बनाना
2. सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन
- वर्ग विद्वेष की दिशा बदल कर वर्ग समन्वय के लिए प्रेरित करना
- परिवार व्यवस्था को सशक्त कर, हिंसा और स्वार्थ की प्रवृत्ति को कम करना
3. वैचारिक व्यवस्था परिवर्तन
- व्यक्ति की तर्कशक्ति को विकसित करना
- शराफत से समझदारी की ओर बढ़ने की प्रेरणा देना
ज्ञान केंद्रों की भूमिका और ज़िम्मेदारियाँ
इन केंद्रों को निम्नलिखित ठोस जिम्मेदारियाँ तय की गई हैं:
- दैनिक, साप्ताहिक या मासिक चर्चा बैठकों का आयोजन
- मास में कम से कम एक बार ज़ूम चर्चा कार्यक्रम में भागीदारी
- वर्ष में एक सार्वजनिक कार्यक्रम, जिसमें केंद्रीय कार्यकारिणी और समीपवर्ती ज्ञान केंद्रों की सहभागिता
- ग्राम्य स्तर पर सामूहिक आयोजन और समन्वय
यह संरचना केवल एक कार्यक्रम नहीं है, यह आंदोलन का आधार है। इससे वैचारिक संवाद तो मजबूत होगा ही, साथ ही सामाजिक परिवर्तन की ओर ठोस जनभागीदारी भी सुनिश्चित की जा सकेगी।
स्वराज का यह पुनर्जागरण
यह पहल महज़ एक संगठित प्रयास नहीं है, यह स्वराज की आत्मा को पुनः जीवंत करने का संकल्प है। अलग-अलग विचारधाराओं के लोग एक मंच पर आकर संवाद करें, सहमति-असहमति के बीच नए समाधान खोजें, और एक विचार-आधारित राष्ट्र निर्माण की दिशा में अग्रसर हों — यही ज्ञान केंद्रों का उद्देश्य है। इन केंद्रों के माध्यम से एक नया वैचारिक आंदोलन आकार ले रहा है, ऐसा आंदोलन जो न केवल बदलाव की बात करता है, बल्कि उसकी नींव भी रखता है।
ज्ञानेन्द्र आर्य (सह संपादक)
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