चुनाव परिणाम और भ्रष्टाचार पर कार्यवाही GT-439

चुनाव परिणाम और भ्रष्टाचार पर कार्यवाही

चार राज्यों के चुनाव परिणाम आ गए हैं बहुत पहले ही राहुल गांधी ने कहा था यह लड़ाई ईडी और कांग्रेस के बीच है। मैं भी मानता हूं यह लड़ाई सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच थी। नरेंद्र मोदी के पास ईडी का एक ऐसा हथियार था जिसने सभी भ्रष्ट लोगों को नंगा कर दिया। जनता के बीच में एक यह संदेश गया कि नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार को रोकने में सक्षम है और वह किसी के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। अब चुनाव के नतीजे आ गए हैं अब नरेंद्र मोदी को वह करके दिखाना है जो उन्होंने देशभर में घूम-घूम करके कहा था कि हम भ्रष्टाचारियो को उचित दंड दिलाएंगे। मेरे विचार से नरेंद्र मोदी को अब इस दिशा में सक्रिय हो जाना चाहिए। इन चुनावों ने 2024 भी नरेंद्र मोदी के लिए पक्का कर दिया है। यह बात साफ दिख रही है कि नरेंद्र मोदी अगले चुनाव में और भी अधिक बहुमत से आएंगे।

यहाँ आज मैं विपक्ष को भी कुछ सलाह देना चाहता हूं। विपक्ष वर्तमान समय में चुनाव लड़ने के लिए तीन नीतियों पर लगातार सक्रिय है। पहले नंबर पर है सांप्रदायिकता दूसरा पर है जातिवाद और तीसरा है मुफ्त बांटना यह तीनों ही नीतियां देश के लिए घातक हैं। लेकिन विपक्ष सस्ती लोकप्रियता के लिए इन तीनों नीतियों को अपना मुख्य आधार बनाकर चल रहा है। मेरे विचार से सांप्रदायिकता जातिवाद और अर्थनीति तीनों मुद्दों पर विपक्ष को अपनी नीति बदलनी चाहिए। हो सकता है कि इस बदलाव से विपक्ष को प्रदेशों में कुछ नुकसान उठाना पड़े, लेकिन कुल मिलाकर विपक्ष अगर इन तीन मुद्दों पर नीति बदलकर चलेगा तो विपक्ष जीवित रह सकता है अन्यथा सांप्रदायिकता जातिवाद और मुफ्त बांटना यह तीनों नीतियां दूरगामी नुकसान करेंगी। आप इन तीन नीतियों पर चलकर कुछ तात्कालिक लाभ उठा सकते हैं लेकिन इन तीनों नीतियों पर नरेंद्र मोदी ने भी आपको इस तरीके से जवाब देना शुरू कर दिया है जिस तरीके से आप चल रहे हैं। अब तक नरेंद्र मोदी सिद्धांतों पर चल रहे थे अब उन्होंने अपने सिद्धांतों से समझौता करके व्यावहारिक नीति अपना ली है। अब वह भी सांप्रदायिकता जातिवाद और मुक्त बांटने को व्यावहारिकता और मजबूरी समझ कर उसी रास्ते से आपको जवाब देना शुरू कर दिया है जिसका परिणाम होगा आपकी मौत। इसलिए मेरा सुझाव है कि आप अपनी नीतियों पर फिर से विचार करें।

मैं छत्तीसगढ़ के रायपुर में रहता हूं। चुनाव में भूपेश बघेल के कमजोर पड़ने की शुरुआत उसी दिन हो गई थी जब करीब कई 100 करोड़ रूपया ईडी ने जप्त कर लिया था, उसके बाद ही धीरे-धीरे गिरावट शुरू हुई। दूसरा महत्वपूर्ण आधार यह बना कि नरेंद्र मोदी ने अंतिम दिनों में अपनी पूरी नीतियां बदल दी। उन्होंने जीतने लायक उम्मीदवारों को टिकट दिया भले ही उम्र कुछ भी हो परिवार कोई भी हो दूसरी बात कि उन्होंने मुफ्त रेवड़ी के साथ समझौता कर लिया। कांग्रेस पार्टी ने अगर कहा 3000 तो नरेंद्र मोदी ने कहा 3100 और भी कई प्रकार की मुफ्त बांटने की घोषणा की गई 2 साल का बोनस भी तुरंत देने की घोषणा हुई। तीसरा मोदी ने समझौता किया कि उन्होंने जातिवाद के मामले में भी अपना रूप बदला। नरेंद्र मोदी ने कई जगह यह कहा कि मैं तो पिछड़े वर्ग का हूं इस तरह कांग्रेस पार्टी के मुक्त रेवड़ी भ्रष्टाचार और जातिवादी आक्रमण की हवा ईडी  और नरेंद्र मोदी ने निकाल दी। परिणाम हुआ वह सबके सामने है। कांग्रेस के एक बहुत बड़े नेता अधीर रंजन चौधरी ने स्पष्ट किया है यह लड़ाई सीधी सीधी नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री के बीच थी। यह लड़ाई कांग्रेस पार्टी और भाजपा के बीच नहीं रह गई थी। इस लड़ाई में हमारे मुख्यमंत्री हार गए और नरेंद्र मोदी जीत गए। नरेंद्र मोदी ने अपनी स्वीकार्यता तीनों प्रदेशों में सिद्ध कर दी है। मैं अधीर रंजन के बयान से सहमत हूं।

मैं किसी राजनीतिक दल का समर्थक नहीं हूं, मुझे तो किसी चुनाव में वोट दिए भी करीब 40 वर्ष हो गए हैं। मैंने इन 40 वर्षों में कभी किसी राजनीतिक दल के पक्ष में कोई काम नहीं किया। यहां तक कि अपने परिवार के लोगों को भी वोट देने के लिए कभी प्रेरित नहीं किया कि किसे देना है लेकिन मैं ईश्वर से हमेशा प्रार्थना करता रहा कि वह नेहरू परिवार को कभी मजबूत न होने दे, क्योंकि नेहरू परिवार ने मेरे जैसे बेगुनाह को भी 18 महीने आपातकाल में जेल में बंद करके रखा था। राजनीति छोड़ देने के 15 वर्ष बाद भी मुख्यमंत्री ने मेरी हत्या की योजना बनाई थी, उसे मैं कैसे भूल जाऊं। नेहरू परिवार ने हमेशा सांप्रदायिकता का समर्थन किया और हिंदुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाकर रखा। मैं छत्तीसगढ़ में रह रहा हूं और छत्तीसगढ़ में मैंने भूपेश बघेल का चुपचाप विरोध किया क्योंकि मुझे भूपेश बघेल की यह नीति ना पसंद थी कि छत्तीसगढ़ को क्षेत्रीयता की दिशा में बढ़ाया जाए, छत्तीसगढ़ी भाषा को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया जाए। जो व्यक्ति आराम से हिंदी समझ सकता है उसे हिंदी भाषा में बात करने से क्यों रोका जाए। एक तरफ छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रोत्साहन और दूसरी तरफ हिंदी की जगह अंग्रेजी को प्रोत्साहन यह नाटक कैसे पसंद किया जा सकता है। भूपेश बघेल ने चुनाव जीतते ही चार शब्द। नरवा चुरवा जैसे दिए थे वह चारों शब्द 5 वर्ष में भी मुझे याद नहीं रहे और मैं उन चारों का अर्थ नहीं समझ सका। मैं समझता हूं कि क्षेत्रीयता और जातिवाद के माध्यम से राजनीति करना तात्कालिक लाभ तो दे सकता है लेकिन दीर्घकालिक नुकसान करेगा। छत्तीसगढ़ के जो नतीजे आए उन नतीजे को देखकर मुझे भी खुशी हुई।