25 अक्टूबर — प्रातःकालीन सत्र वर्तमान भारत में खेल, राजनीति और मीडिया

 

 

25 अक्टूबर — प्रातःकालीन सत्र

वर्तमान भारत में खेल, राजनीति और मीडिया — तीनों ही अब व्यवसाय बन चुके हैं। परंतु इनमें भी सबसे बड़ा व्यवसाय मीडिया बन गया है। किसी भी व्यापारी वर्ग को यदि विशेष अधिकार दिए जाएँ, तो वह समाज के लिए घातक सिद्ध होता है। इसी प्रकार मीडिया को “लोकतंत्र का चौथा स्तंभ” कह देना एक गंभीर भूल थी। वास्तव में यह धारणा भ्रष्ट सरकारी व्यवस्था की उपज थी, जिसने अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए मीडिया को विशेष सम्मान का आवरण दे दिया।

परिणाम यह हुआ कि मीडिया ने अपने व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में इन तथाकथित “विशेष अधिकारों” का भरपूर दुरुपयोग किया। सरकार के संरक्षण के कारण उसकी मनमानी बढ़ती गई। जब कोई व्यक्ति मीडिया से प्रश्न करता, तो उसका उत्तर प्रायः यही होता —
“लोकतंत्र के तीनों स्तंभ — न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका — जब पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूबे हैं, तो यदि मीडिया भी उसी मार्ग पर चले, तो गलत क्या है?”
इस तर्क के सामने लोग निरुत्तर रह जाते थे।

किन्तु अब प्रकृति स्वयं इसका समाधान कर रही है। सोशल मीडिया का तीव्र प्रसार पारंपरिक मीडिया की तानाशाही को चुनौती दे रहा है। सरकार भले ही कानूनों के माध्यम से सोशल मीडिया को नियंत्रित करने का विचार कर रही हो, पर मेरे मत में यह पूर्णतः अनुचित है।

सोशल मीडिया को पूर्ण स्वतंत्रता दी जानी चाहिए।
फेसबुक, व्हाट्सऐप, एआई, जूम जैसे नए माध्यम समाज में अभिव्यक्ति की सच्ची स्वतंत्रता के प्रतीक बन रहे हैं। ये पारंपरिक टीवी और अखबारों के एकाधिकार को समाप्त कर देंगे। आज यह प्रवृत्ति स्पष्ट दिखाई दे रही है कि अखबारों और टीवी चैनलों की उपयोगिता निरंतर घटती जा रही है।

मैं नई तकनीक से विकसित इस सोशल मीडिया का समर्थक हूँ। हमारी जो नई व्यवस्था बनेगी, उसमें सोशल मीडिया को अधिकतम स्वतंत्रता दी जाएगी — केवल विशेष परिस्थितियों को छोड़कर सामान्य मामलों में सरकार को इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।