मैं बचपन से ही समाजवादी रहा और मैं समाज को सर्वोच्च मानता रहा।

14अक्टूबर प्रातः कालीन सत्र। आज मैं अपनों से अपनी बात के अंतर्गत अपनी जीवन चर्चा संक्षिप्त में बताना चाहता हूं। मैं बचपन से ही समाजवादी रहा और मैं समाज को सर्वोच्च मानता रहा। मैं वैचारिक संतुलनवादी हिंदुत्व का पक्षधर रहा। मेरा बचपन से ही साम्यवाद और सावरकर से नफरत बनी रही क्योंकि दोनों को ही मैं वैचारिक संतुलनवादी हिंदुत्व का विरोधी मानता था। संघ परिवार नेहरू परिवार का विरोधी और सावरकर का भक्त था इसलिए संघ से मेरी कुछ दूरियां बनी रहती थी। मैं अपने स्वतंत्र मार्ग पर बचपन से ही चल रहा था। मैंने संघ के लोगों को यह बात समझाने की कोशिश की की वैचारिक संतुलनवादी हिंदुत्व जो गांधी का मार्ग है वही अच्छा है लेकिन संघ नहीं समझा दूसरी ओर मैं गांधीवादियों को समझाने की कोशिश की की वैचारिक संतुलनवादी हिंदुत्व ही सबसे अच्छा मार्ग है साम्यवाद अच्छा मार्ग नहीं है साम्यवाद तो हिंदुत्व विरोधी है मेरे विचार में साम्यवाद की तुलना में इस्लाम कम बुरा था लेकिन मेरी बात गांधीवादी भी नहीं समझे बाद में धीरे-धीरे संघ ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस बात को समझा की वैचारिक संतुलनवादी हिंदुत्व ही सबसे अच्छा मार्ग है और इस मार्ग पर चलकर ही हम लोक स्वराज की दिशा में बढ़ सकते हैं। जब से संघ ने इस बात को समझा है तब से सावरकर वादी संघ से नाराज हैं और गांधीवादी हम लोगों से नाराज हैं क्योंकि हम लोगों ने संघ के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया है। मैं अपने गांधीवादी मित्रों से निवेदन करना चाहता हूं कि यदि आप लोक स्वराज को आधार मान रहे हैं तो आप वैचारिक संतुलनवादी हिंदुत्व जो गांधी की परिभाषा है उस दिशा में कार्य करें और संघ के साथ वैचारिक तालमेल करें। संघ की नियत खराब नहीं है नीतियां गलत थीं जो अब काफी हद तक ठीक हो गई है उन्हें हम ठीक कर रहे हैं साम्यवादियों की नियत खराब है नीतियां तो खराब हैं इसलिए साम्यवादियों के साथ छोड़िए और आप हम लोगों के साथ जुडिए। साम्यवाद के साथ जुड़े रहना आपकी अपनी ईमानदारी तो सिद्ध कर सकती है लेकिन देश और समाज का बहुत नुकसान करेगी इसलिए मैं आपसे यह निवेदन कर रहा हूं।