यह चुनाव वर्ग संघर्ष और वर्ग समन्वय के बीच : GT - 445
यह चुनाव वर्ग संघर्ष और वर्ग समन्वय के बीच :
कल दिल्ली और मेरठ में दो अलग-अलग सभाएं हुई। दिल्ली की सभा INDIA गठबंधन की थी और मेरठ की NDA गठबंधन की थी। दोनों ने अलग-अलग तरीके से अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धताएं प्रकट की। INDIA ने दिल्ली की सभा में यह घोषित किया कि कश्मीर में धारा 370 का होना बहुत आवश्यक है। गठबंधन की कश्मीरी नेताओं ने यह भी घोषणा की कि यदि गठबंधन चुनाव जीत जाता है तो हम कश्मीर में फिर से धारा 370 लागू कर देंगे। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी ने यह बात साफ कर दी कि धारा 370 का समाप्त होना देशहित में है और हम ऐसी विघटनकारी धारा को भविष्य में कभी लागू नहीं करेंगे। दिल्ली की सभा में मंच से यह बात दुहराई गई कि कोई भ्रष्टाचार न होते हुए भी झूठे आरोप लगाकर हमारे नेताओं को जेल में बंद किया जा रहा है। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी ने यह बात साफ कर दी कि भ्रष्टाचार करने वाले सभी लोग जेल जाएंगे। इस प्रकार के भ्रष्ट लोगों को न्यायालय भी भ्रष्ट मान रहा है और ऐसे लोगों के लिए जितनी आवश्यकता होगी उतनी जेलों में जगह बनाई जाएगी। दिल्ली की सभा में यह बात स्पष्ट की गई कि जाति एक सामाजिक सच्चाई है, हम जाति जनगणना कराएंगे। जातिवाद को कानूनी मान्यता भी प्रदान की जाएगी। नरेंद्र मोदी ने यह बात साफ किया कि जन्म से जाति की बुराई को समाप्त करने की जरूरत है। देश में युवा, महिला, किसान, गरीब जैसी जातियों को मान्यता देने की आवश्यकता है। दोनों ही सभाओं में अन्य अनेक वादे भी किए गए जो एक दूसरे के विपरीत थे। दिल्ली की सभा में यह बात साफ की गई कि यदि पूरी ईमानदारी से चुनाव होंगे तो भारतीय जनता पार्टी 180 से अधिक सीटे नहीं जीत पाएगी। यदि भाजपा को अधिक सीटे मिलती है तो उसमें भ्रष्टाचार है, सांप्रदायिकता है, ईवीएम है, ईडी और सीबीआई है। दूसरी ओर नरेंद्र मोदी ने यह घोषित किया कि यदि ईमानदारी से चुनाव होते हैं तो भारतीय जनता पार्टी 370 सीट से अधिक पाने की स्थिति में है। यह अलग बात है कि सांप्रदायिकता, जातिवाद, वर्ग विद्वेष का सहारा लेकर विपक्ष कुछ सीटे कम करने में सफल हो जाए। इस तरह दोनों ही पक्षों की राजनैतिक प्रतिबद्धताएं स्पष्ट हो चुकी है। एक तरफ है धारा 370 का समर्थन, जातिवाद, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, भ्रष्टाचार तो दूसरी तरफ समान नागरिक संहिता, धारा 370 की समाप्ति, जातिवाद को कमजोर करना और राजनैतिक भ्रष्टाचार पर पूर्ण नियंत्रण। अब देश की जनता को यह तय करना है कि वह दिल्ली घोषणाओं का कितना समर्थन करती है और मेरठ घोषणाओं का कितना समर्थन करती है।
यह हमने उसके व्यावहारिक पक्ष पर विचार किया था अब हम उसके सैद्धांतिक पक्ष पर चर्चा करेंगे। दिल्ली रैली में लगभग सभी नेता एकमत होकर यह विचार दे रहे थे कि भारत में 10 वर्षों से लोकतंत्र खतरे में है। मैंने भी इस पर विचार किया। व्यवस्थाएं दो प्रकार की होती है एक तानाशाही दूसरा लोकस्वराज्य। राजशाही, साम्यवाद और इस्लाम तानाशाही का पक्षधर है तो भारत लोकस्वराज्य का। गुलामी के बाद भारत में तानाशाही और लोकस्वराज्य के बीच लोकतंत्र का मार्ग चुना जो एक तीसरा मार्ग था और पश्चिम से आया। तानाशाही के अपने गुण दोष है और लोकतंत्र के अपने। लोकतंत्र में हमेशा अव्यवस्था होती है जो लोकतांत्रिक भारत में धीरे-धीरे बढ़कर यहां तक पहुंच गई। यदि अव्यवस्था से मुक्ति के लिए लोकतंत्र को त्याग कर लोकस्वराज्य की दिशा नहीं दी गई तो तानाशाही का खतरा बना हुआ है और यहि वर्तमान भारत में हो रहा है। दिल्ली में जो लोग इकट्ठे थे वे सब के सब 10 वर्ष पूर्व की लोकतांत्रिक यथा स्थिति को बनाए रखने के पक्षधर थे जबकि हम सब लोग उस लोकतंत्र को छोड़कर लोकस्वराज्य की दिशा देने के पक्षधर हैं। इसका अर्थ हुआ कि यदि हम लोकस्वराज्य की दिशा नहीं देंगे तो तानाशाही आएगी ही। लेकिन यह साधारण सी बात हमारे स्वार्थी विपक्षी नेता समझने के लिए तैयार नहीं है। भारत अब यथा स्थिति में आमूल चूल बदलाव चाहता है जो दिल्ली सभा में भाग ले रहे नेताओं से तो मिलना असंभव है। इसीलिए भारत की जनता और मैं भी आंख मूंदकर नए विकल्प को तलाश रहे हैं और नए विकल्प के रूप में अगले 5 वर्षों के लिए नरेंद्र मोदी पर दाव लगा रहे हैं। अभी यह निश्चित नहीं है कि नरेंद्र मोदी लोकस्वराज्य की दिशा में जाएंगे या नहीं, जबकि यह बात पूरी तरह सिद्ध है कि विपक्षी दल भारत में किसी बदलाव की कल्पना नहीं कर रहे हैं। हमें पूरा विश्वास है कि अब भारत लोकतंत्र को छोड़ रहा है जिसका परिणाम होगा अव्यवस्था से मुक्ति और उस अव्यवस्था से मुक्ति के लिए भारत तानाशाही की दिशा में जाएगा या लोकस्वराज्य की दिशा में यह भविष्य बताएगा। लेकिन अब तक नरेंद्र मोदी जिस दिशा में जा रहे हैं वह दिशा बहुत ही उत्साहवर्धक है। मेरे विचार से 70 वर्षों तक भारत तानाशाही लोकतंत्र की तरफ चलता रहा। भविष्य में यदि अच्छा होगा तो लोकस्वराज्य आ जाएगा और बुरा भी होगा तो लोकतांत्रिक तानाशाही आ जाएगी। लेकिन भारत में 70 वर्षों की तानाशाही लोकतंत्र से तो मुक्ति मिल जाएगी। मैं वर्तमान बदलाव के पूरी तरफ पक्ष में हूँ।
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