सरकार का काम “परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम” GT-440

सरकार का काम परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम” :

कल मैं कर्नाटक के गुलबर्गा में राजीव दीक्षित जी की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुआ। मैं इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में था और मुख्य वक्ता था। कार्यक्रम बहुत अच्छी तरह से चला। स्वदेशी और लोक स्वराज पर व्यापक चर्चा हुई । कार्यक्रम में इस बात पर भी गंभीर चर्चा हुई कि वर्तमान समय में दुनिया के सभी अच्छे लोगों को दुष्ट प्रवृत्तियों के खिलाफ एक जुट होकर मुहिम चलानी चाहिए। सरकार का यह काम था कि वह शराफत की सुरक्षा करती और दुष्ट प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करती लेकिन दुनिया की सरकारें इसमें असफल रही हैं और इसलिए अब समाज को ही इस बात की पहल करनी चाहिए कि परित्राणाय साधु नाम विनाशाय च दुष्कृताम का कार्य समाज कैसे करें। चर्चा दिनभर चलती रही, शाम तक वासवराज पाटिल जी भी इस चर्चा में शामिल रहे। पाटिल जी राज्यसभा के सदस्य थे और काफी गंभीर माने जाते हैं । शिवानंद भाई ने कार्यक्रम का संचालन किया और शाम को 5:00 बजे यह कार्यक्रम समाप्त हुआ।

कर्नाटक के गुलबर्गा में एक पुराने मित्र बड़े अच्छे राजनेता से मुलाकात हुई। उन्होंने अपनी यह चिंता व्यक्त की कि देश केंद्रित सत्ता की तरफ बढ़ रहा है यह सबसे बड़ा खतरा है। मैंने उन्हें यह बताने का प्रयास किया कि देश में जो अव्यवस्था थी उस अव्यवस्था के समाधान के लिए केंद्रित सत्ता मजबूत हो रही है। लोकतंत्र जब अव्यवस्था की दिशा में बढ़ता है तब आम जनता तानाशाही के विकल्प को चुन लेती है जो अच्छा विकल्प नहीं है लेकिन मजबूरी है। वर्तमान भारत की जनता अव्यवस्था को स्वीकार नहीं कर सकती इसलिए नरेंद्र मोदी को विकल्प के रूप में माना जा रहा है। हमारे मित्र को इस बात पर आपत्ति थी कि लोकतंत्र की जगह सत्ता का केंद्रीयकरण अच्छा नहीं है। मैंने उन्हें समझाने का प्रयास किया कि अच्छा विकल्प नहीं है यह मजबूरी है जो आएगी ही। यदि लोकतंत्र लोक स्वराज की दिशा में नहीं जाएगा तो तानाशाही का खतरा बना ही रहेगा इसलिए यदि नरेंद्र मोदी को कोई हटाना चाहता है तो वह वैचारिक धरातल पर विकल्प दे व्यक्तिगत स्तर पर विकल्प नहीं चाहिए और वैचारिक धरातल पर विकल्प तो लोक स्वराज ही है, जो गांधी ने दिया जयप्रकाश ने दिया और अन्ना ने दिया। विकल्प हमें अटल बिहारी मुरारजी देसाई अरविंद केजरीवाल पंडित नेहरु जैसा नहीं चाहिए। हमें एक वैकल्पिक प्रणाली चाहिए जो लोक स्वराज ही आ सकती है। यदि हम भारत में व्यवस्था के, विकल्प के रूप में नरेंद्र मोदी की जगह पर राहुल गांधी, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी या अन्य किसी को देखते हैं तो हम बिल्कुल गलत कर रहे हैं क्योंकि यह सब घिसे पिटे चेहरे हैं जिनके पास कोई विकल्प नहीं है। इन लोगों को मिलकर सत्ता का विकल्प नहीं विचारों का विकल्प देना चाहिए। मेरे मित्र मेरी बात से सहमत हुए।