डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर किस वर्ग के नायक और किसके खलनायक

डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर का जन्मदिन पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जा रहा है। लगभग सर्वसम्मति बनी हुई है और कहीं कोई समीक्षा या आलोचना के स्वर नहीं सुनाई दे रहे। प्रश्न उठता है कि अम्बेडकर जी किस वर्ग के नायक के रुप में माने जा सकते है, और किस वर्ग के खलनायक के रुप में?

       भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न वर्ग होते हैं। प्रवृत्ति के आधार पर दो वर्ग होते है-1. दैवीय प्रवृत्ति वाले 2. आसुरी प्रवृत्ति वाले। धर्म के आधार पर भी दो वर्ग होते है - 1. गुण प्रधान 2. पहचान प्रधान। सामाजिक कार्यो  में संलग्न लोगों में भी दो वर्ग होते है- 1. संस्थागत कार्य करने वाले 2. संगठनात्मक स्वरुप वाले। आर्थिक आधार पर भी दो वर्ग होते है- 1. बुद्धिप्रधान 2. श्रम प्रधान ।  राजनैतिक आधार पर भी दो वर्ग होते है- 1. संचालक या शासक 2. शासित या संचालित। चूंकि अम्बेडकर जी जीवन भर राजनीतिज्ञ के रुप में कार्य करते रहे इसलिए हम अन्य वर्गो के आधार पर उनकी समीक्षा न करके राजनैतिक वर्ग विश्लेषण तक सीमित रहेंगे।

          राजनीति में दो वर्ग होते है-1 शासक और 2 शासित। तानाशाही में शासक व्यक्ति होता है और मालिक के रुप में होता है। जबकि लोकस्वराज्य में शासक प्रतिनिधि होता है और प्रबंधक होता है, मैंनेजर होता है। जहाँ लोकतंत्र होता है वहाँ और विशेषकर भारतीय लोकतंत्र में शासक शासितों द्वारा चुने हुए व्यक्तियों का गुट होता है। यह गुट संरक्षक की भूमिका में होता है जबकि समाज इस गुट के अन्तर्गत संरक्षित होता है। शासक समाज को अयोग्य,नाबालिग मानकर अप्रत्यक्ष रुप से अपनी मालिक की भूमिका बनाता है। स्वतंत्रता के पूर्व भीमराव अम्बेडकर शासन की राजनीति करने वालों में सबसे प्रमुख व्यक्ति थे। भीमराव अम्बेडकर मे शासक के सारे गुण मौजूद थे। विलक्षण प्रतिभा थी,धूर्तता के चरण तक की कूटनीति थी तथा परिश्रम के मामले में भी अन्य सबसे आगे थे। स्वतंत्रता के पूर्व शीर्ष पर जो दो विचारधाराएँ थी, उनमें एक का नेतृत्व गॉधी के हाथ में था तो दूसरी का भीमराव अम्बेडकर के हाथ में। अन्य सब लोग तो बीच में इधर-उधर होते रहते थे।

     सफल राजनेता के आवश्यक गुणों में यह माना जाता है कि वह समाज को हमेशा विभिन्न वर्गो में बांटकर रखे,तथा उन्हें कभी एकजुट न होने दें। यहाँ तक कि सफलता के चरमोत्कर्ष के लिए परिवार तक को बांटकर रखना आवश्यक माना जाता है। साथ ही लोकतंत्र में शासितों को धोखा देने के लिए अनेक प्रकार के नाटक भी करने पड़ते है। अम्बेडकर जी धोखा देने और नाटक करने में सिद्धहस्थ रहे। भीमराव अम्बेडकर जी ने प्रांरभ से ही अपने वर्ग की प्रसन्नता और सुविधा के लिए वह सब कुछ किया जो समाज को लम्बे समय तक गुलाम बनाकर रखने के लिए किसी नेता को करना चाहिए। यहाँ तक कि उन्होने अपने वर्ग की सुविधा के लिए गांधी तक का विरोध किया। राजनैतिक वर्ग के मार्ग में गांधी सबसे बड़ी बाधा थे। स्वतंत्रता मिलते ही राजनेताओं के लिए गांधी एक बोझ बन गये थे। वह बोझ हटते ही राजनेताओं के वर्ग को पूरी छूट मिल गई और उस छूट का लाभ उठाकर भीमराव अम्बेडकर जी ने अपने वर्ग के लिए स्वतंत्रता पूर्वक सब कुछ करते हुए ऐसा मार्ग बना दिया कि वह वर्ग कई पीढ़ियों तक उसका लाभ उठा सकता है।

      माना जाता है कि वर्तमान संविधान भीमराव अम्बेडकर जी के द्वारा ही बनाया हुआ है। इस संविधान में वह सब कुछ है तो राजनेताओं द्वारा समाज को अनंतकाल तक गुलाम बनाकर रखने के लिए होना चाहिए। समाज को समझाया जाता है कि संविधान तो भगवान का स्वरुप है। साथ ही संविधान में किसी भी प्रकार के फेरबदल का अंतिम अधिकार भी राजनेताओं ने अपने पास ही सुरक्षित रखा है। जो संविधान आज भारत में है, या धीरे-धीरे उसको राजनेताओं ने फेरबदल करके जैसा बना दिया है, उसके अनुसार तो तंत्र पूरी तरह मालिक और लोक गुलाम से अधिक कोई हैसियत नहीं रखता। वोट देने के अतिरिक्त लोक के पास ऐसा कौन सा अधिकार है जिसमें तंत्र हस्तक्षेप न कर सके। हमारे अधिकार क्या हो यह तंत्र तय करेगा किन्तु उनके अपने अधिकार क्या हो यह वे स्वयं तय करेंगे। हमारा वेतन क्या हो यह वे तय करेंगे किन्तु उनका वेतन क्या हो यह भी वे ही तय कर लेंगे। वे हमसे कितना टैक्स वसूल सकते है इसकी कोई सीमा नहीं है दूसरी ओर वे अपनी सुविधाएँ कितनी बढ़ा सकते है इसकी भी कोई सीमा नहीं है। स्पष्ट है कि वे संवैधानिक रुप से हमारे भाग्य विधाता है और हम उनके गुलाम प्रजा। संविधान ने परिवार व्यवस्था, गाँव व्यवस्था, को तो अपने मे से बाहर कर दिया। दूसरी ओर समाज तोड़क जाति,धर्म,भाषा आदि को अपने अंदर समेट लिया। यह सारी योजना भीमराव अम्बेडकर जैसे चालाक मस्तिष्क की ही उपज थी, अन्यथा अन्य किसी के बस की बात नहीं थी। भीमराव अम्बेडकर जी प्रारंभ से ही महिला और पुरुष को दो वर्गो में विभाजित देखना चाहते थे और जीवन भर तथा मृत्यु तक उन्होने इस दिशा में सक्रियता दिखाई। हिन्दू कोड बिल भीमराव अम्बेडकर की एक ऐसी पहचान बन चुका है जो भारत के हिन्दुओं की छाती में तीर के समान लगातार घाव कर रहा है। भीमराव अम्बेडकर जी बुद्धिजीवियों का प्रतिनिधित्व करते थे और इसलिए उन्होने जीवन भर श्रम के साथ भी धोखा किया। श्रम और बुद्धि के बीच इतना बडा फर्क अम्बेडकर जी की ही देन है। भाषा के मामले में भी भीमराव अम्बेडकर जी अंग्रेजी प्रिय थे। यहाँ तक कि जब हिन्दी पर ज्यादा जोर दिया गया तो भीमराव अम्बेडकर जी ने संस्कृत की आवाज उठा कर हिन्दी भाषियों में फूट डालने का काम किया। इतनी चालाकी तो कोई शातिर दिमाग व्यक्ति ही कर सकता है।

 कहाँ जाता है कि भीमराव अम्बेडकर जी और नेहरु में नहीं पटती थी। मैं स्पष्ट कर दूँ कि भीमराव अम्बेडकर जी प्रधानमंत्री बनने की प्रतिद्वंदिता में नेहरु और जिन्ना के खिलाफ थे। किन्तु समाज को गुलाम बनाकर और समाज को आपस में तोड़फोड़ कर रखने में तीनों एक साथ रहे । मैंने तो यहाँ तक सुना है कि प्रारंभ में भीमराव अम्बेडकर जी राजनैतिक नेतृत्व के लिए मुसलमान भी बनना चाहते थे। किन्तु जब वे नहीं बन सके और मुस्लिम  नेतृत्व जिन्ना ने ले लिया तब भीमराव अम्बेडकर जी ने पीछड़ों का नेतृत्व करना शुरु किया। यहाँ तक कि पहला चुनाव भीमराव अम्बेडकर जी ने मुस्लिम लीग की सहायता से ही लड़ा था। बाद में वे कांग्रेस से चुनाव लड़े और बाद में कांग्रेस के विरुद्ध भी चुनाव लड़े और अंत में फिर बौद्ध भी बने। उन्होने सारे नाटक किये किन्तु प्रधानमंत्री बनने की उनकी इच्छा अंत तक अधूरी ही रह गई। वे महिलाओं के प्रमुख पक्ष धर माने जाते है किन्तु उनका अपनी पत्नि के साथ व्यवहार शोध का विषय है।

     यह सही है कि भीमराव अम्बेडकर जी में विलक्षण प्रतिभा थी। परिस्थितियों को अपने पक्ष में करना वे अच्छी तरह जानते थे। उनके पिता राज कार्य में किसी पद पर थे। भीमराव अम्बेडकर जी में प्रारंभ से ही प्रतिभा थी। अब यह प्रतिभा उनके जन्म पूर्व के संस्कारों से आयी या पूर्व जन्म की संचित प्रतिभा थी या राज परिवार के संस्कारों से प्राप्त वातावरण की थी यह निष्कर्ष निकालना संभव नहीं। किन्तु उनमें प्रतिभा थी और उस प्रतिभा को तत्कालीन राज परिवार का अंध समर्थन मिला। यह बात सच है कि उन्होने इन सब परिस्थितियो का पूरा-पूरा लाभ उठाया। सवर्ण ब्राहमण ने उन्हे पढ़ाया, सवर्ण राजा ने उनकी सब प्रकार से सहायता की सवर्ण पत्नि ने जीवन भर उनका साथ दिया और भीमराव अम्बेडकर जी ने भी सवर्णो के हित में वह सब किया जो उन्हे नहीं करना चाहिए था। स्पष्ट दिख रहा था कि स्वतंत्रता के बाद सवर्ण और अवर्ण के बीच वह भेदभाव पूर्ण स्थिति नहीं रह सकती जो स्वतंत्रता के पूर्व थी। भीमराव अम्बेडकर जी ने बहुत चतुराई से मुट्ठी भर अवर्ण बुद्धिजीवियों को बहुसंख्यक सवर्ण बुद्धिजीवियों से समझौता करा दिया और उसका परिणाम हुआ कि 67 वर्षो बाद भी सवर्ण बहुमत सब प्रकार के लाभ उठा रहे है और अवर्ण बहुमत आज भी मिट्टी खोदने से आगे बढ़ने की स्थिति में नही है।

     हम देख रहे है कि आज पूरे हिन्दुस्तान के सभी राजनेता, सभी धर्मगुरु चाहे सवर्ण हो या अवर्ण तथा सभी बुद्धिजीवी चाहे छोटे पद पर हो या बड़े पद पर, एक स्वर से भीमराव अम्बेडकर जी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रहे है  कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए सभी राजनेताओं तथा बुद्धिजीवियों में एक होड़ सी मची है कि कौन इस मामले में आगे निकल पाता है। चाहे मोदी हो या सोनिया राहुल, चाहे कम्यूनिस्ट हो या नितीश अरविंद , चाहे संघ प्रमुख हों या आजम खान हो, सभी एक स्वर से प्रशंसा में लगे है। मेरे विचार से उन्हे लगना भी चाहिए। क्योकि समाज को गुलाम बनाकर पीढियों तक रखने का जो मार्ग भीमराव अम्बेडकर जी ने दिया और जिस पर चलकर आज भी ये लोग अपने को स्थापित किये है उस मार्ग दृष्टा को सम्मानित न करना तो कृतघ्नता ही मानी जाएगी। सभी संविधान की दुहाई दे रहे है क्योकि संविधान ही तो वह दस्तावेज है जो समाज को गुलाम बनाकर रखने में तंत्र की ढाल बना हुआ है।

विचारणीय है कि आज समाज का प्रतिनिधत्व करने वाला कोई गांधी दिख नहीं रहा और ऐसे प्रतिनिधित्व के अभाव में राजनेता मैदान में एक तरफा गोल मारे जा रहे है। यह अलग बात है कि इस एक तरफा गोल करने में उनके आपसी हित भी टकराते हो किन्तु कोई और गांधी पैदा न हो जाये जो समाज को सशक्त करने का मार्ग प्रस्तुत कर दे , इस मामले में तंत्र से जुडे सब लोग एकजुट है। भीमराव अम्बेडकर जयन्ती के बहाने ये सब लोग मिलकर अम्बेडकर जी को अपना नायक सिद्ध करने का पूरा प्रयास कर रहे है। मुझे विश्वास है कि भविष्य में परिस्थितियाँ बदलेंगी और जब दूसरा पक्ष मालिक की भूमिका में आयेगा तब शायद भीमराव अम्बेडकर जी एक खलनायक के रुप में स्थापित हो सकेंगे।