विपक्ष की अनिवार्यता लोकतंत्र में एक भ्रम है: GT 442
विपक्ष की अनिवार्यता लोकतंत्र में एक भ्रम है:
मेरे कई मित्र यह लिखते रहे हैं की आदर्श लोकतंत्र में विरोधी पक्ष होना आवश्यक है। मैं इस संबंध में बहुत विचार किया। मुझे लगा कि यदि लोकतंत्र की यह परिभाषा है तो या तो यह परिभाषा गलत है अथवा लोकतंत्र ही गलत है । लोकतंत्र में विपक्ष होना क्यों आवश्यक है। आदर्श स्थिति तो यह होती कि किसी भी विषय पर विचार बंधन के समय प्रत्येक व्यक्ति को अपना विचार रखने की स्वतंत्रता होनी चाहिए चाहे वह विचार उस प्रस्ताव के विपक्ष में ही क्यों ना हो यह स्वतंत्रता ही लोकतंत्र है ना कि विरोध करने की अनिवार्यता। हमने लोकतंत्र की अभी तक जो परिभाषाएं पड़ी हैं वे सब गलत हैं वे विदेशों से उधार ली गई परिभाषाएं हैं लोकतंत्र की वास्तविक परिभाषा नहीं। लोकतंत्र तो लोक नियंत्रित तंत्र होता है जिसमें विरोध मत व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है अनिवार्यता नहीं। भारत का लोकतंत्र ठीक दिशा में जा रहा है विपक्ष पूरी तरह समाप्त हो रहा है। कांग्रेस के बड़े-बड़े धुरंधर लगातार भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो रहे हैं अगर राजनीति एक ध्रुवीय हो रही है तो इसमें लोकतंत्र पर कहां से खतरा आ गया मैं तो गांधी का पक्षधर हूं जिन्होंने यह कहा था कि लोकतंत्र का अर्थ सर्व सम्मति होता है विरोधी पक्ष नहीं आज गांधी विरोधी लोग लोकतंत्र का अर्थ विपक्ष की अनिवार्यता से लगते हैं मैं भारत के लोकतंत्र की दिशा से संतुष्ट हूं। भारत के वर्तमान नकली लोकतंत्र से जितनी जल्दी मुक्ति मिल जाए उतना ही अच्छा है वहीं से लोक स्वराज की संभावनाएं बनेगी।
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