आन्दोलन की प्रवृत्ति को निरुत्साहित करने की जरुरत: GT - 443

आन्दोलन की प्रवृत्ति को निरुत्साहित करने की जरुरत:

पूनम आई कौशिक एक प्रसिद्ध लेखक है उनके लेख में प्राय पढ़ता हूं। अभी 3 दिन पहले उन्होंने एक लेख अखबारों में प्रकाशित किया। उस लेख में उन्होंने बताया है कि किस प्रकार आंदोलनकारी प्रवृत्ति किसी भी देश को पीछे ले जाती है। स्वतंत्रता के बाद आंदोलन का कोई औचित्य नहीं था, लेकिन दिन-रात पेशेवर लोग आंदोलन को प्रोत्साहित करते रहे। जयप्रकाश आंदोलन से भी कुछ नहीं निकला अन्ना आंदोलन से भी कुछ नहीं निकला उल्टा आंदोलन के कारण देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ। विदेशी हस्तक्षेप का मार्ग खुला, आंदोलन के कारण ही देश में अराजकता का वातावरण पैदा हुआ, नए-नए संगठन बनाकर सरकारों पर दबाव बनाने लगे ब्लैकमेल करने लगे। अब समय आ गया है कि आंदोलन को प्रतिबंधित कर दिया जाए।

                मैं भी लंबे समय से आंदोलन के विरुद्ध लिखता रहा हूं। मुझे पूनम जी का यह लेख बहुत पसंद आया। यह लेख सबको पढ़ना चाहिए साथ ही आंदोलन की प्रवृत्ति को निरुत्साहित करना चाहिए लोकतंत्र में किसी भी आंदोलन का कोई औचित्य नहीं हो सकता है। किसान आंदोलन को देखते हुए यह बात तत्काल आवश्यक हो जाती है।

मैंने अपने जीवन में अनेक आंदोलन देखे हैं स्वतंत्रता के बाद लोहिया जी ने गैर कांग्रेसी-वाद का आंदोलन शुरू किया था। जयप्रकाश नारायण ने भी एक आंदोलन किया, भारतीय जनता पार्टी ने भी एक आंदोलन किया, अन्ना हजारे ने भी एक आंदोलन किया, इस तरह देश में कई बार आंदोलन हुए। आंदोलन से सरकार तो बदली लेकिन सरकार चली नहीं। आंदोलन ने व्यवस्था को तोड़ा लेकिन कोई व्यवस्था बना नहीं सके। कोई भी आंदोलन सफल नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी इस बार प्रधानमंत्री बने हैं तो किसी आंदोलन की उपज नहीं है, बल्कि जन जागरण की उपज है। जन जागरण ने यह सिद्ध कर दिया है की आंदोलन का कोई औचित्य नहीं है। आंदोलन सरकार बदल सकते हैं सरकार चला नहीं सकते। पिछले आंदोलन की अगर तुलना करें तो वर्तमान किसान आंदोलन... आंदोलन के नाम पर एक कलंक ही है। पहले के आंदोलन में जन बल का प्रदर्शन था बाहुबल का प्रदर्शन नहीं था। आज तक किसी भी आंदोलन ने इस प्रकार हथियारों का प्रदर्शन नहीं किया, इस प्रकार किसान के नाम पर बुलडोजर और ट्रैक्टर लेकर किसी देश पर चढ़ाई नहीं कर रहे थे। आंदोलन के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है यह तो आंदोलन को बदनाम करने की बात है। मैं किसी आंदोलन का पक्षधर नहीं हूं और इस आंदोलन के नाम पर की गई गुंडागर्दी का तो बिल्कुल ही समर्थक नहीं हूं। बाहुबली की ताकत पर नक्सलवादियों में बहुत कुछ किया, बाहुबली की ताकत पर भिंडरावाले ने भी बहुत कुछ किया लेकिन बाहुबली की ताकत को आंदोलन का नाम नहीं दिया जा सकता।