एक झूठ ‘रोहित वेमुला’ के नाम पर दुकानदारी : GT-448

एक झूठ ‘रोहित वेमुला’ के नाम पर दुकानदारी :

         सारी दुनिया में साम्यवादियों को सबसे अधिक चालाक माना जाता है। उनके तर्क शक्ति बहुत मजबूत होती है, वे वैचारिक धरातल पर दूसरों को प्रभावित करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। वह भारत में भले ही राजनीतिक ताकत के रूप में बहुत मजबूत नहीं हो पाए, किंतु वैचारिक शक्ति के मामले में वे पूरे भारत में सबसे आगे हो गए थे। पिछले 20 वर्षों में साम्यवाद की नकल करके संघ परिवार ने भी उसी तरह वैचारिक धरातल पर अपनी शक्ति मजबूत करने का प्रयास किया। नरेंद्र मोदी के आने के बाद संघ परिवार को कुछ और ताकत मिली और उस ताकत का ही परिणाम हुआ, कि संघ परिवार साम्यवादी विचारधारा के सामने एक चुनौती के रूप में खड़ा हुआ। यह साम्यवाद की ही शक्ति थी कि रोहित वेमुला के एक झूठे मामले को वह इतना अधिक बढ़ाने में सफल हो गया, कि वह दुनिया का एक प्रमुख मुद्दा बनने लगा। अब 8 वर्षों के बाद सरकार ने यह स्पष्ट किया है, कि रोहित वेमुला एक सवर्ण व्यक्ति था। जिसने झूठ बोलकर अपने को अछूत घोषित कर दिया था। जब उसकी पोल खुली तो पोल खुलने के डर से उसने अपनी आत्महत्या कर ली, और उस आत्महत्या को साम्यवादियों ने तथा रोहित वेमुला की मां ने एक हथियार के रूप में प्रयोग किया। ऐसी दुकानदारी चलाई कि रोहित वेमूला का नाम देशभर में चर्चा में आ गया। बड़ी मात्रा में इस मामले में धन भी इकट्ठा किया गया,    और आम लोग यह मानने लगे कि रोहित वेमुला वास्तव में अछूत जाति का था। अब जांच होने के बाद यह बात साफ हुई कि साम्यवादियों ने एक झूठ को सच के समान सिद्ध कर दिया और सारे देश को इतने वर्षों तक अंधेरे में रखा। मुझे दुःख  है कि इस झूठ को प्रमाणित करने में भी हमारी सरकारी व्यवस्था को कितने अधिक वर्ष लग गए, अन्यथा इस झूठ को एक दिन में ही बेनकाब किया जा सकता था। यदि सरकार समय से कार्यवाही करती तो साम्यवादियों और रोहित वेमुला की मां को इस तरह दुकानदारी करने का लाभ नहीं मिल पाता।

        रोहित वेमुला के मामले में तेलंगाना सरकार ने जो निष्कर्ष निकाले हैं, इसके संबंध में कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की है, कि यदि केंद्र में हमारी सरकार बनती है, तो हम रोहित वेमुला जैसे मामलों के निपटारे के लिए एक अलग से कानून बनाएंगे। जिससे कोई सरकार इस प्रकार के मामलों में हस्तक्षेप न कर सके। मुझे आश्चर्य है कि कांग्रेस पार्टी किस प्रकार समाज का बंटवारा करना चाहती है? यदि कोई सवर्ण चालाकी करके अवर्ण बन जाता है और उस अवर्ण के साथ यदि कोई कानूनी कार्यवाही होती है तब उसे अवर्ण ही माना जाएगा सवर्ण नहीं? इस प्रकार का यदि कोई कानून बनता है, तो मेरे विचार से यह बहुत घातक सोच है। कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने जो कुछ कहा है, उस विषय पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। देश को अब और लंबे समय तक आदिवासी-गैरआदिवासी, दलित-सवर्ण, महिला और पुरुष इसमें बांटने की जरूरत नहीं है, बल्कि गांधी के बताए रास्ते पर चलने की जरूरत है, जिसमें वर्ग-समन्वय को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है।