किसानों के नाम पर समाज के ब्लैकमेलर GT 442
किसानों के नाम पर समाज के ब्लैकमेलर:
मैंने 20 वर्ष पहले एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था गाय की रोटी कुत्ता खाए। इस लेख में यह कहानी थी कि परेशान गायों को बचाने के लिए कुत्तों ने पशु संरक्षण के नाम पर आंदोलन किया और प्रशासन ने गायों की मदद के लिए आटा पीसा। लेकिन आटा गाय तक न पहुंच कर कुत्ते खाते रहे, कुत्ते मजबूत होते रहे और जब भी आटा कम पड़ता तो कुत्ते काटने को भी दौड़ने लगे। उनका तर्क था कि गाय भी पशु है, कुत्ता भी पशु है। ठीक यही हाल आज दिखाई दे रहा है परेशान किसानों के नाम पर मोटे-मोटे ब्लैकमेलर काटने को दौड़ रहे हैं। वे सड़के जाम कर रहे हैं। ट्रैक्टर आंदोलन कर रहे हैं और हर अपराध करने को तैयार हैं क्योंकि कुछ समय पहले तक किसानों के साथ भारी अन्याय हो रहा था। सिर्फ किसानों के नाम पर ही नहीं, गाय की रोटी खाने के लिए कुत्ते समाज के हर क्षेत्र में ब्लैकमेल कर रहे हैं। महिलाओं के नाम पर कुछ गिनी चुनी आधुनिक महिलाएं सारे समाज को ब्लैकमेल कर रही है तो आदिवासियों और हरिजन के नाम पर भी इसी प्रकार की ब्लैकमेलिंग हो रही है। लेकिन किसानों के नाम पर जो हो रहा है उसने तो समाज को बहुत अधिक चिंता में डाल दिया है।
गायों की रोटी कुत्ता न खा सके इसके लिए दो तरफा प्रयास करने होंगे। इन ब्लैकमेलर किसान नामधारी पेशेवर आंदोलनकरियों को डंडे भी मारने होंगे। महिला, आदिवासी, हरिजन के नाम पर भी पेशेवर लोगों को कमजोर करना होगा। साथ वास्तविक किसानों, महिलाओं, वनवासियों, अछूतों को सशक्त करने के लिए भी कुछ नए प्रयास करने होंगे। जब तक यह दोनों प्रयत्न एक साथ योजनाबद्ध तरीके से नहीं होते तब तक इस कैंसर बन चुकी बीमारी से छुटकारा संभव नहीं है। समाज को चाहिए कि वह इन लाभ उठा चुके कुत्तों से कोई सहानुभूति न रखें और परेशान हो रही गायों की मदद करने के लिए नये योजना बनाने पर सोचें। गाय और कुत्ता दोनों ही पशु है, आधुनिक महिला और परंपरागत परिवार की महिला दोनों ही महिला है। खेतों, सड़कों पर मजदूरी कर रहा आदिवासी, हरिजन और मंत्री, विधायक सरकारी कर्मचारी बनकर मोटा हो चुका। अछूत, आदिवासी भी पीड़ित है इस विचार को पूरी तरह छोड़ देने की आवश्यकता है। यदि वर्तमान समय में सरकार झुककर इन ब्लैकमेलर किसानों से कोई समझौता करती है तो वह सरकार की गलती मानी जाएगी। मैं अंत में कहना चाहता हूं कि गाय की रोटी खा-खा कर मोटे हो चुके कुत्तों को अब दंडित करने की आवश्यकता है।
यह बात सही है कि किसानों महिलाओं अछूतों ग्रामीणों के साथ समाज में भेदभाव हुआ उस भेदभाव के परिणाम स्वरूप वे लोग योग्यता के आधार पर आगे नहीं बढ़ सके । लेकिन स्वतंत्रता के बाद जब यह बात समझ में आई और इस वातावरण को बदलने का प्रयास हुआ इस सहानुभूति का लाभ धूरतों ने उठाया । एक कहने लगा कि मैं अन्नदाता हूं मैं इस संबंध में विचार किया मैंने यह पाया कि ‘अन्नदाता बड़ा होता है’ कि ‘करदाता बड़ा होता है’। आज समाज का व्यापारी वर्ग बड़ी मात्रा में टैक्स दे रहा है अगर करदाता टैक्स न दें तो यह अन्नदाता भूखे मर जाएंगे, क्योंकि इन्हें सस्ती खाद चाहिए सस्ता पानी चाहिए, सस्ता बीज चाहिए, महंगा अनाज बेचने की सुविधा चाहिए, सारे देश को यह अन्नदाता के नाम पर लूट लेना चाहते हैं… अब करदाताओं को एकजुट होकर टैक्स देना बंद कर देना चाहिए इन अन्नदाताओं की अकल ठिकाने लग जाएगी। अपने को अन्नदाता कह कर के यह लोग जितना ब्लैकमेल कर रहे हैं वह उचित नहीं है । मेरा सुझाव है की करदाताओं को इस संबंध में गंभीरता से सोचना चाहिए।
यह तय है कि संगठित किसानो ने छोटे किसानों का हक मार कर अपने को मोटा कर लिया और वह अब समाज को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहे हैं। अब हम चर्चा करेंगे जातिवाद और आरक्षण की। जातिवाद के नाम पर भी कुछ लोगों ने संगठित होकर जातिवाद का लाभ उठाया है किसानों के नाम पर ही नहीं, गाय की रोटी खाने के लिए कुत्ते समाज के हर क्षेत्र में ब्लैकमेल कर रहे हैं।
आरक्षण उस लाभ प्राप्ति का ही एक माध्यम है आरक्षण और जाति जन्म से नहीं कर्म और परिस्थिति के आधार पर होनी चाहिए लेकिन जन्म के आधार पर जातियों को मान्यता दे दी गई और अंबेडकर नेहरू ने मिलकर जातिवाद का लाभ उठाने के लिए जन्म अनुसार जाति को मान्यता भी दे दी, यह पूरी तरह षड्यंत्र था। उस मान्यता का लाभ आज धूर्त लोग उठा रहे हैं और पूरे समाज को ब्लैकमेल कर रहे हैं। मैं हमेशा जातिवाद और जातीय संगठनों का विरोध किया लेकिन कोई अच्छा परिणाम नहीं निकल सका नरेंद्र मोदी ने दूसरे तरीके से जातिवाद के विरोध की योजना बनाई है उन्होंने जातीय व्यवस्था को चार आधार पर बांटने का प्रयत्न शुरू किया है गरीब युवा किसान और महिला के नाम से यह चार नई जातियां बनाई जा रही हैं । इन चारों जातियों को आरक्षण दिया जाएगा और अब तक जो आरक्षण है उसकी पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा । मेरे विचार से यह तरीका बहुत अच्छा तो नहीं है किंतु वर्तमान समय में यह तरीका उपयुक्त हो सकता है किसानों के नाम पर ही नहीं, गाय की रोटी खाने के लिए कुत्ते समाज के हर क्षेत्र में ब्लैकमेल कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने जो तरीका बताया है उस तरीके का भी प्रयोग करने की जरूरत है ज्योही इस तरह का प्रयोग शुरू होगा त्यों ही जाति के नाम पर लाभ उठाने वाले धूर्त लोग इस तरीके का विरोध करना शुरू कर देंगे जैसा कि अभी दिख भी रहा है। मैं नरेंद्र मोदी के तरीके का भी समर्थन करता हूं किसानों के नाम पर ही नहीं, गाय की रोटी खाने के लिए कुत्ते समाज के हर क्षेत्र में ब्लैकमेल कर रहे हैं।
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