1 जुलाई, प्रातःकालीन सत्र। धर्म और विज्ञान समाज में हमेशा एक-दूसरे के पूरक रहे हैं।

1 जुलाई, प्रातःकालीन सत्र।

धर्म और विज्ञान समाज में हमेशा एक-दूसरे के पूरक रहे हैं। विज्ञान अनुसंधान करता है, निष्कर्ष निकालता है, और धर्म उन निष्कर्षों को समाज तक पहुंचाने का माध्यम बनता है। निष्कर्षों को समाज तक पहुंचाना चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि विचारक तर्कसंगत निष्कर्ष निकालते हैं, जबकि समाज भावनाओं से प्रेरित होता है। इसलिए, धर्म इन निष्कर्षों को समाज के अनुकूल स्वरूप में ढालकर प्रस्तुत करता है। इसीलिए धर्म और विज्ञान को एक साथ जोड़ा जाता है।

दुर्भाग्यवश, पिछले कई वर्षों से दोनों के बीच दूरी बढ़ती गई, जिसके कारण विज्ञान के निष्कर्ष धर्म तक नहीं पहुंच सके। विज्ञान केवल भौतिक अनुसंधान तक सीमित रहा, और निष्कर्षों के अभाव में धर्म रूढ़िग्रस्त हो गया। अब समय आ गया है कि धर्म और विज्ञान के बीच सामंजस्य स्थापित किया जाए। विज्ञान को न केवल भौतिक, बल्कि सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में भी निष्कर्ष निकालने चाहिए और उन्हें धर्म को सौंपना चाहिए, ताकि धर्म इन्हें समाज तक पहुंचा सके।

एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि विज्ञान अपने सामाजिक निष्कर्ष किस इकाई को सौंपेगा? वर्तमान में धर्म की कोई ऐसी स्पष्ट इकाई नहीं है जो इन निष्कर्षों को समाज तक पहुंचा सके। इस संदर्भ में, माँ संस्थान एक नए स्वरूप में ऐसी इकाई के रूप में उभर रहा है, जो विज्ञान के निष्कर्षों को ग्रहण कर उन्हें समाज तक पहुंचा सकता है। हम धर्म और विज्ञान के बीच टकराव को समाप्त करने का एक सेतु बन रहे हैं।