आज अंडमान-निकोबार में अमित शाह जी और मोहन भागवत जी द्वारा वीर सावरकर की प्रतिमा का अनावरण किया गया और उनकी प्रशंसा की गई।
आज अंडमान-निकोबार में अमित शाह जी और मोहन भागवत जी द्वारा वीर सावरकर की प्रतिमा का अनावरण किया गया और उनकी प्रशंसा की गई। मैं इस बात से सहमत हूँ। वीर सावरकर ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण संघर्ष किया है। जिस प्रकार देश के अनेक लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, उसी श्रेणी में सावरकर भी शामिल हैं। हालाँकि तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर का स्थान गांधी, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह से नीचे, लेकिन नेहरू, अंबेडकर और कम्युनिस्ट नेताओं से कहीं ऊपर माना जा सकता है—यह एक वैचारिक मूल्यांकन है, जिस पर अलग-अलग मत हो सकते हैं।
सावरकर और गांधी के बीच स्वतंत्रता को लेकर गंभीर वैचारिक मतभेद थे। सावरकर अंग्रेजों और मुसलमानों—दोनों को समान रूप से शत्रु मानते थे और दोनों से एक साथ संघर्ष करना चाहते थे। वहीं गांधी अंग्रेजों को अधिक घातक मानते थे, क्योंकि उनकी दृष्टि में अंग्रेज विदेशी थे जबकि मुसलमान भारतीय समाज का हिस्सा थे। यही दोनों नेताओं की सोच में मूलभूत अंतर था।
नेहरू की तुलना में सावरकर को कुछ अधिक सम्मान दिया जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि नेहरू ने गांधी के विचारों से विचलन किया और राजनीतिक स्तर पर गांधी के साथ छल किया। इसके विपरीत, सावरकर ने गांधी का प्रत्यक्ष विरोध किया, लेकिन उनके साथ किसी प्रकार का छल नहीं किया—यही दोनों के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है।
यह सत्य है कि जेल में रहते हुए सावरकर ने अंग्रेज सरकार के साथ समझौता किया और उस समझौते की शर्तों का पालन किया। यदि कोई व्यक्ति किसी अत्याचारी व्यवस्था के अंतर्गत समझौता कर जीवन बचाने या संघर्ष जारी रखने का रास्ता चुनता है, तो मात्र इस आधार पर उसके पूरे जीवन को कलंकित नहीं कहा जा सकता। यदि सावरकर ने अंग्रेज सरकार से किया गया वादा निभाया, तो केवल इसी कारण उन्हें दोषी ठहराना उचित नहीं है।
वर्तमान समय में सावरकरवादी और गांधीवादी विचारों के नाम पर जो राजनीतिक और वैचारिक दुकानदारी चल रही है, वह देश के लिए घातक है। गांधी और सावरकर—दोनों अपने-अपने समय और संदर्भ में उचित थे। आज दोनों जीवित नहीं हैं, इसलिए उनके नाम पर टकराव पैदा करना या राजनीति करना अनुचित है।
मैं गांधी और सावरकर—दोनों का प्रशंसक हूँ। वर्तमान सरकार द्वारा गांधी और सावरकर दोनों को सम्मान देना उचित और संतुलित कदम है।
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