आदर्श समाज व्यवस्था पर विचार
आदर्श समाज व्यवस्था पर विचार
3 जुलाई, प्रातःकालीन सत्र
एक आदर्श समाज व्यवस्था में विचार सर्वोच्च स्थान रखता है। विचारों के पश्चात क्रिया आती है। विचार को मार्गदर्शन कहा जाता है, और क्रियाशील लोगों में रक्षक, पालक और सेवक शामिल होते हैं। विचारकों को सर्वाधिक सम्मान प्राप्त होता है, क्योंकि उनके पास ज्ञान और त्याग का अनूठा संयोजन होता है। न तो केवल ज्ञान पर्याप्त है बिना त्याग के, और न ही केवल त्याग उचित है बिना ज्ञान के। दोनों का समन्वय ही विचारकों को विशिष्ट बनाता है।
किंतु, समय के साथ समाज में एक परिवर्तन आया। विचारकों के स्थान पर पहले राज्यशक्ति और फिर धीरे-धीरे धनशक्ति ने प्रभुत्व जमाया। विचारकों का प्रभाव और सम्मान कम हुआ, और ज्ञान के स्थान पर धन और राजनीतिक शक्ति को प्राथमिकता दी जाने लगी। परिणामस्वरूप, समाज में विचारकों का अभाव हो गया, जिससे एक असंतुलन उत्पन्न हुआ। यह स्पष्ट नहीं है कि पहले विचारकों का अभाव हुआ और फिर उनका सम्मान घटा, या सम्मान घटने से अभाव पैदा हुआ। जो भी हो, इसका परिणाम यह हुआ कि ज्ञान की जगह शक्ति और धन ने ले ली।
इस स्थिति का लाभ उठाकर सेवक संस्कृति सशक्त हुई, और सेवक के नाम पर गुंडा तत्वों ने ताकत हासिल कर ली। वर्तमान भारत में राजनीतिक शक्ति, धनशक्ति और गुंडा शक्ति के बीच श्रेष्ठता की होड़ चल रही है।
अब समय आ गया है कि हम एक नई व्यवस्था स्थापित करें, जिसमें विचारकों का एक वर्ग पुनः तैयार हो। इससे समाज में ज्ञान और त्याग का महत्व बढ़ेगा। जब तक ज्ञान और त्याग को समाज में उच्च सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक अराजकता का समाधान संभव नहीं होगा।
आइए, हम सब मिलकर मार्गदर्शकों को उचित सम्मान दें और उनके अभाव को दूर करने का प्रयास करें। यही एक आदर्श समाज की नींव होगी।
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