ईश्वर का अस्तित्व
कुछ निष्कर्ष है-
- ईश्वर है, किन्तु यदि नहीं भी हो तो एक ईश्वर मान लेना चाहिए;
- ईश्वर और भगवान अलग-अलग होते है । धर्म दोनों को अलग-अलग मानता है और सम्प्रदाय एक कर देता है;
- ईश्वर एक अदृश्य शक्ति के रूप में होता है और भगवान प्रेरणादायक महापुरूष के रूप मे;
- अदृश्य भय व्यक्ति को गलत करने से रोकता है और दृश्यभय, ब्लैकमेल भी कर सकता है । ईश्वर अदृश्य भय होने के कारण बहुत उपयोगी होता है;
- ईश्वर का भय कम होते जाने के कारण माक्र्स ने अदृश्य भय के लिए नया तरीका खोजा था । मार्क्स की नीयत ठीक थी, तरीका गलत था । मार्क्स ने व्यवस्था की तुलना में व्यक्ति पर अधिक विश्वास करने की भूल की ।
- दर्शन और धर्म अलग-अलग होते है और दोनों का समन्वय समाज के लिए उपयोगी है । दार्शनिक समझता है कि ईश्वर नहीं होता है किन्तु समाज को समझाता है कि ईश्वर है क्योंकि समाज के ठीक-ठीक संचालन के लिए ईश्वरीय सत्ता का अस्तित्व मानना आवश्यक होता है;
- ईश्वर निराकार होता है और भगवान साकार होते हैं । ईश्वर की मुर्ति नहीं होती, भगवान की होती है । रामकृष्ण भगवान माने जाते है, ईश्वर नहीं;
- ईश्वर एक है । हिन्दू हो या ईसाई मुसलमान, नाम या भाषा के आधार पर अलग-अलग हो सकते है;
- मूर्ति पूजा दार्शनिको के लिए निरर्थक है और सामान्य व्यक्तियों के लिए सार्थक । वैसे भी मूर्ति पूजा निरर्थक कार्य हो सकती है किन्तु समाज विरोधी कार्य नहीं । इसलिए मूर्ति पूजा का विरोध करना निरर्थक कार्य माना जाता है;
- ईश्वर के प्रति विश्वास होना चाहिये और महापुरूष के प्रति श्रद्धा । अदृश्य के प्रति विश्वास और दृश्यके प्रति श्रद्धा होती है । महापुरूषों की मूर्तियां दृश्यमानी जाती है ।
- इस प्रकार की बहस में कभी नहीं पड़ना चाहिये कि ईश्वर है कि नहीं क्योंकि ईश्वर काल्पनिक है और प्रकृति वास्तविक ।
- जब किसी का अस्तित्व कल्पना से भी बाहर हो जाता है तब उसे ईश्वर मान लेना चाहिए । ब्रह्मांड का विस्तार कल्पना से भी अधिक दूर है और ब्रह्मांड की सूक्ष्मता भी कल्पना से बाहर है । इसलिए ईश्वर को मान लेना उचित होता है;
- जो लोग नास्तिक होते है वे सत्य जानते है कि ईश्वर नहीं होता। किन्तु वे समाज व्यवस्था के ठीक संचालन के लिए ईश्वर की आवश्यकता है ऐसा न मानकर भूल करते है।
- भारतीय वर्ण व्यवस्था में ईश्वर को मानने और न मानने का एक बहुत अच्छा संतुलन है । अधिकांश विद्वान ईश्वर को नहीं मानते किन्तु अन्य तीन वर्णो को ईश्वर पर विश्वास कराने का पूरा प्रयत्न करते है ।
मैंने भी ईश्वर के अस्तित्व पर अपने पूरे जीवन काल में बहुत सोचा समझा । जिस तरह प्रकृति किसी व्यवस्था के आधार पर किसी बने बनाये नियम के अनुसार चलती है उससे यह सिद्ध होता है कि ईश्वर है । मनुष्य का शरीर भी जितनी जटिल प्रक्रिया से बना है उससे आभास होता है कि उसका बनाने वाला कोई अवश्य होगा । किन्तु साथ ही यह प्रश्न भी खड़ा होता है कि यदि मानव शरीर और प्रकृति को किसी ने बनाया है तो उस बनाने वाले को किसने बनाया?, मैं कभी इन दोनों प्रश्नो का उत्तर नही खोज सका । इसलिए मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि चाहे ईश्वर हो या न हो किन्तु हमें ईश्वर के अस्तित्व को मान लेना चाहिये । मेरे व्यक्तिगत जीवन में भी कुछ ऐसी घटनाये घटी जिनके आधार पर मैंने यह माना कि किसी अदृश्य शक्ति द्वारा मेरी सहायता की जा रही है । उन घटनाओं ने भी मुझे ईश्वर का अस्तित्व मानने के लिए मजबूर किया । मुझे यह पूरा विश्वास है कि मूर्तियों में कोई अलग से ईश्वर नहीं है किन्तु मैं मूर्ति पूजा पर पूरी तरह अविश्वास करते हुए भी मूर्ति पूजा का विरोध नहीं करता क्योंकि कुछ वर्षो तक आर्य समाज में सक्रिय रहने के बाद मैंने यह महसूस किया कि मेरी तर्क शक्ति बहुत तेजी से बढ़ रही है और श्रद्धा घट रही है । अर्थात मैं धीरे-धीरे नास्तिकता की ओर बढ़ रहा हूँ । कर्मकांड तो छूट गया किन्तु यज्ञ पर विश्वास बढ़ने की अपेक्षा यज्ञ भी औपचारिक होने लगा । इसलिए मैंने उचित समझा कि मूर्ति पूजा का विरोध करना अकर्म है, आवश्यक नहीं, उचित भी नहीं । मुझे पूरा विश्वास है कि स्वामी दयानंद ठीक समझते थे कि ईश्वर निराकार है, मूर्ति पूजा निरर्थक है । किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में समाज के ठीक-ठीक संचालन के लिए मूर्तियां भय पैदा करती है तो जब तक उसका अच्छा विकल्प न बने तब तक उसका विरोध नहीं करना चाहिए । मार्क्स ने ईश्वर के अस्तित्व को अस्वीकार करके राज्य को तैयार करने का प्रयास किया था । उनका मानना था कि राज्य को एक ऐसी अदृश्य शक्ति के रूप में खड़ा किया जाये जो धीरे-धीरे अपने आप अदृश्य हो जाये और समाज उस अदृश्य शक्ति से भयभीत होकर ठीक चलता रहे । इसलिए मार्क्स ने कहा था की मार्कस्वाद का चरम उत्कर्ष होगा जब राज्य पूरी तरह अदृश्य हो जायेगा । “स्टेट शैल विदर अवे” । दुर्भाग्य से वह राज्य अदृश्य होकर समाज को काल्पनिक भय से संचालित करने के ठीक विपरीत दृश्यभय के रूप में गुलाम बनाकर रखने लगा अर्थात साम्यवाद अदृश्य शक्ति की जगह तानाशही में बदल गया और यह स्पष्ट है कि साम्यवाद दुनियां में सबसे बुरी व्यवस्था है । साम्यवाद ने सारी दुनियां में अव्यवस्था पैदा की और अब धीरे-धीरे साम्यवाद से पिंड छूट रहा है अर्थात साम्यवाद प्रभावित देशो में भी ईश्वर को मानने वालों की संख्या बढ़ रही है।
ईश्वर को मानने वाले ईश्वर को एक शक्ति के रूप में मानते है, किसी व्यक्ति या जीव के रूप में नहीं, चाहे वे हिन्दू हो या मुसलमान ।, ईसाई, मुसलमान भी खुदा और पैगम्बर को अलग-अलग मानते है तो ईसाई भी गॉड और यीशु को एक नहीं मानते है । स्पष्ट है कि महापुरूष धीरे-धीरे भगवान कहे जाते है । ऐसे ही भगवानों में बुद्ध, महावीर और राम, कृष्ण भी हुये । अब तो कुछ लोग साई बाबा को भी उस दिशा में आगे बढ़ा रहे है । वैसे तो रजनीश को भी भगवान कहना शुरू कर दिया गया था किन्तु इन सबको भगवान मानने की एक सीमा है । उन्हें ईश्वर नहीं माना जाता है । यद्यपि अप्रत्यक्ष रूप से समाज में भय पैदा करने के लिए कुछ ऐसी काल्पनिक दंत कथाएं जोड़ दी जाती है जो इन महापुरूषो की लौकिक घटनाओं को अलौकिक सिद्ध कर देती है । हो सकता है कि कुछ घटनाएं वास्तविक भी हो किन्तु अधिकांश घटनाएं काल्पनिक और कहानियों के रूप में होती है । इसलिए हमें चाहिए कि यदि कोई घटना तर्क संगत नहीं है तो किसी महापुरूष को स्थापित करने के लिए हमें उस घटना का उपयोग नहीं करना चाहिए । साथ ही हमें ऐसी काल्पनिक घटनाओं का विरोध करने में भी शक्ति नहीं लगानी चाहिए क्योंकि हम स्पष्ट नहीं है कि घटना असत्य ही है और यह भी साफ नहीं है कि उस काल्पनिक घटना का समाज में बुरा प्रभाव पड़ेगा ही । मैं देखता हूँ कि अनेक लोग अपना सारा काम छोड़कर अंध विश्वास निवारण को अपना व्यवसाय बना लेते है । मैं इसे ठीक नहीं मानता । अंध विश्वास दूर होना चाहिए यह सही है किन्तु यह प्रयत्न दुधारी तलवार के समान है जिसका लाभ भीं हो सकता है और नुकसान भी । मैंने स्वयं अपने परिवार और सीमित मित्रों के बीच अंध विश्वास दूर करने का पूरा प्रयास किया किन्तु मैं देख रहा हूँ कि अंध विश्वास कम होते-होते ईश्वर के प्रति विश्वास भी कम होता जा रहा है।
ईश्वर का अस्तित्व तर्क का विषय न होकर श्रद्धा और विश्वास का है । हमारा प्राचीन विश्वास रहा है कि ईश्वर है । पहले मुसलमानों और बाद में अंग्रेजों की गुलामी ने हमारी प्राचीन विद्वत्ता और वैज्ञानिक क्षमता पर संदेह पैदा करके यह समझाया कि भारत प्राचीन समय में वैज्ञानिक आधार पर बहुत पिछड़ा था । यहां तक झूठ समझाया गया कि आर्य विदेशो से आये और आदिवासी यहां के मूलनिवासी थे । स्वतंत्रता के बाद हम भौतिक गुलामी से मुक्त होकर साम्यवाद, समाजवाद की वैचारिक गुलामी से जकड़ गये । परिणाम हुआ कि हमारी प्राचीन वैज्ञानिक उपलब्धियां और अधिक संदेह के घेरे में आ गयीं । हर पढ़ा, लिखा भारतीय यह समझने लगा कि जो कुछ प्राचीन था वह अधिकांश अंधविश्वास था। मैं इससे सहमत नहीं । मैं समझता हूँ कि प्राचीन समय की कुछ मान्यताएं अंधविश्वास हो सकती हैं तो कुछ वैज्ञानिक आधार पर भविष्य में प्रमाणित भी हो सकती हैं । हमारी पुरानी मान्यता ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करती है और जब तक यह पूरी तरह प्रमाणित न हो जाये कि ईश्वर नहीं था, न है, तब तक यदि कोई ईश्वर को मानता है तो गलत नहीं । मेरा सुझाव है कि हम ईश्वर, भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र पूजा के अस्तित्व को माने या न माने यह हमारी स्वतंत्रता है किन्तु इन मान्यताओं का खुलकर विरोध करना भी उचित नहीं, जब तक कोई मान्यता पूरी तरह अंध विश्वास और समाज के लिए घातक सिद्ध न हो जाये । मेरा तो ईश्वर पर विश्वास है किन्तु यदि किसी को नहीं है तो यह उसका व्यक्तिगत विश्वास है । मैं उसे अपना विश्वास बता सकता हॅू किन्तु उसे सहमत करने का प्रयत्न उचित नहीं क्योंकि ईश्वर तर्क का विषय न होकर श्रद्धा विश्वास तक सीमित है।
मैं “हरि अनंत हरि कथा अनंता” पर विश्वासकरता हूँ । ईश्वर की चर्चा भी अनंत काल से चलती रही है और चलती रहेगी । उसी कड़ी में मैं भी इस चर्चा में शामिल हुआ हूँ और आपसे भी अपेक्षा करता हूँ कि आप इस संबंध में अपने विचार देकर इस चर्चा को आगे बढ़ाएँगे ।
Comments
posted a New activity comment 26/09/2021 10:51:51 AM
MERE VICHAR SE ISHWAR KA SWAROOP NIRAKAR HAI ISHWAR KA SAKAR ROOP HAMEIN IS MARG KO PRASHAST KARANE MEIN MADAD KARATA HAI ISHWAR EK ENERGY HAI HAM KAH SAKATE HAI KI JO HAMEIN DIKHAYEE DE WAH HARD WARE YANI DUNIYA HAI AUR JISAKA MATR AABHAS HO WAH SOFT WARE YANI ISHWARIY SHAKTI HAI IS VISHAY MEIN V4SHWAS HI HAMARA AADHAR HAI
posted a New activity comment 26/09/2021 10:51:51 AM
MERE VICHAR SE ISHWAR KA SWAROOP NIRAKAR HAI ISHWAR KA SAKAR ROOP HAMEIN IS MARG KO PRASHAST KARANE MEIN MADAD KARATA HAI ISHWAR EK ENERGY HAI HAM KAH SAKATE HAI KI JO HAMEIN DIKHAYEE DE WAH HARD WARE YANI DUNIYA HAI AUR JISAKA MATR AABHAS HO WAH SOFT WARE YANI ISHWARIY SHAKTI HAI IS VISHAY MEIN V4SHWAS HI HAMARA AADHAR HAI
posted a New activity comment 26/09/2021 10:51:51 AM
MERE VICHAR SE ISHWAR KA SWAROOP NIRAKAR HAI ISHWAR KA SAKAR ROOP HAMEIN IS MARG KO PRASHAST KARANE MEIN MADAD KARATA HAI ISHWAR EK ENERGY HAI HAM KAH SAKATE HAI KI JO HAMEIN DIKHAYEE DE WAH HARD WARE YANI DUNIYA HAI AUR JISAKA MATR AABHAS HO WAH SOFT WARE YANI ISHWARIY SHAKTI HAI IS VISHAY MEIN V4SHWAS HI HAMARA AADHAR HAI