राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी की राजनैतिक समीक्षा
बचपन से ही मैं राममनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित होकर कांग्रेस विरोधी रहा । यह धारणा अब तक मेरी बनी हुई है । मेरे मन में यह बात भी हमेशा बनी रही कि भारत में सामाजिक चिंतन करने वालो का अभाव हो गया है और राजनैतिक दिशा में चिंतन और सक्रिय लोगों की बाढ़ आ गई है । सामाजिक चिंतन करने वाले तो खोजने से भी नहीं मिलते । इसलिए मैं निरंतर प्रयास करता हॅू कि सामाजिक दिशा में काम करने वाले व्यक्ति को प्राथमिकता दॅू ।
मेरी यह धारणा रही है कि नरेन्द्र मोदी वर्तमान समय में बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं । इस आधार पर मैं मानता रहा कि कुछ प्रतिबद्ध भाजपा विरोधी, कुछ अल्पसंख्यक समुदाय के लोग तथा कुछ कालेधन की अर्थव्यवस्था से प्रभावित लोगों को छोड़कर कोई भी तटस्थ व्यक्ति नरेन्द्र मोदी की नीतियों के विरुद्ध वोट नहीं दे सकता । 2019 का चुनाव इसका उदाहरण है ।
5 वर्ष पहले जब लोकसभा चुनाव शुरु भी नहीं हुए थे तभी मैंने लिखा था कि राहुल गांधी एक बहुत ही भले आदमी है । मुझे उनमें गांधी के गुण अधिक दिखे,नेहरु के कम । राहुल गांधी प्रायः झुठ नहीं बोल पाते । उनमें कुटनीतिक समझ का भी अभाव है । वे जनहित को जनप्रिय की अपेक्षा अधिक महत्व देते है । मेरी हार्दिक इच्छा थी कि राहुल गांधी राजनीति में न जाकर गांधी की दिशा में बढ़े मैंने इस संबंध में कई बार लेख भी लिखे और कई बार अपनी इच्छा भी व्यक्त की । यहाँ तक कि मैंने सोनिया जी को भी अपने संदेश दिये किन्तु सोनिया जी ने राहुल की इच्छा के विरुद्ध उन्हें राजनीति में डाल दिया । अब मैं नहीं कह सकता कि राहुल गांधी राजनीति का कीचड़ साफ करने में सफल होंगे अथवा अरविंद केजरीवाल की तरह कीचड़ में ही रहने लायक स्वयं को बना लेंगे । क्या होगा यह भविष्य बतायेगा लेकिन राहुल गांधी अब तक अपनी शराफत पर कायम है ।
कुल मिलाकर भारतीय राजनीति ठीक दिशा में जा रही है । नरेन्द्र मोदी एक सफल राजनेता के रुप में निरंतर आगे बढ़ रहे है। राहुल गांधी ठीक दिशा में भी जा सकते है किन्तु उनकी राजनैतिक योग्यता कितनी विकसित होगी यह अभी पता नहीं है । एक तरफ नरेन्द्र मोदी सरीखा राजनीति का सफल खिलाड़ी तो दूसरी तरफ राहुल गांधी सरीखा राजनीति का असफल अनाड़ी । दोनों मैदान में आमने सामने उतर चुके है । कांग्रेस पार्टी के खूंखार लोग राहुल गांधी के पक्ष में स्वयं को कितना बदल पायेंगे यह पता नहीं किन्तु लालू प्रसाद, ममता बनर्जी सरीखे चालाक राजनेता अवश्य ही परेशान होंगे क्योंकि उन्हें न इस धड़े से कोई विशेष प्रोत्साहन मिलेगा न ही उस धड़े से । मैं इतना और सलाह देना चाहॅूगा कि हार्दिक, जिग्नेश ,कन्हैया सरीखे उच्चशृंखल युवकों से राहुल गांधी को सतर्क रहना चाहिए क्योंकि ये किसी भी दृष्टि से गंभीर लोग नहीं है । न इन्हें नैतिकता की चिंता है न इसकी कोई सामाजिक सोच है । जो लोग वर्तमान समय में EVM पर सवाल उठा रहे है ऐसे लोगों से तो मुझे घृणा सी हो गई है चाहे वे अरविंद केजरीवाल सरीखे मेरे प्रिय ही क्यों न हो । इसलिए राहुल जी को ऐसे लोगों का उपयोग करने और प्रभावित न होने की कला सीखनी होगी ।
अंत में मेरी इच्छा है कि नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी न होकर संतुलित प्रतिद्वंदिता तक सीमित हो जाये तो देश के लिए बहुत अच्छा होगा और यदि राहुल गांधी असफल होकर समाज सशक्तिकरण की दिशा में बढ़ जाये तब तो और भी अच्छा होगा ।
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