विषय: महिला सशक्तिकरण के नाम पर कानूनों का दुरुपयोग
विषय: महिला सशक्तिकरण के नाम पर कानूनों का दुरुपयोग
आजकल “महिला सशक्तिकरण” का नारा इस प्रकार प्रयोग में लाया जा रहा है कि इससे समाज में संतुलन बिगड़ता जा रहा है। इसका लाभ वास्तव में उन महिलाओं को नहीं मिल पा रहा जिन्हें संरक्षण की आवश्यकता है, बल्कि कई बार कुछ स्वार्थी और चरित्रहीन महिलाएँ इस नारे को ब्लैकमेलिंग का हथियार बना रही हैं।
हाल ही में छत्तीसगढ़ पुलिस विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी से जुड़ा मामला सामने आया। उन्होंने परिवार की सहमति से विवाह किया था, किंतु बाद में किसी महिला कर्मचारी से अवैध संबंध बना लिए। यह संबंध दोनों की सहमति से बना था, परंतु बाद में उस महिला ने उन्हें ब्लैकमेल करना प्रारंभ कर दिया। लगातार मानसिक दबाव में आने के कारण अधिकारी ने अपनी वैध पत्नी से दूरी बना ली, फिर भी उस महिला ने उन पर गंभीर आरोप लगा दिए।
अब स्थिति यह है कि यदि वही अधिकारी की पत्नी शिकायत करे, तो मामला तलाक कानून के अंतर्गत आएगा; लेकिन यदि रखैल शिकायत करे, तो उस पर बलात्कार कानून लागू हो जाता है। यही असंतुलन सबसे चिंताजनक है।
ऐसे कानूनों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। यह स्पष्ट होना चाहिए कि कानून न्याय और संतुलन के लिए हों, किसी एक वर्ग या लिंग को अनुचित शक्ति देने के लिए नहीं। परिवार में कौन सशक्त हो—पुरुष या महिला—यह निर्णय परिवार की परिस्थिति और परस्पर सम्मान से तय होना चाहिए, न कि राजनीतिक नारों या असंतुलित कानूनों से।
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