अंग्रेजों के समय में भारत के उद्योगों से बड़ी मात्रा में धन बाहर ले जाया जाता था।
मैंने अंग्रेजों का भी शासनकाल देखा है, नेहरू युग भी देखा है, और वर्तमान समय का दौर भी देख रहा हूँ। अंग्रेजों के समय में भारत के उद्योगों से बड़ी मात्रा में धन बाहर ले जाया जाता था। उस काल में देश में संसाधनों और उत्पादन—दोनों का अभाव था।
स्वतंत्रता के बाद जब नेहरू जी सत्ता में आए, तो उन्होंने उद्योगपतियों को प्रोत्साहित करने के बजाय सरकारीकरण की नीति अपनाई। उन्होंने निजी उद्योगों को सीमित कर दिया और गरीबों के हित में काम करने का नारा दिया। परिणाम यह हुआ कि न तो सरकारीकरण सफल हो सका, और न ही गरीबी कम हुई — क्योंकि जब तक उत्पादन नहीं बढ़ेगा, तब तक गरीबी घट ही नहीं सकती। नेहरू जी ने सरकारीकरण के नाम पर निजी उद्योगों को निरुत्साहित किया और बाद में इंदिरा गांधी ने उसी नीति को और आगे बढ़ाया।
वर्तमान समय में नरेंद्र मोदी सरकार उद्योगों को प्रोत्साहन देने और हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है। लेकिन ऐसे समय में कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट संगठन दोनों ही उद्योगों में बाधक की भूमिका निभा रहे हैं। जहाँ भी कोई नया उद्योग स्थापित होना होता है, ये विरोध में उतर आते हैं — यदि कोई बाँध बन रहा हो तो “जंगल डूबेगा” का नारा, और यदि कोई खदान खुलनी हो तो “पेड़ कटेंगे” का विरोध प्रारंभ हो जाता है।
ऐसा प्रतीत होता है कि इनका अप्रत्यक्ष संबंध चीन से है, क्योंकि चीन नहीं चाहता कि भारत के उद्योग प्रगति करें। भारत का उद्योग जितना मजबूत होगा, चीन के उद्योगों पर उतना ही दबाव पड़ेगा। इसलिए, आज भी ये दल गरीबों के नाम पर भारत के उत्पादन में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।
सरकार को चाहिए कि जो लोग उद्योगों की प्रगति में जानबूझकर अवरोध पैदा कर रहे हैं, उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई करे। उद्योगों को कमजोर करके गरीबी कभी दूर नहीं हो सकती।
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