सन् 75 का आपातकाल और वर्तमान मोदी सरकार की एक समीक्षा
कुछ सर्व स्वीकृत सिद्धान्त है
1. शासन का संविधान तानाशाही होती है और संविधान का शासन लोकतंत्र। तानाशाही मे व्यक्ति के मौलिक अधिकार नही होते जबकि लोकतंत्र मे होते है। 2. लोकतंत्र दो तरह का होता है। 1 आदर्श और विकृत । आदर्श लोकतंत्र मे व्यक्ति के मौलिक अधिकार प्रकृत्ति प्रदत्त होते है और विकृत लोकतंत्र मे मौलिक अधिकार संविधान देता है और ले सकता है। 3. दुनियां मे लोकतंत्र कई प्रकार का है । संसदीय लोकतंत्र, राष्ट्रपतीय प्रणाली, सहभागी लोकतंत्र, तानाशाही लोकतंत्र। भारत का लोकतंत्र, संसदीय प्रणाली और साम्यवादी देशो का तानाशाही लोकतंत्र माना जाता है। 4. सुशासन और स्वशासन मे बहुत फर्क होता है। स्वशासन आदर्श लोकतंत्र है सुशासन विकृत। सुशासन लोकतंत्र मे भी संभव है और तानाशाही मे भी। 5. आदर्श लोकतंत्र मे लोक नियंत्रित तंत्र होता है। लोक मालिक और तंत्र प्रबंधक। तानाशाही मे तंत्र मालिक और लोक गुलाम रहता है। 6. भारत का लोकतंत्र अप्रत्यक्ष रूप से तंत्र की तानाशाही के रूप मे है, आदर्श लोकतंत्र नही । यहां तंत्र मालिक है और लोक गुलाम। 7. जब न्याय और कानून मे टकराव होता है तब आदर्श लोकतंत्र मे न्याय महत्वपूर्ण होता है और विकृत लोकतंत्र मे कानून। 8. विकृत लोकतंत्र मे संगठन शक्तिशाली होते है, संस्थाए कमजोर । आदर्श लोकतंत्र मे संस्थाए मजबूत होती है संगठन कमजोर। सन 75 मे इंदिरा गांधी ने व्यक्तिगत कारणो से आपातकाल लगाया था। उस आपातकाल मे सरकार ने घोषणा की थी कि मौलिक अधिकार निलंबित कर दिये गये है। घोषणा के अनुसार सरकार किसी भी व्यक्ति को कभी भी बिना कारण बताये गोली मार सकती थी। संसद और न्यायपालिका पर असंवैधानिक तरीके से नियंत्रण कर दिया गया था। सरकार की समीक्षा करने पर भी प्रतिबंध लग गया था। आलोचना या विरोध का तो कोई प्रश्न ही नही था। उस समय का आपातकाल पूरी तरह व्यक्तिगत तानाशाही थी क्योकि भारत का संविधान किसी व्यक्ति का गुलाम बन गया था। दो वर्ष बाद सन 77 मे फिर से विकृत लोकतंत्र की स्थापना हुई जो अब तक जारी है।नरेन्द्र मोदी ने अपने चार वर्षो के कार्यकाल मे सीधा सीधा धु्रवीकरण कर दिया है। 70 वर्षो तक जो लोग पक्ष विपक्ष मे विभाजित होकर सम्पूर्ण समाज का मार्ग दर्शन और नेतृत्व कर रहे थे उन सब लोगो को नरेन्द्र मोदी ने किनारे लगा दिया है। सम्पूर्ण विपक्ष तो पूरी तरह नाराज है ही किन्तु सत्ता पक्ष के भी करीब करीब सभी लोग नरेन्द्र मोदी से नाराज है । भले ही वे डर से समर्थन क्यो न करते हो । लगभग सभी संगठन मोदी से नाराज है चाहे वे हिन्दू संगठन हो या मुस्लिम इसाई संगठन। व्यापारी संगठन भी नरेन्द्र मोदी से नाराज हैं चाहे वे बडे उद्योग पति हो या छोटे व्यापारी । मीडिया मे भी नरेन्द्र मोदी के प्रति भारी असंतोष है भले ही कुछ लोग उनसे लाभ लेकर उपर उपर उनका गुणगान कर रहे हो । किसान संगठन के लोग हो या श्रमिक संगठन सब नरेन्द्र मोदी की नीतियो से असंतुष्ट है। सवर्णो के संगठन और अवर्णो के संगठन भी नरेन्द्र मोदी के विरूद्ध इकठठे हो रहे है। गाय गंगा मंदिर के पक्षधर भी उनसे नाराज है तो इनके विरोधी भी। राजनैतिक सामाजिक धार्मिक व्यावसायिक किसी भी क्षेत्र का कोई भी ऐसा व्यक्ति मोदी से खुश नही है जो अपनी ताकत पर सौ पचास वोट दिलवाने की हिम्मत रखता हो। यहां तक कि एन डी ए मे शामिल घटक दल भी पूरी तरह मोदी के खिलाफ है। इसका मुख्य कारण यह है कि मोदी किसी की बात नही सुनते जो उनको ठीक लगता है वह बिना किसी की सलाह लिये स्वयं करते है। वे हर मामले मे स्वतंत्र रूप से तकनीकी लोगो की टीम बनाकर उससे जांच कराते है और किसी के दबाव मे नही आ रहे है।यहां तक कि संघ परिवार जिसका ताकत पर मोदी प्रधान मंत्री बने उसकी भी इन्होने कभी कोई विशेष परवाह नही की । मै जानता हॅू कि सिर्फ एक बार बडी मुस्किल से कुछ आर्थिक मुददे पर नरेन्द्र मोदी भागवत जी के दबाव मे आये थे और उस दबाव के कारण जो अर्थनीति मे थोडा बदलाव किया गया उसके दुष्परिणाम भी हुए। अन्यथा किसी और मामले मे मोदी किसी अन्य के दबाव मे नही झुके। यही कारण है कि देश के लगभग सभी सरकार के सहयोगी और मोदी विरोधी एक स्वर से उन्हे तानाशाह कहने लगे है। मै समझता हॅू कि नरेन्द्र मोदी ने यह जुआ खेला है। इसके अच्छे परिणाम भी हो सकते है और बुरे परिणाम भी। नरेन्द्र मोदी व्यक्तिगत रूप से सीधे मतदाताओ को संबोधित कर रहे है न कि बिचौलियो के माध्यम से। बिचौलियो को किनारे करके सीधे मतदाताओ से संपर्क करने का उनका प्रयास कितना सफल होगा । यह तो 2019 मे ही पता चलेगा । । वास्तव मे लीक छोडकर मोदी ने जो मार्ग अपनाया है वह अप्रत्यक्ष रूप से राष्टपतीय प्रणाली की ओर जाता है जिसका अर्थ है जनता राष्टपति का चुनाव करती है और राष्टपति शक्तिशाली व्यक्ति होता है। 70 वर्षो से चली आ रही राजनैतिक व्यवस्था मे वोटो के व्यापारी जिस प्रकार बिचौलिये की भूमिका निभाते थे वे समाप्त होगे या एक जुट होकर नरेन्द्र मोदी को समाप्त कर देंगे। यह अभी स्पष्ट नही कहा जा सकता।मै कोई भविष्य वक्ता नही हॅू। मै तो स्पष्ट देख रहा हॅू कि एक तरफ साम्प्रदायिकता जातियता संगठनवाद और सत्ता की जोड तोड मजबूती के साथ खडी है तो दूसरी तरफ नरेन्द्र मोदी ने अंगद का पैर इस तरह जमा दिया है उसे हिलाना भी बहुत कठिन हो रहा है। मै तो व्यक्तिगत रूप मे साम्प्रदायिकता जातिवाद परिवारवाद संगठनवाद का विरोधी हॅू किन्तु मै इस कार्य मे मोदी जी की कोई मदद नही कर पा रहा क्योकि मुझे अपने वोट देना नही है । वोट दिलाना भी नही है। मै तो जब तक भारत मे मोदी या कोई अन्य विकृत लोकतंत्र की उठा पटक को छोडकर आदर्श लोकतंत्र अर्थात लोक स्वराज्य या सहभागी लोकतंत्र की दिशा मे नही बढेगा तब तक मै कुछ करने की स्थिति मे नही हॅू। इसलिये मै तो सिर्फ मोदी के सशक्त होने के लिये ईश्वर से प्रार्थना मात्र कर सकता हॅू। मैने तो पिछले चुनाव के पूर्व मे मनमोहन सिंह के लिये भी ऐसी प्रार्थना की थी। किन्तु सोनियां गांधी ने पुत्र मोह मे पडकर मेरी प्रार्थना को ठुकरा दिया था और मनमोहन सिंह सरीखे एक लोक तांत्रिक संज्जन महापुरूष को राजनीति से असफल सिंद्ध किया गया था। उस समय ईश्वर ने मेरी नही सुनी अब क्या होगा मुझे पता नही।नरेन्द्र मोदी से आम जनता को जिस प्रकार की उम्मीदे थी वे पूरी नही हुई , किन्तु पिछले 70 वर्षो मे जितने भी प्रधान मंत्री हुए है उन सबकी तुलना मे नरेन्द्र मोदी ने बहुत कम समय मे बहुत अच्छा काम किया है। अब पुरानी व्यवस्था का तो समर्थन नही किया जा सकता। और यदि नरेन्द्र मोदी से भी कोई अच्छी व्यवस्था दिखाई देती है तब आम लोग वैसा प्रयोग कर सकते है। नीतिश कुमार अखिलेश यादव से अभी भी बहुत उम्मीदे बनी हुई है। नरेन्द्र मोदी उम्मीद से कई गुना अच्छा कार्य कर रहे है और अपनी नई प्रणाली के आधार पर प्रमुख लोगो को नाराज भी कर रहे है। इतिहास रचते रचते गोर्वा चोव गायव हो गये। मोदी का क्या होगा यह भविष्य बतायेगा।चार वर्ष पूर्व भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था मे आमूल चूल बदलाव दिखा। नरेन्द्र मोदी ने प्रधान मंत्री बनने के बाद 70 वर्षो से लगातार जारी शासन व्यवस्था के तरीके मे आमूलचूल परिवर्तन किये जिसके अच्छे और बुरे परिणाम भी दिखे और आगे भी दिखेगे। मोदी सरकार ने चुनावो के पूर्व जनता से जो वादे किये उनमे से कोई भी वादा पूरा नही हुआ। क्योकि असंभव वादे कर दिये गये थे चाहे 15 लाख की बात हो अथवा रोजगार देने की या भ्रष्टाचार समाप्त करने की । अब भी मोदी सरकार ऐसे ही असंभव वादे करती जा रही है जो पूरे नही हो सकते। वर्तमान सरकार सिर्फ उन्ही कार्यो को आगे बढा रही है जो पिछली सरकारो के समय योजना मे थे या शुरू हुए थे। सिर्फ कार्य प्रणाली बदली है। फिछली सरकार किसी कार्य को पांच वर्ष मे पूरा करने की गति से चलती थी तो वर्तमान सरकार उसे एक वर्ष मे पूरा करने की घोषणा कर देती है। स्वाभाविक रूप से कार्य मे एक की तुलना मे डेढ दो वर्ष लग जाते है । अब इस विलंब को वर्तमान सरकार की सफलता माने या असफलता । लगभग सब प्रकार के कार्यो की गति बहुत तेज हुई है और घोषणा उससे भी अधिक तेज गति की कर दी जाती है। पिछली सरकारे नौकरी को ही रोजगार मानकर चलती थी वर्तमान सरकार ने पकौडा पौलिटिक्स के माध्यम से रोजगार को श्रम के साथ जोडने की शुरूआत की किन्तु हिम्मत टूट गई और फिर उसी परिभाषा पर सरकार आ गई है। वर्तमान सरकार आने के बाद राजनैतिक भ्रष्टाचार मे बहुत कमी आई है। सरकारी कर्मचारियों के भी भ्रष्टाचार मे आंशिक कमी आई है किन्तु जैसा वादा किया गया था उस तरह तेजी से भ्रष्टाचार घट नही रहा है। राजनीति मे परिवार वाद का समापन दिखने लगा है। अब नेहरू गांधी परिवार या लालू मुलायम राम विलास करूणा निधि जैसे परिवारो के राजनैतिक सत्ता विस्तार के दिन गये जमाने की बात बन गये है। अब ये लोग धीरे धीरे या तो अस्तित्वहीन हो जायेगे अथवा अपने मे बदलाव करेंगे। अखिलेश यादव परिवार की अपेक्षा अपनी स्वतंत्र योग्यता पर आगे बढ रहे है किन्तु उन्होने भी मुख्यमंत्री निवास खाली करने के मामले मे अपने उपर एक कलंक जोड लिया है। स्वाभाविक है कि अब भारत मे परिवार वाद के नाम पर राजनीति नही चल पायेगी। वैसे तो लगभग बीस वर्षो से ये लक्षण दिखने लगे थे कि राजनीति मे अच्छे लोग ही आगे बढ पायेंगे। अटल जी मनमोहन सिंह नीतिश कुमार अखिलेख यादव नरेन्द्र मोदी सरीखे अच्छे लोग समाज मे सम्मान पाते रहे और गंदे लोग धीरे धीरे कमजोर होते गये । अब नरेन्द्र मोदी के बाद यह बात और मजबूती से आगे बढी है कि राजनीति मे अच्छे लोग ही आगे बढ पायेगे चाहे वे सत्ता पक्ष मे हो अथवा विपक्ष मे।
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