संघ परिवार, आर्य समाज और सर्वोदय परिवार की समीक्षा
संघ परिवार, आर्य समाज और सर्वोदय परिवार की समीक्षा
स्वतंत्रता पूर्व स्वामी दयानंद द्वारा स्थापित आर्य समाज, श्री हेडगेवार, तथा महात्मा गांधी लगातार भारत की आतंरिक, राजनैतिक, सामाजिक व्यवस्था के सुधार में सक्रिय रहे । तीनों ही संगठनों में एक से बढकर एक त्यागी, तपस्वी लोग शामिल रहे, किन्तु तीनों संगठनों का कुछ मामलों में तालमेल नहीं हो सका। आर्य समाज मुख्य रुप से सामाजिक समस्याओं पर अधिक केन्द्रित रहा। आर्य समाज भावनाओं की अपेक्षा विचारों पर अधिक बल देता था । आर्यसमाज परिस्थिति अनुसार अपनी कार्यप्रणाली में संशोधन भी करता था। यही कारण था कि आर्य समाज ने स्वतंत्रता संघर्ष में सामाजिक कार्यो की अपेक्षा गुलामी से मुक्त आन्दोलन में अधिक बढ़ चढकर हिस्सा लिया। आर्य समाज के बहुत से लोग गाँधी के मार्ग से भी जुड़े रहे, तो दूसरी ओर बहुत से लोग गाँधी मार्ग से ठीक विपरीत क्रांतिकारियों के साथ भी जुड़े रहे । मार्ग भले ही भिन्न-भिन्न हो किन्तु लक्ष्य दोनों का स्वतंत्रता में सहयोग था । हेडगेवार जी तथा उनके द्वारा स्थापित संघ हिन्दू सुरक्षा तक सीमित था। संघ के लोग इस्लाम को हिन्दू धर्म के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक मानते थे और यह भी सच था कि मुसलमान राजाओं का इतिहास ऐसा ही कलंकित रहा है । मुसलमानों की अपेक्षा संघ परिवार अंग्रेजी शासन को कम खराब मानता था और इसलिए संघ परिवार की एकमात्र सम्पूर्ण शक्ति इस्लाम के विरुद्ध हिन्दू संगठन तक केन्द्रित रही । महात्मा गाँधी राष्ट्रीय गुलामी को सर्वाधिक खतरनाक मानते थे । यह अलग बात है कि स्वतंत्रता संघर्ष में महात्मा गाँधी अहिंसक मार्ग पर चलने के लिए दृढ़ थे, तो क्रांतिकारी अहिंसक मार्ग को असफल मानते थे । लेकिन लक्ष्य के प्रति दोनों के बीच कोई विरोधाभास नहीं था । महात्मा गाँधी तथा क्रान्तिकारी इस्लाम की अपेक्षा गुलामी को पहला शत्रु मानते थे, तो संघ परिवार इस्लाम को पहला शत्रु मानता था । आर्य समाज भी इस्लाम को पहला शत्रु मानना बंद करके गुलामी को पहला शत्रु मानने लगा था । यही कारण है कि आर्य समाज प्रारंभ में इस्लाम के पूरी तरह विरुद्ध होते हुए भी स्वतंत्रता संघर्ष के समय उस विरोध को प्राथमिकता नहीं दे रहा था । यही कारण था कि गाँधी पूरी तरह हिन्दू धर्म के पक्षधर होते हुए भी स्वतंत्रता संघर्ष में इस्लाम को साथ लेकर चलना चाहते थे और संघ परिवार स्वतंत्रता भले ही देर से मिले या न भी मिले किन्तु वह इस्लाम से किसी भी प्रकार के समझौते के विरुद्ध था। यही कारण है कि संघ के इक्का दुक्का लोगों को छोड़कर अन्य किसी कार्यकर्ता की स्वतंत्रता संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं रही। बल्कि कहीं कहीं इस संघर्ष को विवादास्पद बनाने में भी सक्रियता देखी जा सकती है।
स्वतंत्रता के बाद आर्य समाज ने यह मान लिया कि उसका काम पूरा हो गया और उसे अब पुनः अपने समाज सुधार के कार्य में लग जाना चाहिए और उसने पूरी तरह राजनीति से किनारा कर लिया। इसके ठीक विपरीत स्वतंत्रता के पूर्व संघ एक सांस्कृतिक संगठन तक सीमित था, किन्तु स्वतंत्रता मिलते ही वह पूरी तरह राजनीति में सक्रिय हो गया । स्वाभाविक था कि अधिकांश मुसलमान भारत के हिन्दुओं में अपना विश्वास खो चुके थे तथा संघ के लिए यह अच्छा अवसर था। यह अलग बात है कि संघ विचारों से प्रभावित कुछ अतिवादी हिन्दुओं ने गाँधी हत्या जैसा भावनात्मक और मूखर्तापूर्ण कृत्य करके उसका खेल बिगाड़ दिया। गाँधी हत्या के बाद सर्वोदय दो भागों में विभाजित हो गया। गाँधी को मानने वालो का एक भाग राजनीति के माध्यम से व्यवस्था परिवर्तन में लग गया जो बाद में अपनी अवस्था परिवर्तन में बदल गया, तो दूसरा सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन तक सीमित हो गया।
दुनिया में साम्यवादी सबसे अधिक चालाक और बुद्धिवादी माने जाते है, तो दूसरी ओर संघ परिवार सबसे अधिक शरीफ, नासमझ और भावना प्रधान । सर्वोदय भी लगभग शरीफ, नासमझ और भावनाप्रधान ही माना जाता है। किन्तु गाँधी हत्या ने सर्वोदय के मन में इतनी कटुता भर दी कि साम्यवादी और मुस्लिम संगठनों को सर्वोदय का साथ लेने में सुविधा हो गई। यदि हम सर्वोदय परिवार और संघ परिवार की तुलना करें तो दोनों में अनेक समानताओं के बाद भी दोनों में काफी असमानताएँ हैं । संघ एक संगठन का स्वरूप है जिसके नेता निर्णय करते हैं और कार्यकर्ता तदनुसार आचरण करते हैं । जबकि सर्वोदय का प्रत्येक कार्यकर्ता ही स्वयं में एक नेता है इसमें न तो एक नेतृत्व है, न ही प्रतिबद्ध अनुकरण कर्ता । संघ में पूरी तरह अनुशासन है तो संर्वोदय में पूरी तरह स्वशासन। संघ का एक स्पष्ट लक्ष्य है हिन्दू तुष्टीकरण के माध्यम से भारतीय राजनीति में निर्णायक भूमिका अदा करना। सर्वोदय दिशा हीन है। उसका कोई स्पष्ट लक्ष्य नहीं। कभी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन तो कभी स्वदेशी का नारा। कभी ग्राम स्वराज्य तो कभी साम्प्रदायिकता उन्मूलन। एक वर्ष के लिये भी इनके लक्ष्य टिकाऊ या स्पष्ट नहीं होते। संघ मुस्लिम संगठनों की क्रिया के विरूद्ध तीव्र योजनाबद्ध तथा परिणाम मूलक प्रतिक्रिया करता है। सर्वोदय संघ की प्रतिक्रिया के विरूद्ध लचर अविचारित तथा शक्ति प्रदर्शन के लिये प्रतिक्रिया करता हैं। संघ अन्य संगठनों का उपयोग करना जानता है जबकि सर्वोदय किसी संगठन का उपयोग नहीं कर सकता भले ही उसी का कोई उपयोग कर ले । संघ नेतृत्व पूरी तरह सतर्क सक्रिय और चालाक है। सर्वोदय नेतृत्व सक्रिय तो है किन्तु ढीला ढाला तथा शरीफ प्रवृति का है। संघ का उद्देष्य सत्ता प्रधान है, और परिणाम सफलता है जबकि सर्वोदय का उद्देष्य जनहित का है किन्तु परिणाम शून्य है ।
मैंने दोनों संगठनों को निकट से देखा है । सर्वोदय की प्रत्येक चर्चा में गांधी हत्या की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है । सर्वोदय गांधी हत्या के लिए तो संघ को अक्षम्य दोषी मानता है किन्तु भारत विभाजन में मुसलमानों की भूमिका अथवा सम्पूर्ण विश्व में अन्य धर्मावलम्बियों से निरंतर टकराव में मुसलमानों की भूमिका को भूल जाने योग्य दोष से अधिक नहीं मानता। संघ प्रत्यक्ष रुप से बलप्रयोग का समर्थक है । उसकी कथनी करनी में फर्क नहीं । सर्वोदय प्रत्यक्ष रुप से अहिंसा की बात करता है किन्तु परोक्ष रुप से नक्सलवाद मुस्लिम आतंकवाद तक का समर्थन करता है । कथनी और करनी में आसमान जमीन का फर्क है।
मेरे विचार में सर्वोदय भटक रहा है । सन पचहत्तर में सर्वोदय ने इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरूद्ध एक निर्णायक पहल की । किन्तु सर्वोदय से भूल हुई कि उसने उक्त पहल करने में संघ तथा साम्यवादियों को मिलाकर एक मंच बना दिया। संघ और साम्यवादी उतने ही कटृर होते है जितने कि मुसलमान। ये व्यक्ति के रूप में तो कहीं भी रह सकते हैं किन्तु दल के रूप में ये पूरी तरह सतर्क और सक्रिय रहते हैं। सर्वोदय ने तानाशाही के विरूद्ध ऐतिहासिक संघर्ष का नेतृत्व किया किन्तु देश में कोई निर्णायक परिर्वतन नहीं आ सका। अब तो सर्वोदय लगभग चर्चा से भी बाहर हो रहा है। इस समापन काल मे स्थिति यहाँ तक आ गई है कि सर्वोदय में ही सम्पत्ति और सत्ता की छीनाझपटी शुरु हो गई है। साम्यवाद के लगभग पतन और कांग्रेस के कमजोर होने के बाद सर्वोदय के सामने कोई अन्य मार्ग नहीं दिख रहा है जबकि संघ परिवार लगातार सशक्त हो रहा है तथा मुसलमानों की बढती अविश्वसनीयता संघ परिवार को और शक्ति प्रदान कर रही है । आर्य समाज की एक स्पष्ट दिशा रही है किन्तु अग्निवेश द्वारा साम्यवाद के समर्थन से आर्य समाज को भी कमजोर करने में बहुत सफलता मिली। यहाँ तक कि साम्यवाद कांग्रेस तथा कुछ विश्व स्तरीय संगठनों के समर्थन से अग्निवेश जैसे चालाक व्यक्ति आर्य संस्कारों के विरुद्ध होते हुए भी आर्य समाज के प्रधान बन बैठे थे।
पिछले दो वर्षो से स्थितियां बदली है वर्तमान समय में अधिकांश भावना प्रधान लोगो से भारतीय राजनीति का पिण्ड छूट गया है। तीनों संगठन अर्थात् सर्वोदय, आर्य समाज और संघ, मोदी के सामने समझदारी में बौने सिद्ध हो रहे है। साम्यवाद तो स्वयं ही समाप्त हो रहा था । आर्य समाज का आंशिक स्वरुप परिवर्तन होकर कुछ गायत्री परिवार, कुछ बाबा रामदेव के रुप में बिखर गया। संघ परिवार लगातार शक्तिशाली हो रहा है। स्पष्ट दिखता है कि परिवारवाद मुस्लिम साम्प्रदायिकता तथा आर्थिक कमजोरी से निपटते ही नरेन्द्र मोदी साम्प्रदायिकता से निपटने की पहल करेंगे। हो सकता है कि इस पहल की शुरुवात 2019 के आम चुनाव के बाद ही हो। किन्तु मुझे साफ दिखता है कि यह कार्य होगा अवश्य और ऐसी पहल का मुख्य निशाना संघ परिवार के वे बड़बोले लोग है और वह ना समझ विचार होगा जिन्हें न हिन्दुत्व का ज्ञान है, न समाज की चिंता है, न विश्वसनीयता की चिंता है बल्कि उन्हें तो अपने मुर्खतापूर्ण विचारों को टी वी और अखबारों में प्रसारित होने देने की तक चिंता है । मैं भारत में संगठनात्मक हिन्दुत्व की तुलना में गुणात्मक हिन्दुत्व के होने का पक्षधर रहा हॅू । मैं उम्मीद करता हॅू कि आर्य समाज तथा सर्वोदय भी वैचारिक तथा गुणात्मक हिन्दुत्व के समर्थन में अपनी पुरानी गलतियों की समीक्षा करेंगे ।
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