सावधान! युग बदल रहा है

सावधान! युग बदल रहा है ।

भारतीय संस्कृति में चार युग माने गये है- सतयुग, त्रेता, द्वापर,  कलियुग । चारों युगों का चरित्र और पहचान अलग-अलग मानी जाती है । यदि आधुनिक युग से तुलना करें तब भी चार संस्कृतिया अस्तित्व में है- (1) विचार प्रधान (2) शक्ति प्रधान (3) अर्थ प्रधान (4) उन्मुक्त प्रधान । इन्हे ही भारत में क्रमश: ब्राहम्ण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र संस्कृति माना जाता है । पहली संस्कृति हिन्दुत्व के साथ जोड़कर  देखी जाती है तो दूसरी इस्लाम तीसरी इसाईयत और चौथी  साम्यवाद । वर्तमान समय में हम चारों का अनुभव कर चुके हैं । यह कहना गलत है कि सृष्टि के प्रांरभ से लेकर अब तक संस्कृतियों का प्रभाव घटते-घटते पहली बार कलयुग के रुप में आया है । बल्कि  यथार्थ यह है कि देवासुर संग्राम कई बार हुआ है और पृथ्वी पर कई बार संस्कृतियों का उतार चढ़ाव होता रहा है ।

            बहुत प्राचीन समय में क्या व्यवस्था थी यह ठीक-ठीक नहीं बताया जा सकता क्योंकि किंवदंती के अनुसार ही हम रामकृष्ण,  रावण, कंस का अस्तित्व स्वीकार करके अपनी धारणा को पुष्ट करते है  किन्तु बुद्ध महावीर के काल से लेकर स्वतंत्रता तक का इतिहास उपलब्ध है जिस आधार पर कुछ पुष्ट धारणा बनाई जा सकती है ।  यद्यपि इस इतिहास मे भी कितनी मिलावट है कितना यथार्थ यह  नहीं कहा जा सकता किन्तु कुछ बाते यथार्थ के रुप में कहीं जा सकती है क्योंकि उनका प्रभाव आज तक दिखाई दे रहा है । स्वतंत्रता के बाद का सारा घटनाक्रम प्रत्यक्ष दिख रहा है और उसकी वास्तविक समीक्षा विश्वासपूर्वक की जा सकती है ।

           यदि हम स्वतंत्रता के बाद का इतिहास और वर्तमान स्थिति की तुलना करें तो कुछ बाते विश्व से लेकर भारत तक में  साफ देखी जा सकती हैं । भारत ने राजतंत्र,  इस्लाम, अंग्रेज तथा साम्यवाद का पर्याप्त अनुभव किया है । स्वतंत्रता के बाद यद्यपि भारत में लोकतंत्र था किन्तु वह लोकतंत्र पूरी तरह वामपंथ के प्रभाव में था जो 91 के बाद बदलना शुरु हुआ । वर्तमान समय में साम्यवाद, वामपंथ अथवा समाजवाद इतिहास की वस्तु बन चुके हैं। अब यह विचारधारा लगभग समापन की ओर है । स्वतंत्रता के बाद भारत में इस्लाम भी लगातार विस्तार पाता रहा । यहाँ तक कि भारत में हिन्दुओं का तीन चौथाई बहुमत होते हुये भी हिन्दू मुसलमानों की तुलना में दूसरे दर्जे के नागरिक बनकर रहे ।  जनसंख्या और मनोबल के आधार पर भारत में मुसलमान सर्वाधिक शक्तिशाली रहे । भारत में अव्यवस्था भी चरम तक बढ़ी और भ्रष्टाचार भी । नक्सलवाद और आतंकवाद भी लगातार बढ़ता गया ।  ऐसा लगा कि वास्तव में कलयुग अपने चरम पर है । हिन्दुत्व और इस्लाम की मान्यताओं में एक विशेष अंतर यह होता है कि इस्लाम धर्म को ही मानवता मानकर चलता है जबकि हिन्दुत्व मानवता को ही धर्म मानता है । इस्लाम धर्म नहीं होता, बल्कि सिर्फ संगठन मात्र होता है जबकि हिन्दुत्व संगठन बिल्कुल नहीं होता सिर्फ धर्म होता है । इस्लाम में अंतिम सत्य खोजने पर पूरी तरह प्रतिबंध होता है  जबकि हिन्दुत्व अंतिम सत्य खोजने की पूरी स्वतंत्रता देता है ।  इस्लाम संगठन शक्ति को सहजीवन से अधिक महत्व देता है ।  इस्लाम न्याय की तुलना में अपनत्व को अधिक महत्वपूर्ण मानता है । जबकि हिन्दुत्व संगठन की तुलना में संस्था को अधिक महत्व देता है तथा अपनत्व की जगह भी न्याय महत्वपूर्ण मानता है । आज दुनिया इतनी आगे चली गई है फिर भी यदि संगठित इस्लाम धार्मिक इस्लाम में आज तक नहीं बदला जा सका तो यह कलियुग का प्रभाव ही माना जा सकता है ।

       पिछले कुछ वर्षो से ऐसा लग रहा है कि युग बदलने लगा है। चार लक्षण बिल्कुल स्पष्ट दिख रहे हैं-

1 साम्यवादी विचारधारा लगभग समाप्त हो गई है इसलिए उस पर किसी प्रकार की चर्चा उचित नहीं ।

2 “संघे शक्ति कलियुगे” अर्थात संगठन में ही शक्ति है की विचार धारा राडार पर है । सबसे पहले बुद्ध ने इस विचारधारा का प्रतिपादन किया था किन्तु संगठन में ही शक्ति है, इस विचारधारा का सबसे अधिक लाभ इस्लाम ने उठाया । 1400 वर्षो तक इस्लाम इस विचारधारा को माध्यम बनाकर सारी दुनिया में छा गया । यहाँ तक कि स्वतंत्रता के पूर्व संघ परिवार ने भी थक-हार कर इस्लाम की नकल की और संगठन बनाकर भारत में बड़ी सफलता प्राप्त की ।  किन्तु पिछले कुछ वर्षो से यह विचार धारा संकट में आ गई है । सारी दुनिया में इस्लाम अविश्वसनीय हो गया है । भारत में नरेन्द्र मोदी और अमेरिका में ट्रम्प की विजय में इस नफरत का बहुत बड़ा  योगदान रहा है । इस्लाम सारी दुनिया को दारुल इस्लाम में बदलने के लिए प्रयत्नशील रहा है । किन्तु अब तो ऐसा दिखने लगा है कि या तो उसे दारुल अमन की ओर लौटना होगा अन्यथा वह चौदहवी सदी की कहावत के अनुसार समापन की ओर चला जायेगा ।  इजराइल या बर्मा हो अथवा कश्मीर ही क्यों न हो कहीं भी इस्लामिक कट्टरवाद को अब समर्थन नहीं मिल रहा है । यहाँ तक कि अनेक मुस्लिम देश भी अब ऐसे आतंकवाद का विरोध करने लगे हैं ।  पाकिस्तान अलग थलग पड़ता जा रहा है । कश्मीर की स्थिति यह है कि कहीं लेने के देने न पड़ जाये । दुनिया के मुसलमानों को सहजीवन अपनाना ही होगा । यदि थोड़े दिनों के लिए भी संघ परिवार चुप हो जाये तो इस्लाम की अकल ठिकाने आने में देर नहीं लगेगी और मोदी के आने के बाद यह संभव भी दिखता है । आज कल सुब्रमन्यम स्वामी, योगी आदित्यनाथ आदि भी कम बोलने लगे है । यह शुभ लक्षण है ।

3 भारत में राजनीति का स्तर ठीक होने लगा है । सत्ता पक्ष में नरेन्द्र मोदी एक ध्रुव के रुप में स्थापित हो रहे हैं, तो विपक्ष में भी नीतिश कुमार और अखिलेश यादव लगातार लोकप्रियता की ओर बढ़ रहे हैं । अरविन्द केजरीवाल भी नीचे जा रहे है और भविष्य में ममता बनर्जी की भी यही संभावना दिखती है । इससे स्पष्ट है कि अब राजनीति में नैतिकता का ग्राफ ऊपर होगा । वर्तमान नोटबंदी कार्यक्रम ने भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगाने की शुरुवात कर दी है ।  मैं स्पष्ट हॅू कि भारत की राजनीति ठीक दिशा में जा रही है ।

4 दुनिया में फेसबुक, वाट्सऐप आदि का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है । यह प्रचलन विचार मंथन में सहायक हो रहा है । अब  विचार-प्रचार की संभावनाए घटनी शुरु हो गई है । यहाँ तक कि  मीडिया का भी महत्व घट रहा है और फेसबुक आदि के माध्यम से प्रत्यक्ष विचार मंथन हो रहा है । यह भी एक शुभ लक्षण है ।

            युग परिवर्तन अपने आप नहीं होता है बल्कि उसमें परिस्थिति अनुसार स्वयं को भी सक्रिय होना पड़ता है । साम्यवाद की चर्चा बंद कर देनी चाहिए । इस्लाम पर विचार करते समय ध्यान रखना होगा कि दस प्रतिशत कट्टरवादी, मुल्ल-मोलवी 80 प्रतिशत, सामान्य मुसलमानों को अपने साथ जोड़े रखते है । जो दस प्रतिशत आधुनिक सोच के मुसलमान है उन्हें ये 90 प्रतिशत एक जुट होकर अलग-थलग कर देते है । इन बीच वाले 80 प्रतिशत मुसलमानों के विचार परिवर्तन की जरुरत है जिससे वे कटटरपंथी मूल्लामौलवीयों के नियंत्रण से बाहर आ सकें । यह कार्य संबंधो के आधार पर भी हो सकता है और विचारों के आधार पर भी । सभी मुसलमानों को गाली देने की प्रवृत्ति बहुत घातक है । जहाँ तक भारतीय राजनीति का संबंध  है तो नरेन्द्र मोदी, नीतिश कुमार, अखिलेश यादव की राजनीति बीच का पड़ाव मात्र है, आदर्श स्थिति नहीं । आदर्श स्थिति के लिए एक निष्पक्ष दल विहीन तीसरे पक्ष को सामने आना चाहिए जो दलगत राजनीति से दूर रहकर जनमत पर मजबूत प्रभाव बना सके ।  सौभाग्य से व्यवस्थापक इस दिशा में निरंतर सफलतापूर्वक बढ़ रहा है। व्हाट्सएप, फेसबुक वेबसाइट आदि को माध्यम बनाकर स्वस्थ विचार मंथन को भी प्रोत्साहित करना चाहिए । इस दिशा में भी निरंतर प्रयास जारी है । मैं पूरी तरह आश्वस्त हूँ कि अब कलयुग का अंतिम चरण समाप्त होने तथा युग परिवर्तन के लक्षण सारी दुनिया में दिखने शुरु हो गये है । अवश्यकता यह है कि हम इस यज्ञ में अपनी आहुति कितनी और किस प्रकार दे सकते हैं,  इसकी तैयारी करें ।

          सारी दुनिया में इस्लाम को उसके वास्तविक स्वरुप में पहचानने की शुरुवात हो गई है । अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रम्प का अप्रत्याशित जीतना अथवा भारत में नरेन्द्र मोदी की अप्रत्याशित  बढ़ती लोकप्रियता में इस्लाम के प्रति बढ़ते संदेह का बहुत बड़ा योगदान है । जिस तरह पाकिस्तान अलग-थलग होता जा रहा है । जिस तरह बर्मा में रोहिंग्या मुसलमान अकेले दिखने लगे हैं तथा उन्हे मानवता के नाम पर भी शरण नहीं मिल पा रही, जिस तरह सारी दुनिया में मानवता के नाम पर होने वाला मुसलमानों के साथ अच्छे व्यवहार का दृष्टिकोण बदलता जा रहा है वह वास्तव में युग परिवर्तन का संकेत है । चौदह वर्षो तक इस्लाम अपनी संगठन शक्ति के बल पर ही अपना विस्तार करता रहा । अब ऐसे लक्षण दिखने लगे हैं कि इस्लाम को या तो अपनी संगठनात्मक विचारधारा छोड़नी होगी अथवा अपने समापन की प्रतिक्षा करनी होगी । जिस तरह इस्लाम बढ़ता रहा उस तरह अब दुनिया स्वीकार करने को तैयार नहीं दिखती । ये लक्षण सारी दुनिया में भी दिख रहे है और भारत में भी । भारत में भी कश्मीरी आतंकवाद आज कल कुछ शराफत की भाषा बोलना शुरु कर दिया है ।

                यदि भारत की समीक्षा करें तो सिर्फ इस्लाम ही नहीं बल्कि अन्य मामलों में भी युग परिवर्तन के संकेत दिखने लगे है । राजनीति में तीन अलग-अलग समूह स्पष्ट हैं । सत्ता पक्ष के रुप में नरेन्द्र मोदी का एक छत्र प्रभाव बढ़ रहा है दूसरी ओर विपक्ष में भी अब नीतिश कुमार और अखिलेश यादव ही स्पष्ट आगे बढ़ रहे है तथा अनेक विपक्षी कहे जाने वाले नेताओं का प्रभाव घट रहा है ।  अरविंद केजरीवाल भी लगातार नीचे जा रहे है । ममता बनर्जी को भी दो चार वर्षो में चुनौती मिलेगी ही । इस तरह राजनीति में साफ- सुथरी नीयत और नीति वालो का बढता प्रभाव साफ दिख रहा है । व्यवस्था परिवर्तन अभियान के नाम से पक्ष विपक्ष के बीच एक निष्पक्ष प्रयत्न का निरंतर मजबूत होना भी युग परिवर्तन का संकेत दे रहा है ।

               आर्थिक नीतियाँ भी सारी दुनिया में बदल रही हैं । भारत में तो नोटबंदी प्रकरण ने आर्थिक नीतियों में सकारात्मक बदलाव की गति बहुत तेज कर दी है । समाज व्यवस्था भी ठीक दिशा में जाती दिख रही है । वर्ग संघर्ष घटकर आंशिक रुप से वर्ग समन्वय की तरफ बढ़ने के संकेत दिखने लगे है ।

         फिर भी अभी कुछ कार्य भारत में युग परिवर्तन में बाधक है । भारत की न्यायपालिका अभी भी अपनी सर्वोच्चता सिद्ध करने पर अड़ी हुई है । अभी न्यायपालिका में जे॰ एन॰ यू॰ संस्कृति का प्रभाव खत्म नहीं हुआ है । इसी तरह इस्लाम के संदेह के घेरे में आने से तथा नरेन्द्र मोदी के बढ़ते प्रभाव से साम्प्रदायिक हिन्दुत्व तथा संगठनवादी विचारधारा का मनोबल बढ़ने लगा है । युग परिवर्तन में इनका बढ़ता प्रभाव भी बाधक होगा क्योंकि संगठन शक्ति हमेशा सहजीवन में असंतुलन पैदा करती है । जिस तरह साम्यवाद अपने आप गया इस्लाम अपने आप कट्टरवाद को छोड़ेगा,  उसी तरह भारत की न्यायपालिका तथा संगठन प्रिय हिन्दुत्व को भी बदलना ही होगा ।

       मेरी अपने मित्रों को सलाह है कि वे किसी पक्ष-विपक्ष में झुकने की अपेक्षा निष्पक्ष रहने दिखने की आदत डाले । वे यदि सक्रिय होना चाहते है तो व्यवस्था परिवर्तन के प्रयत्नों से भी सम्पर्क करें । वे क्रिया के पूर्व विचार मंथन को अधिक महत्व दें । साथ ही उन्हें यह भी ध्यान देना है कि वे मुसलमानों से किसी प्रकार की घृणा या भेदभाव न करें । क्योंकि मुसलमानों में भी दस प्रतिशत ही कट्टरवादी है और इन कट्टरवादियों के प्रभाव में शामिल 80 प्रतिशत मुसलमान समझाए जा सकते है । हमारा कर्तव्य है कि हम इन 80 प्रतिशत को 10 प्रतिशत उग्रवादियों से अलग थलग करने का प्रयास करें । दोष इस्लाम में नहीं बल्कि दोष उसके संगठनवादी चरित्र में है । युग परिवर्तन के लिए उस संगठनवादी चरित्र में बदलाव करना होगा।

       अंत में मैं पूरी तरह आश्वस्त हॅू कि अब विश्व कलियुग से धीरे-धीरे सतयुग की ओर जाने की शुरुवात कर रहा है और हमारा कर्तव्य है कि हम इन प्रयत्नों में सहयोग और समर्थन करें ।