कृण्वंतो विश्वं आर्यम्

कृण्वंतो विश्वं आर्यम्

संघ प्रमुख मोहन भागवत जी ने बैंकॉक में एक नारा दिया है “कृण्वंतो विश्वं आर्यम्” सारे संसार को आर्य बनाओ। भागवत जी ने बहुत ही सोच समझकर के यह गंभीर वाक्य दिया है, वर्तमान परिस्थितियों में भागवत जी के इस कथन का समर्थन किया जाना चाहिए। लेकिन मेरा यह मानना है कि इस वाक्य में सुधार होना चाहिए हमें दुनिया को आर्य बनाना है यह उचित नहीं है। बल्कि दुनिया आर्य बने यह ज्यादा उचित है, क्योंकि हम इस प्रकार की नीतियां बना सकते हैं जिन नीतियों के आधार पर दुनिया आर्य बन जावे लेकिन दुनिया को आर्य बनाना यह अच्छी बात नहीं है यह तो एक प्रकार से मुसलमान या ईसाइयों की नकल है जो सारी दुनिया को मुसलमान या इसाई बना रहे हैं मेरे विचार से सारी दुनिया आर्य बने इस प्रकार का प्रयत्न करना चाहिए। मैं चाहता हूं कि हम लोग इस मुद्दे पर गंभीर चिंतन करें।

कुछ मित्रों ने यह प्रश्न किया है की दुनिया आर्य कैसे बने इसके लिए हम क्या प्रयत्न कर सकते हैं। मैंने इस संबंध में बहुत विचार और प्रयत्न किया है। दुनिया के आर्य बनने का मतलब है कि दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति आर्य बन जाए। दो दिशाओं से प्रयत्न करने होंगे पहला प्रयत्न होगा राज्य की ओर से राज्य को यह गारंटी देनी होगी कि प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा और न्याय अवश्य प्राप्त होगी। जो अपराधी हैं उन्हें दंडित अवश्य किया जाएगा। दूसरा कार्य हम लोगों का है जो समाज के लोग हैं वह इस प्रकार के अनारयों का लगातार हृदय परिवर्तन करते रहे विचारों में बदलाव लावे। यह विचार परिवर्तन और हृदय परिवर्तन भी साथ-साथ चलना चाहिए इसका अर्थ यह हुआ कि एक तरफ से हमारी राजनीतिक व्यवस्था अनारयों को आर्य बनने के लिए मजबूर कर दे दूसरी ओर हमारी सामाजिक व्यवस्था अनारयों को आर्य बनने के लिए प्रेरित करें। जब हम दो दिशाओं से मिलकर एक साथ काम करेंगे तभी दुनिया आर्य बन सकेगी।