विश्व की प्रमुख समस्या और समाधान - विचारक बजरंग मुनि

सर्व व्यक्ति समूह को समाज कहते है । समाज के अंतर्गत पूरे विश्व का प्रत्येक व्यक्ति शामिल माना जाता है, चाहे वह अपराधी ही क्यो न हो । वर्तमान विश्व का यदि आकलन करे तो दुनियां धीरे-धीरे अशान्ति की दिशा मे बढ रही है । भौतिक उन्नति तेजी से हो रही है, किन्तु नैतिक पतन भी उतनी ही तेज गति से होता जा रहा है । व्यक्ति के स्वभाव मे असंतोष और असुरक्षा का भी भाव बढ रहा है । यदि हम भारत का आकलन करे तो भारत मे भी हालत बहुत अच्छी नहीं है । वर्ग विद्वेष बढ रहा है । परिवार टूट रहे है । व्यक्ति-व्यक्ति मे संवाद कम हो रहा है । आम लोगो की रात की नींद घटती जा रही है । इतनी अधिक भौतिक उन्नति होने के बाद भी अभी तक दुनियां तानाशाही से मुक्त नही हो सकी है । अभी भी चीन दुनियां के सामने एक बडी ताकत के रूप मे बना हुआ है । अभी भी चीन व्यक्ति के मौलिक अधिकार को न स्वीकार करके व्यक्ति को राष्ट्रीय सम्पत्ति ही मानता है । इस्लाम के नाम पर भी दुनियां के अनेक देशो में आतंकवाद पर नियंत्रण नही हो पा रहा है । ताकत के बल पर अफगानिस्तान मे साम्प्रदायिक तत्वो ने रूस को भी भगा दिया और अमेरिका भी हारकर चला गया । आज दुनियां अफगानिस्तान या कुछ अन्य देशो मे शान्ति प्रिय लोगो की सुरक्षा की गारंटी देने मे अपने को असमर्थ पा रही है । यदि कोई छोटा सा गिरोह ताकत के सहारे एक जुट हो जाये तो उसे रोकना विश्व व्यवस्था के लिये भी कठिन हो रहा है । स्पष्ट है कि दुनियां नीचे जा रही है ।  

                                हमे यह विचार करना होगा कि इसका दोषी कौन है । व्यक्ति को मिलाकर समाज बनता है और समाज से ही व्यक्ति का जन्म होता है, उसके संस्कार बनते हैं । इसका अर्थ हुआ कि व्यक्ति में उसके माता-पिता, परिवार और समाज के ही संस्कार होते हैं, मतलब कि व्यक्ति पर समाज का ही अधिक प्रभाव पडता है । तब दोषी कौन ! समाज बनता है व्यक्ति से और व्यक्ति बनता है समाज से । यह समीकरण उलझा हुआ होने के कारण स्पष्ट नही है कि वर्तमान गिरावट के लिये व्यक्ति दोषी है या समाज । हम यह तय नही कर पा रहे है कि अंडा अधिक दोषी है या मुर्गी । क्योकि व्यक्ति और समाज दोनो एक दुसरे से जुड़े हुए है । व्यक्ति और समाज के बीच मे परिवार की भी बहुत भूमिका है, जिसे हम समाज व्यवस्था की पहली इकाई मान सकते है । व्यवस्था को ठीक ढंग से चलाने के लिये ही हमने धर्म और राष्ट्र को जिम्मेदारियां सौंपी थी । धर्म मार्गदर्शन करता था और राष्ट्र सुरक्षा सहित अन्य व्यवस्थाओ की चिंता करता था । हम पूरी दुनियां मे देख रहे है कि धर्म का स्थान सम्प्रदायो ने ले लिया और सम्प्रदाय भी अब वैचारिक धरातल छोडकर संगठन के रूप मे बदल गये । स्पष्ट है कि धर्म समाधान की जगह समस्या बन गया । राष्ट्र भी राज्य तक सीमित हो गया तथा राज्य भी सुरक्षा और न्याय की गारंटी से हटकर समाज मे जन कल्याण के नाम पर वर्ग विद्वेष बढाने मे सक्रिय हो गया । इन सबका परिणाम हुआ कि आज व्यक्ति के स्वभाव मे लगातार स्वार्थ और उदंडता का भाव बढ़ता जा रहा है । पूरी दुनियां मे व्यक्ति के स्वभाव मे आया यह बदलाव ही सबसे बडी समस्या है । लेकिन इस बदलाव पर नियंत्रण करने के लिये नियुक्त दोनो इकाईयां धर्म और राज्य विपरीत दिशा मे जा रहे है । परिवार भी इस संबंध मे असफल होते जा रहे हैं । अधिकांश  परिवारो मे बच्चो को स्वार्थ और बल प्रयोग की सलाह दी जा रही है । सभी जगह या तो धूर्तता का प्रभाव बढ रहा है या हिंसा का । कुछ धूर्त लोग राजनैतिक शक्तियो के साथ मिलकर व्यक्ति को शरीफ बनने की प्रेरणा दे रहे है तो कुछ हिंसक लोग साम्प्रदायिक शक्तियो के साथ मिलकर व्यक्तियो मे कायरता का भाव बढा रहे हैं । शराफत और कायरता समाधान मे बहुत बाधक बन रहे है ।  

                     ऐसी स्थिति मे हमारे समक्ष मुख्य दो समस्याए है । पहला व्यक्ति के स्वभाव मे स्वार्थ और उदण्डता की बढती भावना के साथ-साथ व्यक्तियो के एक दूसरे समूह मे शराफत और कायरता का बढ़ता भाव । दूसरी समस्या दुनियां के सामने यह है कि राज्य लगातार समाज को गुलाम बनाता जा रहा है । शासक और शासित की भावना भी तेजी से बढ़ती जा रही है । लेकिन इन दोनो ही समस्याओ का समाधान व्यक्ति से शुरू करे अथवा समाज से यह बात समझ मे नही आ रही है । समाज राजनेताओ का गुलाम बन गया है और राजनेताओ को समझाना बहुत कठिन हो रहा है । उनके पास धूर्तता भी है और शक्ति भी है ।  सेना, पुलिस, सम्पत्ति, संविधान, कानून सब कुछ उनके हाथ मे है । उन्होने प्रचार माध्यमो का सहारा लेकर व्यक्तियो के अंदर गुलाम मानसिकता पैदा कर दी है । इसका अर्थ है कि व्यक्ति के अंदर स्वार्थ और हिंसा का भाव बढ रहा है लेकिन उस बुराई से राज्य पूरी तरह अछूता है । यह बुराई समाज पर ही बुरा प्रभाव डाल रही है, और समस्याओ की जड़ राज्य, इस संबंध मे कुछ भी समझने को तैयार नही है । ऐसी स्थिति मे हमारे सामने मजबूरी है कि हम दुनिया की इन दोनो प्रमुख समस्याओ के समाधान के लिये व्यक्ति के स्वभाव मे बदलाव की शुरूआत करें, जो परिवार से ही हो सकती है । यदि हम व्यक्ति के स्वभाव मे स्वार्थ और हिंसा  कम करने की योजना बनाते है तो व्यक्ति के स्वभाव से शराफत और कायरता को भी दूर करना होगा । जब तक व्यक्ति शराफत और कायरता को छोडकर समझदार नही बनता तब तक किसी भी समस्या का समाधान संभव नही है । हम अन्य जो भी प्रयत्न कर रहे है वे प्रयत्न करते रहे । मै इस संबंध मे कुछ नही कहूंगा ।  किन्तु हमे साथ-साथ परिवार व्यवस्था मे इस तरह का बदलाव लाने की शुरूआत करनी चाहिये कि व्यक्ति के अंदर स्वार्थ और उदण्डता के संस्कार भी कम हो जाये तथा व्यक्ति मे से शराफत और कायरता का भाव भी घट जाये । इसके लिये परिवार को मजबूत भी करना होगा और परिवार मे जन जागरण भी करना होगा । इसलिये दुनियां के सभी समस्याओ के समाधान की शुरूआत परिवार सशक्तिकरण से ही संभव है ।